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राजस्थानः ऐतिहासिक आनासागर झील जहां लगता था कभी जायरीनों का डेरा, भ्रष्टाचार तो कभी विकास के नाम पर सिमटा दायरा - Rajasthan Hindi news

सदियों से आकर्षण का केंद्र रही ऐतिहासिक आनासागर झील भ्रष्टाचार की भेंट (Anasagar Lake of Ajmer) चढ़ चुकी है. इसके कारण झील की परिधि और वास्तविकता सिमट के रह गई है. आनासागर के जल को पवित्र मानने वाले जायरीन तीर्थयात्रा करने से पहले झील के रामघाट पर स्नान करते थे. लेकिन बाद में क्षेत्र में कंक्रीट के जंगल उगते चले गए. पढ़िए ये रिपोर्ट..

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ऐतिहासिक आनासागर झील जहां लगता था कभी जायरीनों का डेरा.

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Published : Nov 12, 2022, 9:49 PM IST

अजमेर.शहर के बीचों-बीच स्थित आनासागर झील यहां के लोगों के लिए वरदान है. चारों ओर पहाड़ियों से घिरी झील की (Anasagar Lake of Ajmer) नैसर्गिक सुंदरता सदियों से आकर्षण का केंद्र रही है. झील का यह स्थान कभी जंग का मैदान रहा है. यहां कई लड़ाइयां लड़ी गई और भीषण रक्तपात भी हुआ. झील के किनारे पहाड़ी पर चिश्ती ने इबादत के लिए अपना स्थान बनाया था. यही वजह है कि ख्वाजा के दरगाह आने वाले जायरीन आनासागर झील भी आते थे. सन् 1975 के बाद से झील की गहराई और परिधि लगातार घटती चली गई जो अब भी जारी है. हालत यह है कि भूमाफिया ही नहीं सरकारी एजेंसियां आज भी झील को समेटने का काम कर रही हैं.

1137 में चौहान वंश के राजा और सम्राट पृथ्वीराज के दादा आनाराज (अर्णोराज) ने चन्द्रा नदी का बहाव रोककर इस क्षेत्र को झील में तब्दील कर दिया था. यू कहें कि आनासागर झील प्राकृतिक झील नहीं मानव निर्मित झील है. सदियों से आनासागर झील की सुंदरता बरकरार है. लेकिन 1975 के बाद से झील को ऐसी नजर लगी कि क्षेत्र में कंक्रीट के जंगल उगते चले गए. झील क्षेत्र में कई अवैध कॉलोनियां बस गई हैं, बड़े-बड़े व्यावसायिक प्रतिष्ठान बन चुके हैं. इन सबको हटाकर झील को अपने मूल स्वरूप में लाना शासन और प्रशासन के लिए मुश्किल का काम है. कुछ लोग झील को बचाने की मुहिम छेड़े हुए हैं तो कुछ अदालत की शरण लेकर या शासन और प्रशासन से सवाल करके झील के मुद्दे को जिंदा रखे हुए हैं.

ऐतिहासिक आनासागर झील जहां लगता था कभी जायरीनों का डेरा.

आनासागर झील बचाओ संघर्ष समिति बनाकर कागज के घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं, जबकि अतिक्रमी वर्षों से काबिज हैं. झील पर सबसे पहली चोट हाउसिंग बोर्ड और तत्कालीन यूआईटी ने दी थी. झील क्षेत्र की जमीन को कृषक से लेकर भू रूपांतरण कर पहली रिहायशी कॉलोनी बनाई गई. इसके बाद तो झील क्षेत्र को कब्जे में करने की होड़ मच गई. झील क्षेत्र के काश्तकारों से भू-माफियाओं ने जमीनें खरीद ली. झील क्षेत्र में कॉलोनियों का निर्माण होता गया. वहीं झील के किनारों पर व्यवसायिक प्रतिष्ठान बन गए.

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यह है नियम :नदी, नाले, झील और तालाब की जमीन पर जब तक पानी भरा हुआ है तब तक वह सरकार का (Encroachments near Anasagar Lake of Ajmer) है. पानी सूख जाने पर जमीन काश्तकार की मानी जाती है. नियमों से स्पष्ट है कि काश्तकार झील, तालाब, नदी, नाले की जमीन को बेच नहीं सकते हैं. बावजूद इसके झील की जमीन को कई काश्तकारों ने बेच दिया. इस कारण झील क्षेत्र का दायरा लगातार घटता चला गया. वहीं 1975 की बाढ़ के बाद झील की भराव क्षमता 16 से घटाकर 13 कर दी गई. आनासागर झील में वेटलैंड का दायरा भी सिमट गया है. बता दें कि वेटलैंड पर सदियों से प्रवासी पक्षी सर्दियों के मौसम में सात समंदर पार से आते रहे हैं.

झील के इतिहास पर एक नजर :1975 से पहले तक झील की परिधि 12 मील तक हुआ करती थी, जो बाद में सिमट कर 13 किलोमीटर तक (History of Anasagar Lake of Ajmer) और वर्तमान में झील 3 किलोमीटर के दायरे में रह गई है. वर्तमान में भी इसके बड़े क्षेत्र पर अतिक्रमण है. झील के इतिहास पर नजर डालें तो अजमेर में चौहान वंश का शासन रहा है. चौहान वंश के राजा आनाराज (अर्णोराज) ने झील का निर्माण करवाया था. आनाराज से ही नाम झील का आनासागर पड़ा. बताया जाता है कि आनासागर झील रक्त रंजित भूमि पर बनी हुई है. यहां चौहानों और यमनी के सुल्तान के बीच कई बार युद्ध हुआ, जिसमें चौहानों ने सुल्तान की सेना को कई बार करारी शिकस्त दी.

युद्ध में इतना रक्त बहा कि भूमि लाल हो गई थी. अर्णोराज ने इस स्थान को खुदवाया और इसे आनासागर झील में तब्दील कर दिया. चौहान वंश के रहते ही सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती भी अजमेर में आए. झील के किनारे पहाड़ी पर चिश्ती ने इबादत के लिए अपना स्थान बनाया. बताया जाता है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती झील के पानी का उपयोग पीने, नहाने और वजू करने के लिए किया करते थे. यही वजह है कि ख्वाजा गरीब नवाज को चाहने वाले आनासागर झील के पानी को पवित्र मानते हैं. मुगल शासन में भी आनासागर झील पर सुंदर बारादरी और उसके नीचे दौलत बाग का निर्माण हुआ था. मुगलों के बाद आनासागर झील ने अंग्रेजों को भी प्रभावित किया. आजादी के बाद से ही आनासागर झील अजमेर आने वाले तीर्थयात्रियों को लुभाती रही है.

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राम प्रसाद घाट का अस्तिव हुआ खत्म :दरगाह आने वाले जायरीन रामप्रसाद घाट पर स्नान करके दरगाह जियारत के लिए जाया करते थे. 5 वर्ष पूर्व तक यही स्थिति थी. लेकिन झील के चारों ओर अजमेर स्मार्ट सिटी लिमिटेड की ओर से पाथवे बना दिया गया. इससे राम प्रसाद घाट का अस्तित्व भी खत्म हो गया. वहीं नगर निगम संस्था ने भी स्मार्ट सिटी की आड़ में झील के किनारे व्यवसायिक फूड कोर्ट भी बन गया है जो ठेके पर दिया जा चुका है.

यूआईटी के पूर्व चैयरमेन धर्मेश जैन ने आनासागर झील को बचाने के लिए संघर्ष समिति बनाई है. लेकिन इससे पहले भी कई जागरूक लोगों ने अदालत के माध्यम से झील को बचाने की मुहिम जारी रखी है. अब्दुल रहमान याचिकाकर्त्ता पर हाईकोर्ट ने 10 वर्ष पहले झील के कैचमेंट एरिया से अतिक्रमण हटाने के आदेश जारी हुए थे. लेकिन कोर्ट के आदेश पर शासन और प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की. बल्कि इसके बाद भी आनासागर झील क्षेत्र में लगातार अतिक्रमण और अवैध निर्माण होते रहे. इनमें सबसे बड़ा उदाहरण पाथवे, फूड कोर्ट भी है, जो सरकारी स्तर पर हुआ है.

पूर्व यूआईटी चेयरमैन धर्मेश जैन ने बताया कि आनासागर झील वर्षों से भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी हुई है. जिसको जहां मौका मिला उसने झील को नुकसान पहुंचाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है. जैन ने कहा कि आनासागर झील अजमेर की धरोहर है और इस धरोहर को बचाने की जिम्मेदारी शहर के सभी सजग लोगों की है. समिति आनासागर झील को बचाने में जुटी हुई है.

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पाथवे ने कम कर दी परिधि :आनासागर झील में अजमेर स्मार्ट सिटी लिमिटेड की ओर से चारों ओर पाथवे का निर्माण किया गया है. यहां तक कि पाथवे के निर्माण में काश्तकारों की ओर से लगाई गई आपत्तियों को भी दरकिनार किया गया. यहां तक कि महावीर कॉलोनी से लेकर ऋषि घाटी तक पाथवे के लिए आनासागर झील में टनों मिट्टी डाली गई. पाथवे के निर्माण से झील का दायरा पहले से और कम हो गया है. यह सब एक ही रात में नहीं हुआ. झील को नुकसान पहुंचाने और झील की बेशकीमती जमीन पर काबिज होने का खेल काफी पुराना है.

झील में नो कंस्ट्रक्शन जोन की पालना नहीं होने पर जांच के लिए बनी कमेटी के सदस्य अधिकारी जयपुर से अजमेर आए हुए हैं. आनासागर झील को लेकर जितनी भी शिकायतें और वास्तविक स्थिति है उस पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है. स्वायत्त शासन विभाग के अधिकारियों की टीम हाईकोर्ट के 2011 के आदेश की पालना के तहत झील में नो कंस्ट्रक्शन जोन होने के बावजूद निर्माण कार्य और अनाधिकृत रूप से मिट्टी भराव के कार्य को लेकर जांच कर रही है. टीम अपनी जांच रिपोर्ट स्वायत्त शासन विभाग के शासन सचिव डॉ जोगाराम को सौंपेगी. झील को लेकर पहले भी कई शिकायतें हुई. इन शिकायतों पर जांच कमेटी बैठी और रिपोर्ट भी बनी, लेकिन हर बार खानापूर्ति कर दी गई. इस बार भी कमेटी जांच कर रही है. अब देखने वाली बात यह होगी कि कमेटी सरकार की ही संस्थाओं के खिलाफ रिपोर्ट तैयार कर पाती है या नहीं.

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