हैदराबाद : संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 1994 को परिवारों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में घोषित किया गया. संगठन की ओर से यह बदलती सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं के लिए एक प्रतिक्रिया थी, जो आज तक दुनिया के कई क्षेत्रों में परिवार इकाइयों की संरचना और स्थिरता को प्रभावित करती है. 15 मई को मनाया जाने वाला परिवारों का अंतरराष्ट्रीय दिवस, 1994 के दौरान शुरू किए गए कार्यों को प्रतिबिंबित करता है. साथ ही साथ यह दुनियाभर के परिवारों, लोगों, समाजों और संस्कृतियों के महत्व को मनाने का भी अवसर है. यह 1995 से हर साल आयोजित किया जाता है.
क्या है परिवार दिवस का उद्देश्य
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने बुनियादी परिवार प्रणाली के महत्व को समझा और 1993 में 15 मई को अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस के रूप में घोषित किया.
इसके बाद यह दिन सबसे पहले 15 मई 1994 को मनाया गया. परिवार प्रणाली सामाजिक एकजुटता और निर्मल समाज का सबसे आवश्यक तत्व है. इस दिवस के लिए संयुक्त राष्ट्र 1996 से वार्षिक थीम पेश करता आ रहा है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने सार्वजनिक नीति-निर्माताओं से परिवार प्रणाली में आने वाली बाधाओं का निपटान करने का आग्रह किया है. माता-पिता की कामकाजी परिस्थितियां उन्हें उनके परिवारों में स्मार्ट भूमिका निभाने के लिए प्रभावित करती हैं.
परिवारों का अंतरराष्ट्रीय दिवस, उन नीति-निर्माताओं का ध्यान आकर्षित करने का एक स्रोत है, जो आवश्यकता-आधारित नीतियों को परिवारिक स्तर पर बच्चों के लिए पोषण का माहौल विकसित करने के लिए कार्य करते हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि एक बेकार परिवार प्रणाली एक कार्यात्मक समाज का निर्माण नहीं कर सकती है.
अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस, थीम 2020
'परिवार विकास : कोपेनहेगन और बीजिंग + 25'
कोपेनहेगन घोषणा (Copenhagen Declaration) और बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन (Beijing Platform for Action) की 25वीं वर्षगांठ सबसे चुनौतीपूर्ण वैश्विक स्वास्थ्य और सामाजिक संकटों में से एक के समय पर आई है.
2020 कोविड-19 महामारी सबसे कमजोर व्यक्तियों और परिवारों की रक्षा करने वाली सामाजिक नीतियों में निवेश के महत्व पर ध्यान केंद्रित करती है.
यह ऐसे परिवार हैं, जो संकट का खामियाजा भुगतते हैं, अपने सदस्यों को नुकसान से बचाते हैं, स्कूली बच्चों की देखभाल करते हैं और साथ ही साथ अपने काम की जिम्मेदारियों को भी निभाते हैं.
कोपेनहेगन घोषणा (Copenhagen Declaration) -
कोपेनहेगन घोषणा (Copenhagen Declaration) ने परिवार को समाज की मूल इकाई के रूप में मान्यता दी और स्वीकार किया कि परिवार समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और इसलिए वह व्यापक सुरक्षा और समर्थन प्राप्त करने का हकदार है.
सरकारों ने आगे माना कि अपने सदस्यों के अधिकारों, क्षमताओं और जिम्मेदारियों पर ध्यान देने के साथ परिवार को मजबूत किया जाना चाहिए.
गौरतलब है कि इस घोषणा में यह भी मान्यता है कि 'अलग-अलग सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक प्रणालियों में परिवार के विभिन्न रूप मौजूद हैं.'
परिवार दिवस का चिन्ह
परिवारों के अंतरराष्ट्रीय दिवस के प्रतीक में लाल रंग की छवि के साथ एक हरा चक्र होता है. इसमें दिल और घर जैसे सरल चित्रों को शामिल किया गया हैं.
यह चिन्ह इंगित करता है कि परिवार समाज का केंद्र है और यह सभी उम्र के लोगों को एक स्थिर और सहायक घर प्रदान करता है.
तथ्य-दुनिया
1995 में करीब 89 प्रतिशत देशों ने मातृत्व अवकाश अपनाया था, वहीं 2015 तक यह दर बढ़कर 96 प्रतिशत पहुंच चुकी है.
आज केवल 57 प्रतिशत महिलाएं (जो विवाहित हैं या फिर घरेलू संघ में शामिल हैं) यौन संबंधों, गर्भ निरोधक और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग के बारे में निर्णय लेने में सक्षम हैं.
भारतीय परिवार
अधिकांश समाजशास्त्रीय अध्ययनों में एशियाई और भारतीय परिवारों को बड़ा, पितृसत्तात्मक, सामूहिक और संयुक्त परिवारों के रूप में माना जाता है. इसमें तीन या अधिक पीढ़ियां साथ मिलकर रह रही होती हैं.
संरचनात्मक रूप से भारतीय संयुक्त परिवार में तीन से चार जीवित पीढ़ियां शामिल होती हैं, जिनमें दादा-दादी, माता-पिता, चाचा, चाची, भतीजी और भतीजे शामिल होते हैं.
सभी एक ही घर में एक साथ रहते हैं और एक ही रसोई का उपयोग करते हैं और मिलजुल कर घर से भी खर्चों को आपस में बांटते हैं.
इस तरह की पारिवारिक संरचना में बदलाव कम ही देखने को मिलता है. लेकिन बुजुर्गों और माता-पिता के निधन के बाद परिवार की इकाइयों में नुकसान भी देखा जाता है. ज्यादातर इसका कारण नए सदस्यों जैसे बाहर के बच्चे या फिर पत्नियां होती हैं.
एकल परिवारों (केवल मां-बाप और बच्चे) की भी आज सबसे अधिक संख्या है. वहीं विस्तारित परिवार (एक या अधिक माता-पिता या रिश्तेदार) भी आम हैं. एकल-पिता परिवारों की तुलना में एकल-मातृ गृह अधिक हैं और यह 5.4 प्रतिशत तक हैं.
बदलते भारतीय परिवार
हालांकि, भारत में एकल परिवार का भी चलन है. लेकिन यूनाइटेड नेशन की 2019 की विश्व महिला रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एकल-मातृ परिवारों का प्रतिशत बढ़ रहा है.
भारत में अन्य सभी क्षेत्रों की तुलना में महिला कर्मचारियों की संख्या बहुत कम है. जैसे-जैसे एकल परिवार प्रणाली ने अपने पैर पसारे, वैसे-वैसे 'कपल ओनली' (couple only) परिवारों का भी प्रतिशत बढ़ा है. एकल माताओं का प्रतिशत भी बढ़ गया है, जो देश में तलाक की बढ़ती दरों के अनुरूप है.
25-54 आयु वर्ग की आधी से अधिक अविवाहित महिलाएं श्रमिक हैं. यह अनुपात तब का है, जब वह संभवतः पारिवारिक बाधाओं या आवश्यकताओं के कारण विवाहित होती हैं.
एकल पुरुषों की तुलना में विवाहित पुरुषों का एक उच्च प्रतिशत श्रम बल का हिस्सा है, जिसका अर्थ है कि विवाह उनकी भागीदारी को प्रभावित नहीं करता है.
कोविड-19 के बीच परिवारों के अंतरराष्ट्रीय दिवस का महत्व
यह कहना गलत नहीं होगा कि इस महामारी ने हमारी सामाजिक आर्थिक व्यवस्था पर तो आफत ला दी है, लेकिन इसने हमें आधुनिकीकरण की हलचल में अपने खोए परिवार के मूल्य के बारे में भी सोचने के लिए मजबूर कर दिया है.
20वीं सदी ने हमें कई जैविक और सामाजिक विकास दिए हैं. हालांकि, इन सब में हमारी नैतिकता, हमारी व्यक्तिगत उपस्थिति और हमारा स्नेह भी कही खो गया था.
आज जब पूरी दुनिया एक संकट से गुजर रही है और हम सभी को अलगाव की स्थिति में रहना पड़ रहा है, ऐसे में भी एक परिवार को हमसे दूर नहीं रखा गया है.
इस संकट में हमारी खूनी रिश्ते ही हमें राहत पहुंचा रहे हैं. परिवार ने हमें तभी भी गले लगाया है, जब हमें उस दुनिया ने छोड़ दिया, जिसके लिए हम हमेशा जूझते रहे.
अब इसलिए यह महामारी हम में से कई लोगों के लिए एक आपदा है क्योंकि यह लगातार हमसे हमारे प्रिय लोगों को छीन रही है, लेकिन फिर भी कुछ लोगों के लिए यह आशीर्वाद भी साबित हो रही है, क्योंकि इसकी ही बदौलत हम आज अपने भूले हुए परिवार की कीमत फिर से पहचान पा रहे हैं.
परिवार अंतर-सहभागिता संबंधों का केंद्र बनते हैं, जो संकट में हमारा साथ देते हैं. वहीं आर्थिक दुर्बलता के तहत गरीबी भी गहराती जा रही है. अनिश्चितता के इस समय में तनाव बढ़ रहा है, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं और बच्चों के खिलाफ हिंसा भी बढ़ रही है.
यही कारण है कि अब कमजोर परिवारों, आय खो चुके लोगों, बेघर और बेसहारा लोगों, छोटे बच्चों के साथ-साथ वृद्ध और विकलांग व्यक्तियों को पहले से कहीं ज्यादा सहायता की जरूरत है.
आज दुनिया कोविड-19 संकट से संघर्ष कर रही है, यही हमारी अर्थव्यवस्थाओं और समाजों को सभी के लिए अधिक समानता को बढ़ावा देने के तरीके पर पुनर्विचार करने और बदलने का वास्तविक अवसर है.
ऐसा करने से यह स्पष्ट होता है कि परिवारों में अधिक समानता के बिना लिंग समानता को हासिल नहीं किया जा सकता. इसी बात के मद्देनजर जहां हमें पहुंचना है, वहां के लिए बीजिंग प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन एक दूरदर्शी रोडमैप प्रदान करता है.