हैदराबादः मेक इन इंडिया पहल के आह्वान के बीच केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है. इसके तहत चीन से एक्टिव फार्मस्यूटिकल्स इनग्रींडियंट्स की खरीद को कम करने के लिए सरकार देश में दवा निर्माण उद्योग विकसित करने का सोच रही है, ताकि दवा निर्माण के लिए जिस भी इनग्रीडियंट्स की जरूरत हो वो देश में उपलब्ध हो जाए. चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद के बीच भारत की आत्म निर्भरता को बढ़ावा देने के लिए यह एक सकारात्मक पहल है.
फार्मास्युटिकल्स विभाग के अधिकारियों ने कहा कि ड्रग पार्क में कॉमन फैसिलिटी सेंटर बनाने के लिए राज्य सरकारें 100 करोड़ रुपये तक सहायता प्रदान करेगी. फार्मास्युटिकल्स विभाग ने एक योजना तैयार की है,जिसका नाम है 'असिस्टेंस टू बल्क ड्रग इंडस्ट्री फॉर कॉमन फैसिलिटी सेंटर' इसके तहत किसी भी ड्रग पार्क में कॉमन फैसलिटी सेंटर बनाने के लिए 100 करोड़ का योगदान दिया जाएगा.
फार्मास्युटिकल्स विभाग ने इस योजना के तहत आंध्र प्रदेश शहरी प्रचार निगम लिमिटेड, तेलंगाना स्टेट इंडस्ट्रियल इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरपोरेशन लिमिटेड और हिमाचल प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड को पहले ही सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है.
विभाग ने कॉमन फैसिलिटी सेंटर (सीएफसी) के विकास के लिए 2 साल की समय सीमा भी तय की है. सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि थोक दवाओं और दवाओं के इनग्रीडियंट्स का दो तिहाई हिस्सा चीन से आयात किया जाता है. ये आयात चीन से की गई आर्थिक संधि के आधार पर होता है.
वर्ष 2018-19 में भारत ने चीन से $ 2405.42 मिलियन मूल्य के 67.56 प्रतिशत दवा आयात किए. रसायन और उर्वरक मंत्रालय के एक दस्तावेज में कहा गया है," 2018-19 में थोक दवाओं और दवा इनग्रीडियंट्स का कुल आयात यूएस $ 3560.35 मिलियन था जिसमें से यूएस $ 2405.42 मिलियन का आयात चीन से किया गया था, जो कि 67.56 प्रतिशत है.
यह मार्च में संसद के अंतिम सत्र में रसायन और उर्वरक मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने भी कहा था. भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा और मूल्य के मामले में 14 वां सबसे बड़ा उद्योग है.भारत ने 2018-19 में 14389 मिलियन अमेरिकी डॉलर की दवा का निर्यात किया था. देश ने 2018-19 में 3911 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के बल्क ड्रग्स / ड्रग इंटरमीडिएट का भी निर्यात किया.