भारत सरकार के साथ बातचीत कर रहे नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएम-आईएम) के थुइगालेंग मुइवा के नेतृत्व वाले नागा भूमिगत सशस्त्र विद्रोहियों ने मुद्दों का आखरी हल निकलने और समझौते पर हस्ताक्षर होने तक, जो अब तक मायावी सा लगता है, हथियार डाल आत्मसमर्पण न करने पर अपना रुख नहीं बदला है.
एक शीर्ष सूत्र ने नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत को बताया कि जब कुछ साल पहले हथियारों के आत्मसमर्पण का मुद्दा सामने आया था, तो एनएससीएन (आईएम) के नेतृत्व ने साफ़ तौर पर अपने हथियार रखने से इनकार कर दिया था. इस मामले को तत्कालीन वार्ताकार द्वारा तत्कालीन भारतीय सेना प्रमुख के पास ले जाया गया था, जिन्होंने सुझाव दिया था- हथियारों का फायरिंग पिन और ब्रीच ब्लॉक निकालकर 'बेकार' किया जा सकता है.
यह व्यवस्था सुनिश्चित करेगी कि नागा गुरिल्ला लड़ाके अपने हथियारों से लैस तो रहेंगे, लेकिन असलियत में, न तो वो हथियार काम करेंगे और न इस्तेमाल किये जा सकेंगे. इस तरह, एनएससीएन (आईएम) को एक 'सम्मानजनक समाधान' प्राप्त हो जायेगा और सरकार की ज़रुरत भी पूरी जो जाएगी.
एनएससीएन (आईएम) के पास विभिन्न प्रकार के लगभग 5,000 घातक हथियार हैं, इनमें एके-47, जी श्रृंखला की बंदूकें, पिस्तौल की तरह के छोटे हथियार और 9 एमएम बंदूकें, ऑटोमेटिक बंदूकें, मोर्टार, रॉकेट लॉन्चर इत्यादि जैसे असलहे शामिल हैं. इनके कैडर– जो तथाकथित नागा सेना के नाम से जाने जाते हैं - इन हथियारों के अधिकांश संचालन में अच्छी तरह से प्रशिक्षित हैं. उनकी युद्ध की मुख्य विधा गुरिल्ला लड़ाई होती है, जो खासतौर से पूर्वोत्तर भारत के पहाड़ी और घने जंगलों में प्रचलित ‘प्रहार करके भागने' वाली शैली है.
नागा विद्रोह को स्पेन में बास्क आंदोलन के बाद दुनिया की दूसरी सबसे लंबे समय तक चलने वाला उग्रवाद कहा जाता है और इसे 'सभी विद्रोहों की माँ' भी कहा जाता है, जिसने मणिपुर, असम, त्रिपुरा, और मेघालय (इस क्षेत्र में पड़ोसी राज्य हैं) में उग्रवाद आंदोलनों के गठन में बड़ा योगदान दिया है.