बेतिया: कहते हैं ‘जब दीयों से हो सकता है उजियारा तो क्यों ले हम चाइनीज लाइटों का सहारा’… लेकिन नरकटियागंज में इसका उल्टा असर देखने को मिल रहा है. जिले में दीपावली के त्योहार पर मिट्टी के दीये की मांग न होने के कारण कुम्हार परेशान हो गए हैं. बाजारों में चाइनीज लाइट की मांग बढ़ गई है. जिससे कुम्हारों की बिक्री न के बराबर हो गई है.
दीयें नहीं बिकने से कुम्हारों की दिवाली फीकी
प्रकाश के पर्व दीपावली में सिर्फ एक दिन ही बचा हुआ हैं. दीपावली को रौशनी और दीयों का त्यौहार कहा जाता है. इस दिन हर तरफ दीये, कैंडल और रंग-बिरंगी लाइटों की जगमगाहट देखने को मिलती है. हर साल दीपावली के समय मिट्टी के दीये की काफी डिमांड होती है, लेकिन इस बार इसकी डिमांड फीकी पड़ गई है.
इससे दीये बनाने वाले कुम्हार काफी निराश हैं. कुम्हार मिट्टी की बर्तन बनाकर रखे हुए हैं. लेकिन बिक्री न होने की वजह से खाने के भी लाले पड़ गए हैं. कई इलाकों में कुम्हारों ने दीपावली आते ही दिए बनाने तो शुरू कर दिए हैं. लेकिन मिट्टी के दीये की मांग कम होते देख कुम्हार वर्ग काफी चिंतित है. चारों ओर बाजारों में चाइनीज दिये और लाइटों की मांग बढ़ गई है.
दीयों को माना जाता है शुद्ध और पवित्र
धनतेरस दीपावली या छठ के पर्व में मिट्टी के दीये का अलग ही महत्व है. ऐसा माना जाता है कि शुद्ध और पवित्र मिट्टी के दिए होते हैं. कुम्हार का कहना है कि पिछले साल से इस साल काफी कम बिक्री है. कोरोना के कारण बाजारों में लोगों का आना कम हो गया है. वहीं दूसरी ओर चाइनीज लाइट और दिए के कारण मिट्टी के दिये की मांग अब धीरे-धीरे कम होती जा रही है, जिसके कारण लोग मिट्टी के दीये खरीदते भी नहीं है.