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501 रु में बापू से खरीदा था उपहार, आज भी सहेज रहा यह परिवार

इस साल महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती मनाई जा रही है. इस अवसर पर ईटीवी भारत दो अक्टूबर तक हर दिन उनके जीवन से जुड़े अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा कर रहा है. हम हर दिन एक विशेषज्ञ से उनकी राय शामिल कर रहे हैं. साथ ही प्रतिदिन उनके जीवन से जुड़े रोचक तथ्यों की प्रस्तुति दे रहे हैं. प्रस्तुत है आज 10वीं कड़ी...

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Published : Aug 25, 2019, 7:04 AM IST

Updated : Sep 28, 2019, 4:34 AM IST

छिंदवाड़ा: महात्मा गांधी की 150वीं जयन्ती पर पूरा देश उन्हें याद कर रहा है. उन्होंने सबसे पहले अछूतों के दर्द को समझा और उनके हक की लड़ाई लड़ी. बापू के इन्हीं कामों ने उन्हें महात्मा बना दिया. वह आज भी लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं. मध्यप्रदेश में गांधी के कदम जहां-जहां पड़े, वो जगह हमारी तारीख पर दर्ज है, जो बापू की यादों को ताजा करता है.

छुआछूत और भेदभाव के खिलाफ आंदोलन के दौरान गांधीजी देश के एक कोने से दूसरे कोने का दौरा कर रहे थे, उसी दौरान वे दूसरी बार यानि 29 नवंबर 1933 को छिंदवाड़ा पहुंचे थे. तब बुधवारी बाजार में बापू ने छितिया बाई नाम की एक महिला के बाड़े में एक जनसभा की थी.

छिंदवाड़ा से ईटीवी भारत की विशेष रिपोर्ट

इस सभा के दौरान किसी अनजान व्यक्ति ने गांधी को उनकी तस्वीर जड़ा एक चांदी का पानदान भेंट किया था. जिसे उन्होंने छिंदवाड़ा के हिंदू नेता गोविंद राम त्रिवेदी को ही 501 रुपये में बेच दिया था. जिसने उस पानदान को खरीदा, आज भी वह परिवार उसे बतौर स्मृति सहेज कर रखे हुए है. यह आज भी उस परिवार के लिए किसी धरोहर से कम नहीं है.

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बता दें कि पानदान बेचने के पहले गांधीजी ने फव्वारा चौक पर उसे नीलामी के लिए रखा था, ताकि उससे मिले पैसे को आंदोलन में लगा सकें, क्योंकि उस पानदान का उनके पास कोई उपयोग नहीं था, लेकिन नीलामी में पानदान की कीमत महज 11 रुपये लगी, जिसके बाद गांधी जी ने पानदान को नीलाम करने से मना कर दिया. इस पानदान की खासियत ये थी कि इसमें गांधीजी की प्रतिमा उकेरी गयी थी.

बापू को भेंट किया हुआ पानदान खरीदने वाले छिंदवाड़ा के पंडित गोविंद राम त्रिवेदी की बहू बताती हैं कि उनके ससुर गोविंद राम बापू से मिलकर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने हिंदू महासभा का दामन छोड़ दिया और कांग्रेस के साथ हो लिए, इस दौरान उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. जिससे उनका स्वास्थ्य बिगड़ता गया और 1945 में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.

त्रिवेदी परिवार आज भी बतौर बापू की यादें उस पानदान की धरोहर सहेज रखा है. गांधी के आगमन से छिंदवाड़ा राजनीतिक गतिविधियों का नया केंद्र बनकर उभरा था.

Last Updated : Sep 28, 2019, 4:34 AM IST

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