दिल्ली: क्या आपने कभी अनुभव किया है कि जब फोन पर किसी से प्रोडक्ट, सेवा या अन्य किसी चीज के बारे में बात की हो और वो जानकारी बाद में आपको सोशल नेटवर्किंग साइट्स, सर्च इंजन आदि पर उसका विज्ञापन या जानकारी दिखे तो यकीन मानिये यह संयोग नहीं है.
निजता में दो प्रकार की जानकारियां होती हैं. पहली अर्थात् व्यक्तिगत रूप से पहचान करने वाली जानकारी (पीआईआई) और दूसरी गैर व्यक्तिगत रूप से पहचान करने वाली जानकारियां (गैर पीआईआई). पीआईआई उस जानकारी को संदर्भित करता है जिसका उपयोग किसी व्यक्ति की पहचान करने के लिए किया जा सकता है. उदाहरण के लिए बिना नाम बताए ही उम्र और घर के पते से व्यक्ति की पहचान की जा सकती है. गैर-पीआईआई वह जानकारी है जिसका उपयोग किसी व्यक्ति को ट्रेस करने या पहचानने के लिए नहीं किया जा सकता है. इसलिए मूल रूप से पीआईआई के विपरीत है.
सार्वजनिक हो जाता है जानकारी
लोग अपनी पूरी जानकारियां नेटवर्क साइट्स पर अपलोड कर देते हैं. उदाहरण के लिए छुट्टी के फोटो एलबम, नया घर इत्यादि. हम यह सोचते हैं ऑनलाइन हमारे द्वारा अपलोड की गई जानकारी पूरी तरह से सुरक्षित है, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है. जैसे ही आपने निजी जानकारी या किसी तरह की खरीद-बिक्री की जानकारी सोशल साइट्स पर डाली वो जानकारी पब्लिक हो जाती है.
कर्नल इंद्रजीत दृढ़ता से कहते हैं कि जितनी अधिक व्यक्तिगत जानकारी आप ऑनलाइन उपलब्ध कराते हैं आप उतने ही ज्यादा उत्पीड़न के शिकार हो सकते हैं. इंटरनेट पर आप जो भी करते हैं वह सब कुछ रिकॉर्ड होता है. जैसे आपका टेक्स्ट, आपका कॉल, वीडियो चैट आपका ब्राउजिंग इतिहास, आपके बैंक के डिटेल्स इत्यादि.
कोई भी आसानी से कर सकता है ट्रैक
जब आप ऑनलाइन होते हैं तो कुछ भी निजी नहीं होता है. गोपनीयता समाप्त हो जाती है और आपका डिजिटल फुटप्रिंट इंटरनेट पर होता है, जिसे कोई भी आसानी से ट्रैक कर सकता है. आपका डेटा आपके सेवा प्रदाताओं के लिए आसानी से उपलब्ध है. वे आपको भागीदार वेबसाइटों के साथ साझा करने के लिए भी मना सकते हैं. तो गोपनीयता कहां रह गई. व्यक्तिगत डेटा पर कोई नियंत्रण नहीं है. जब गोपनीयता से समझौता किया जाता है तो अवैध गतिविधि या शर्मनाक जानकारी बहुत दूर तक फैल सकती है.
आपका इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP) - वह कंपनी जो आपके इंटरनेट कनेक्शन की आपूर्ति करती है न केवल यह जानती है कि आप किन वेब साइटों पर जाते हैं, आपने किसे ईमेल किया है और किसने आपको ईमेल किया है. ये जानकारियां सरकार के साथ साझा की जा सकती हैं जिसका दुरुपयोग भी किया जा सकता है.
आप ब्राउजर पर क्या करते हैं, क्या डेटा एकत्र करते हैं, आप क्या खोज रहे हैं, आप किस तरह के व्यक्ति हैं आदि बड़ी-बड़ी कंपनियां ऐसी जानकारियों को इक्ट्ठा करती है और अप्रत्यक्ष रूप से आपको बेचते हैं.
विपणन कंपनियों को बेचते हैं व्यक्तिगत डेटा
वे आपके सभी व्यक्तिगत डेटा को विपणन कंपनियों को बेचते हैं. वे अन्य पक्षों के साथ आपकी व्यक्तिगत जानकारी साझा कर सकते हैं और आपकी जानकारी का उपयोग उनकी सभी मौजूदा या भविष्य की सेवाओं के लिए कर सकते हैं. क्या आप जानते हैं कि एक प्रमुख सामाजिक नेटवर्किंग वेबसाइट उन विज्ञापनों में आपकी पहचान का उपयोग कर सकती है जो दूसरों को दिखाए जाते हैं और आपकी जानकारी लाइसेंस के रूप में तीसरे पक्ष को देते हैं? आपने पंजीकरण पर नियम और शर्तें नहीं पढ़ी होंगी. वास्तव में ऐसी सेवाएं हैं जो आपकी व्यक्तिगत जानकारी का दुरुपयोग करेंगी भले ही आप अपनी सहमति न दें. लेकिन अधिकांश कंपनियां स्पष्ट रूप से अपनी शर्तों में बताती हैं कि आप इस बात से सहमत हैं कि वे आपके डेटा को बेचने या किसी अन्य तरीके से उपयोग करने के हकदार हैं.
सोशल नेटवर्किंग साइट्स, सर्च इंजन आदि देख सकते हैं कि हम उनकी वेबसाइटों या प्लेटफार्मों पर क्या करते हैं. वे इसे पूरा करने के लिए कई प्रकार की तकनीकों का उपयोग करते हैं, जिसमें एक वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क (एक वीपीएन), ब्राउजर फिंगर प्रिंटिंग, ट्रैकिंग पिक्सल और अन्य तकनीकों का उपयोग करके लोगों का वास्तविक आईपी पता प्राप्त कर लेती है.
पल-पल की मिलती है जानकारी
जब आप वेबिनार, समाचार पत्र और या अन्य विपणन सामग्रियों के लिए साइन अप करते हैं, तो वे आपके बारे में जानकारी एकत्र करते हैं. इसमें व्यक्तिगत विवरण जैसे कि नाम, ईमेल पता, कंपनी का नाम और संभवतः अन्य जानकारी जैसे कि तकनीकी रुचियां, आदि शामिल हैं.
यदि आपके मशीन पर आपका नाम रजिस्टर्ड है तो अक्सर रजिस्ट्रेंट पहचान को संग्रहीत कर सकते हैं. इसका मतलब है कि एक पोर्न साइट आपके पहले और अंतिम नाम, उपयोगकर्ता नाम, संग्रहीत कुकीज आदि को खींच सकती है. यह अक्सर खुफिया अभियानों के लिए किया जाता है. मोबाइल पर तो हालत और भी खराब है. जिनमें से लगभग सभी में अंतर्निहित जीपीएस सेंसर हैं जिसमें आप कहां है इसकी जानकारी मिल सकती है.
स्मार्टफोन तेजी से हमारे पर्स, हमारे कैमरे, हमारी नोटबुक, यहां तक कि हमारे अकाउंट तक भी पहुंच रखते हैं. जब आप मोबाइल फोन पर नए एप इंस्टॉल करते हैं, तो आपका फ़ोन आपको एप की एक्सेस आवश्यकताओं की पुष्टि करने के लिए कहता है. आमतौर पर, एप्स को आपकी फाइलों, आपका कैमरा और शायद जीपीएस जैसी चीजों तक पहुंचने की आवश्यकता होती है. कुछ एप्स को और भी अधिक एक्सेस की आवश्यकता हो सकती है. आपके संपर्क, आपकी प्रोफाइल की जानकारी आदि. जबकि इनमें से कुछ चीजों तक एप्लिकेशन एक्सेस दिए बिना स्मार्टफोन का उपयोग करना असंभव है. आपको हर एप की एक्सेस शर्तों से सहमत नहीं होना चाहिए. कई एप विज्ञापनदाताओं को आपकी जानकारी बेचकर पैसे कमाते हैं. इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि वे वास्तव में आवश्यकता से अधिक पहुंच चाहते हैं. उदाहरण के लिए क्या आपके टॉर्च एप को आपकी लोकेशन जानने की जरूरत है?