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'बाहुबली' से 'संत' बनने की कोशिश में पप्पू यादव

बिहार के बाहुबली नेता पप्पू यादव 1990 से ही राजनीति में सक्रिय रहे हैं. राजनीति में उनकी मौजूदगी बिहार में अपराध और राजनीति के गठजोड़ को दर्शाती है. हालांकि, वह कभी भी अपने आप को 'बैडमैन' नहीं मानते हैं. उनके राजनीतिक सफर पर बिहार ब्यूरो प्रमुख अमित भेलारी का एक विश्लेषण.

पप्पू यादव
पप्पू यादव

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Published : Oct 12, 2020, 9:04 PM IST

Updated : Oct 13, 2020, 6:05 AM IST

पटना : वह खुद को विद्रोही और गरीब व दलितों का मसीहा कहते हैं. उन्हें बिहार के 'रॉबिन हुड' के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि, वर्ष 1990 के बाद के उनके राजनीतिक सफर को करीब से देखने पर यह साबित हो जाता है कि वह कुछ और नहीं बल्कि बिहार के एक 'बैडमैन' हैं.

राजनीति में प्रवेश करने से बहुत पहले पप्पू यादव ने कॉलेज के दिनों में एक 'अपराधी' व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाई. 53 वर्षीय पप्पू के खिलाफ 30 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज हैं. उन्होंने 1990 में अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और वह सिंहेसरस्थान विधानसभा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में पहली बार विधायक बने.

पप्पू यादव का राजनीतिक सफर

कोसी क्षेत्र में 90 के दशक की शुरुआत में जमकर खून खराबा हुआ था, जिसमें खूंखार अपराधी से राजनेता बने पप्पू यादव और आनंद मोहन (राजपूत नेता जो अभी जेल में हैं) के बीच जातीय वर्चस्व की लड़ाई में सैकड़ों लोग मारे गए थे. दोनों में भयंकर टकराव हुआ था और दोनों एक-दूसरे का चेहरा भी नहीं देखना चाहते थे.

पप्पू के लिए हत्या और अपहरण का आरोप कोई नई बात नहीं है. राजनीति में उनकी मौजूदगी बिहार में अपराध और राजनीति के गठजोड़ को दर्शाती है. बहुत कम समय में वह कोसी, पूर्णिया, कटिहार, मधेपुरा और सुपौल जैसे सीमांचल क्षेत्र के जिलों में लोकप्रिय हो गए.

आपराधिक कारणों से सुर्खियों में रहे पप्पू यादव.

दिलचस्प बात यह है कि 13 साल से अधिक समय जेल में बिताने वाले पप्पू 16 वीं लोकसभा में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले सांसद थे. स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में 1991, 1996 और 1999 में तीन बार पूर्णिया से और राजद के टिकट पर दो बार 2004 और 2014 में मधेपुरा से सांसद बने.

पांच बार सांसद रहे पप्पू यादव को माकपा विधायक अजीत सरकार की हत्या के मामले में पहली बार 24 मई 1999 को गिरफ्तार किया गया था. तब वह लंबे समय तक जेल में रहे. हत्या के मामले में गिरफ्तार होने के बाद, उन्हें पटना बेउर जेल में सलाखों के पीछे डाल दिया गया था.

गरीबों के तथाकथित मसीहा के बारे में कई प्रसिद्ध कहानियां हैं. पप्पू ने अपनी जमानत का जश्न मनाने के लिए एक बार जेल के कैदियों के लिए एक भव्य पार्टी आयोजित की थी. इस बीच, सुप्रीम कोर्ट से उन्हें तीन बार जमानत मिली, लेकिन उनकी जेल की गतिविधियां सार्वजनिक हो जाने के बाद उन्हें दिल्ली की तिहाड़ जेल में स्थानांतरित कर दिया गया. वर्ष 2004 में उनके राजनीतिक करियर ने तब एक महत्वपूर्ण मोड़ लिया जब राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने दो संसदीय क्षेत्रों छपरा और मधेपुरा से लोकसभा का चुनाव जीता. लालू ने छपरा सीट रखने का विकल्प चुना और मधेपुरा सीट पप्पू यादव को दे दी, जिस पर बाद में पप्पू की जीत हुई.

पप्पू यादव से जुड़ी रोचक बातें.

पप्पू हालांकि जेल में थे, लेकिन उन्होंने अपराध और राजनीति का अपना नेटवर्क वहीं से जारी रखा. वे बेउर जेल से ही अपना नेटवर्क चला रहे थे. यही कारण था कि उसके सेल में छापेमारी की गई. छापेमारी के दौरान उनके जूते से एक मोबाइल फोन मिला था और यह पाया गया कि उस फोन से 650 से अधिक कॉल किए गए थे. दिलचस्प बात ये थी कि कई कॉल तत्कालीन मंत्री को किए गए थे.

चौंकाने वाली बात ये थी कि बेउर जेल से जेल मंत्री राघवेंद्र प्रताप सिंह, सिंचाई मंत्री जगदानंद सिंह और बिजली मंत्री श्याम रजक को फोन किया गया था. उन दिनों राबड़ी देवी बिहार की मुख्यमंत्री थीं. नाम न छापने की शर्त पर ईटीवी भारत से बात करते हुए एक तत्कालीन आईपीएस अधिकारी ने कहा कि इसी तरह की एक कॉल मुख्यमंत्री के निजी सचिव को भी की गई थी.

वर्ष 2008 में उन्हें पूर्णिया से माकपा के विधायक अजीत सरकार की हत्या में दोषी ठहराया गया था. सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें तेजतर्रार विधायक की हत्या के आरोपों में दोषी ठहराया था. सरकार खेत मजदूरों से जुड़े मुद्दे के मामले में अच्छा काम कर रहे थे. 14 मई 1998 को सरकार को उनके ड्राइवर हरेंद्र शर्मा और पार्टी के एक कार्यकर्ता अशफाकुर रहमान के साथ चलती कार में गोलियों से छलनी कर दिया था. एक साथ तीन लोगों की हत्या की गई थी. इस मामले में सीबीआई ने पप्पू यादव समेत पांच लोगों के खिलाफ आरोप-पत्र दायर किया था. जब सीबीआई अदालत ने फैसला सुनाया था, तो वह कटघरे में रो पड़े थे और न्यायाधीश से इस मामले में ढिलाई दिखाने का आग्रह किया था. बाद में उन्होंने वजन कम करने के लिए सर्जरी कराने के नाम पर जमानत देने अदालत से अपील की थी, हालांकि उनकी अपील खारिज कर दी गई थी.

'खूंखार' डॉन से राजनेता बने पप्पू के लगातार 12 वर्षों तक जेल में रहने के बाद पटना उच्च न्यायालय ने सरकार के मामले में वर्ष 2013 में बरी कर दिया. हालांकि, सीबीआई ने इस आदेश के खिलाफ जल्द ही अपील की और अब तक यह मामला शीर्ष अदालत में लंबित है.

वह वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव नहीं लड़ सके लेकिन पत्नी रंजीत रंजन की जीत सुनिश्चित किया. रंजीत रंजन कांग्रेस के टिकट पर सुपौल संसदीय सीट से चुनाव लड़ीं और जीतीं. पप्पू ने रंजीत रंजन के साथ 1994 में ही प्रेम विवाह किया था. उनकी प्रेम कहानी एक टेनिस कोर्ट से शुरू हुई और पत्नी के रूप में रंजीत हमेशा उनके जीवन के सबसे कठिन दौर में भी उनके साथ खड़ी रहीं. भारतीय संसद ने संभवत: पहली बार पति-पत्नी को दो अलग-अलग राजनीतिक दलों से लोकसभा के सदस्य के रूप में देखा है.

वह सार्थक रंजन और प्रकृति रंजन दो बच्चों के पिता हैं और पुराने गाने गाना पसंद करते हैं. उन्हें बचपन में अपने दादा लक्ष्मी प्रसाद मंडल से पप्पू नाम मिला था. मददगार स्वभाव की वजह से उन्हें कोसी क्षेत्र की आवाज़ भी माना जाता है.

पप्पू यह कहने में गर्व महसूस करते हैं कि वह गरीबों का शोषण करने वाले अमीर लोगों के लिए बाहुबली (बलवान) हैं और वह सिर्फ गरीबों को न्याय दिलाते हैं. जेल में रहने के दौरान पप्पू ने अपनी छवि को बदलने की कोशिश की और उस समय उन्होंने 'द्रोहकाल का पथिक' नाम से एक किताब लिखी जिसे वे अपनी जीवनी कहते हैं.

पप्पू मधेपुरा विश्वविद्यालय के बीएन मंडल कॉलेज से राजनीति विज्ञान में स्नातक हैं. उन्होंने नई दिल्ली स्थित इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू) से मानवाधिकार में और आपदा प्रबंधन में स्नातकोत्तर डिप्लोमा किया है. उन्होंने इग्नू से ही सामाजिक विज्ञान में स्नातकोत्तर डिग्री भी हासिल की है.

वर्ष 2015 में पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने के कारण उन्हें राजद से निकाल दिया गया था. उसके बाद उन्होंने जन अधिकार पार्टी का गठन किया. वह 'डॉन' जो कभी सीमांचल की गलियों में घूमता था, उसने हाल ही में राज्य की राजधानी पटना पर अपना ध्यान केंद्रित कर रखा है.

पिछले साल, पटना में बाढ़ के दौरान उनका 'रॉबिन हुड' व्यक्तित्व सबके सामने आया था. उन्होंने पानी में फंसे लोगों को भोजन और दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए अपने स्तर से अतिरिक्त प्रयास किए. इस सभी अच्छे काम के बावजूद जब से उन्होंने अपनी पार्टी बनाई है उन्हें कोई राजनीतिक सफलता नहीं मिली है.

यह देखना दिलचस्प होगा कि जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लगातार चौथी बार सत्ता हासिल करने का अपना लक्ष्य तय किया है तो लोग इस 'बैडमैन' पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं जो बिहार के इस बदले हुए राजनीतिक परिदृश्य में 'संत' बनने की कोशिश में है.

Last Updated : Oct 13, 2020, 6:05 AM IST

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