बगहा में मधुमक्खी पालन पर देखें रिपोर्ट बगहा :घर के कामकाज के साथ साथ महिलाएं अब पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रही हैं. दरअसल, घर के कामकाज से जो समय बच रहा है, उसका सदुपयोग कर महिलाएं मधुमक्खी पालनकर उससे शहद निकाल रहीं हैं और बाजारों में बेच कर अच्छी आमदनी कर रहीं हैं. वाल्मीकि टाइगर रिजर्व से सटे आदिवासी बहुल कदमहिया गांव में तकरीबन 35 महिलाएं मधुमक्खी पालन से जुड़ी हैं.
एक माह में 60 से 70 किलो शहद का उत्पादन : आदिवासी महिलाओं को मधु पालन का गुण सीखा रहे सत्येंद्र सिंह का कहना है कि एक माह में 60 से 70 किलो शहद का उत्पादन हो रहा है. एक किलो शहद 700 रुपये का बिकता है. इससे महिलाओं को अच्छा मुनाफा हो रहा है. उन्होंने बताया कि वे लोग बिलकुल ऑर्गेनिक शहद का उत्पादन करते हैं. मधुमक्खी पालन करने के लिए वे बॉक्स सरसों के खेत में लगाते हैं और उसी के फूलों का रस चूस कर मधुमक्खियां शहद देती हैं.
"वाल्मीकि टाइगर रिजर्व जंगल नजदीक होने के कारण ऑफ सीजन में भी उन्हें फायदा होता है. क्योंकि मधुमक्खियां जंगल में उगने वाले औषधीय पेड़ों के फूल का रस चूसकर भी उनके बक्सों में आकर अपना छत्ता लगाती हैं. इससे उन्हें ऑफ सीजन में भी मधु प्राप्त होता है. लिहाजा महिलाएं इसको बेचकर अच्छी आमदनी कर रहीं हैं और अपने जीवन स्तर में सुधार ला रहीं हैं." -सत्येंद्र सिंह, मधुमक्खी पालन प्रशिक्षक
पिछले चार साल से मधुमक्खी पालन कर रही महिलाएं :वहीं शहद उत्पादन से जुड़ी महिलाओं का कहना है कि वे विगत चार वर्षों से मधुमक्खी पालन का काम करते आ रही हैं. घर के कामकाज को निपटा कर इसमें समय देने से खासी आमदनी हो रही है. महिलाओं ने बताया कि शहद के अलावा वे साबुन और मशरूम का भी उत्पादन करती हैं. इस तरह से सभी कार्यों में 200 से अधिक महिलाएं जुड़ी हुई हैं और उन्हें रोजगार मिला है और वे आत्मनिर्भर बन रही हैं.
सरसों के खेत में रखी मधुमक्खियों की पेटी "तीन साल से मधुमक्खी पालन से जुड़े हैं. शहद उत्पादन से काफी आमदनी हो रही है. शहद के अलावा साबुन और मशरूम उत्पादन भी कर रहे है. घर बैठे इस काम से आजीविका का एक अच्छा साधन मिल गया है. हमलोग जो भी शहद बनाते हैं वह शुद्ध रूप से ऑर्गेनिक होती है."-सुमन देवी, मधु उत्पादक महिला
पूरी तरह से ऑर्गेनिक होती है शहद : शहद उत्पादन करने वाली एक अन्य महिला ने बताया कि उनका शहद बिल्कुल ऑर्गेनिक होता है और उसमें किसी तरह की मिलावट नहीं रहती. लिहाजा बाजार में अच्छी डिमांड है. खासकर एसएसबी के कैंटीन में उनके शहद जाते हैं, जहां से एसएसबी के जवान खरीदते हैं. कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि शहद का उत्पादन कर महिलाएं आर्थिक तौर मजबूत हो रहीं हैं. जिससे उनके जीवन में मिठास तो घुल हीं रहा है जो ग्राहक हैं उनके स्वाद में मिठास घुल रहा है.
मधुमक्खी का छत्ता दिखाते प्रशिक्षक एक महिला करती है 150 किलो शहद का उत्पादन : कदमहिया गांव में मधु पालन में 35 महिलाएं जुड़ी हैं. एक महिला 10 बॉक्स लगाती है. नवंबर से जनवरी तक 1 बॉक्स से 10 किलो मधु निकलता है. यानी प्रत्येक महिला एक टर्म में 100 किलो मधु का उत्पादन करती है. वहीं जनवरी से मई माह तक एक महिला प्रति बॉक्स 4 से 5 किलो शहद निकालती है. इस हिसाब से 50 किलो तक शहद का उत्पादन एक महिला दूसरे टर्म में में करती है. इस हिसाब से साल में दो बार शहद उत्पादन कर एक महिला 150 किलो का उत्पादन करती हैं.
एक लाख रुपये सालाना होती है आमदनी : पूरे साल में एक महिला जितना शहद का उत्पादन करती है. उसकी बाजार में कीमत 75000 से एक लाख रुपये तक है. यानी एक मधुमक्खी पालक महिला को पूरे साल में करीब एक लाख रुपये की आमदनी होती है. कुल मिलाकर देखा जाए तो 35 महिलाएं शहद के कारोबार से सालाना 26 लाख 25 हजार के करीब कमा रही है. इसमें उनका पैकेजिंग खर्च और लागत अलग से है.
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