वैशाली/सोनपुर: सारण के सोनपुर स्थित कई स्कूलों के शिक्षकों में करेंट अफेयर्स का घोर अभाव है. करेंट अफेयर्स भी ऐसी कि आपका माथा घूम जाए. आप सोच में पड़ जाएंगे कि आखिर इनके हाथ में देश का भविष्य है. दरअलस, यहां शिक्षकों को ये तक नहीं पता है कि पीएम मोदी देश के प्रधान सेवक हैं या बिहार के शिक्षा मंत्री.
जिले के सोनपुर प्रखंड स्थित सरकारी स्कूलों के शिक्षकों का सामान्य ज्ञान शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रहा है. स्थानीय शिक्षकों को बिहार के राज्यपाल, मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री तक का नाम नहीं पता है. ये गुरुजी अंग्रेजी के साधारण शब्दों की स्पेलिंग में भी अटक जाते हैं. सरकार ने 'सब पढ़ें, सब बढ़ें' का नारा तो बुलंद कर दिया. लेकिन जब पढ़ाने वालों के ही ज्ञान पर बट्टा लगा हो तो पढ़ने वाले कहां तक बढ़ पाएंगे.
नरेंद्र मोदी हैं शिक्षा मंत्री नहीं बता पाए, कौन है शिक्षा मंत्री
स्कूलों में पहुंची ईटीवी भारत की टीम ने एक-एक कर सभी शिक्षकों से शिक्षा मंत्री कौन हैं, ये जानना चाहा तो उनमें से एक शिक्षिका ने पीएम मोदी को शिक्षा मंत्री बता दिया. हमारे रिपोर्टर ने जैसे ही पूछा कि क्या वाकई में पीएम मोदी शिक्षा मंत्री हैं. तो शिक्षिका ने बताया, 'जी नहीं वो तो मुख्यमंत्री हैं.'
नहीं आती इंग्लिश की स्पेलिंग
इसी शिक्षिका ने इंग्लिश की स्पेलिंग पूछे जाने पर दिवारें गिननी शुरू कर दी. वहीं, दूसरी तरफ जिलाधिकारी के नाम को लेकर किए गए सवाल पर कोई भी ये नहीं बता पाया कि उनके जिले का पहला इंसान कौन है? बात यही नहीं खत्म होती है. एक टीचर तो साइंस की स्पेलिंग तक खा गए.
मोबाइल में उलझे रहते हैं गुरुजी
प्रखंड में स्कूल की पड़ताल करने जब ईटीवी भारत की टीम जहांगीरपुर के प्राथमिक स्कूल में पहुंची तो मीडिया को देखते ही शिक्षकों में हड़कंप मच गया. स्कूल के रजिस्टर में 5 शिक्षकों की हाजिरी बनी थी. लेकिन विद्यालय में 3 ही शिक्षक मिले. बाकि के 2 बिना सूचना दिए ही गायब थे. स्कूल के छात्र-छात्राओं ने बताया कि यहां शिक्षकों को जब मन होता है तब आते हैं, जब मन होता है, तब चले जाते हैं. शिक्षक स्कूल में होते भी हैं तो वो पढ़ाने के बजाय अपने मोबाइल में उलझे रहते हैं और आसपास में गप्पे हांकते हैं.
निजी स्कूलों में जाने लगे हैं बच्चे
वहीं, टीम जब उत्क्रमित मिडिल स्कूल पहुंची तो वहां बोर्ड पर विद्यालय का नाम तक नहीं लिखा था. पूछने पर दलील दी गई कि विद्यालय का रंग-रोगन हुआ था, उसी में स्कूल का नाम भी मिट गया. यहां तैनात आठ शिक्षकों में से तीन शिक्षक नहीं दिखे. स्कूल के बच्चों को पढ़ाने के लिए ब्लैकबोर्ड तक नहीं था. बच्चों की उपस्थिति बहुत कम थी. कारण पूछने पर छात्रों ने बताया कि विद्यालय में पढ़ाई ठीक नहीं होने के कारण बच्चे निजी स्कूलों में दाखिला लेने लगे हैं.
अब इन सभी प्रतिक्रियाओं से ही आप अंदाजा लगा सकते है कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था की दिशा की ओर अग्रसर है.