बेतिया: केंद्र और राज्य सरकारें भले ही देश के खिलाड़ियों और प्रतिभाओं को उभारने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करती हो. लेकिन दूर-दराज गांव और इलाके में कभी किसी की नजर नहीं जाती. जहां ना जाने कितनी प्रतिभाएं और ख्वाब सुविधा के अभाव में दम तोड़ देती हैं. पश्चिमी चंपारण की दो प्रतिभावान बेटियों का हाल भी कुछ ऐसा ही है.
झोपड़ीनुमा घर में रहने को मजबूर खिलाड़ी बहनें
पश्चिमी चंपारण के नरकटियागंज में देश की दो फुटबॉल खिलाड़ियों की कहानी एक झोपड़ी से शुरू होती है, लेकिन वो विदेशों तक का सफर तय कर चुकी हैं. बड़ी बहन इंटरनेशनल स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुकी है. तो छोटी बहन नेशनल स्तर पर फुटबॉल खेल रही है. बड़ी बहन सोनी कुमारी को उम्मीद थी कि उनका अपना आशियाना होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और आखिरकार थक हारकर शादी कर अपना घर बसाने चली गई. जबकि छोटी बहन आशु कुमारी आज भी अपनी मां के साथ झोपड़ी में रहने को मजबूर है. लेकिन इसे उम्मीद है कि एक दिन इनका भी खुद का आशियाना होगा और सरकार इनके लिए भी कुछ करेगी.
नगर पंचायत की चुनाव आईकॉन भी बनी सोनी
भारतीय फुटबॉल टीम की अंडर-14 टीम की कप्तान पश्चिमी चंपारण के नरकटियागंज के एक दलित परिवार की बेटी सोनी कुमारी नगर पंचायत की चुनाव आईकॉन भी बनी थी. उसकी छोटी बहन आशु नेशनल स्तर पर मणिपुर, इंफाल, बनारस, डिब्रूगढ़, ग्वालियर विश्वविद्यालयों में फुटबॉल खेल चुकी है. एक बहन ने विदेशों में अपना लोहा मनवाया है. तो दूसरी बहन ने देश में. लेकिन परेशानियों से घिरी इन बेटियों की चिंता ना तो सरकार को है और ना ही जिला प्रशासन को.
कई पुरस्कार से हो चुकी हैं सम्मानित
नरकटियागंज के पन्नालाल पासवान की बेटी सोनी कुमारी और आशु कुमारी कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित हो चुकी हैं. पन्नालाल पासवान नेपाल में टांगा चलाते हैं. आशु अपनी मां के साथ नरकटियागंज में झोपड़ीनुमा घर में रहती है. पिता जो पैसे भेजते हैं उसी से इनकी दाल रोटी चलती है.