वैशालीःभारत का खजुराहो मंदिर अपनी अद्भूत कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है. जहां हर साल लाखों पर्यटक इसके दर्शन के लिए आते हैं. लेकिन आपको जानकर ये हैरानी होगी कि अपने बिहार में भी एक मिनी खजुराहो मंदिर है. जिसे बहुत कम ही लोग जानते हैं. बिहार की राजधानी पटना से महज 26 किलोमीटर दूर हाजीपुर के कौनहारा घाट में स्थित है नेपाली मंदिर. जहां कामकला (Sexuality) का व्यापक चित्रण मौजूद है. मंदिर में लगे लकड़ी के खंभों पर कामकला के अलग-अलग आसनों का चित्रण है. यही कारण है कि इसे बिहार का खजुराहो कहा जता है. इस मंदिर को देखने कभी दूर-दूर से पर्यटक आया करते थे. लेकिन आज इसकी हालत देखकर स्थानीय लोग मायूस हैं.
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18 वीं शताब्दी में नेपाल के राजा के आदेश पर बनी थी मंदिरःबताया जाता है कि नेपाल के राजा ने भारत के लिए यह अद्भुत मंदिर बनवाई थी. हालांकि मंदिर को लेकर कई तरह की बातें कहीं जाती हैं. कई पुस्तकों में अलग-अलग उल्लेख मिलता है. मान्यता है कि 18 वीं शताब्दी में नेपाल के राजा के आदेश पर नेपाली सेना के कमांडर मातबर सिंह थापा ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इसलिए आम लोगों में यह 'नेपाली छावनी' के तौर पर भी लोकप्रिय है. नेपाली वस्तु कला शैली के इस मंदिर में कामकला के अलग-अलग आसनों का चित्र लकड़ी पर किया गया है. भगवान शिव के इस मंदिर में कष्ट कला का खूबसूरत कारीगरी की गई है.
550 वर्ष पूर्व हुआ था निर्माणःमंदिर के निर्माण में एक लौह स्तंभ, पत्थरों की चट्टाने और लकड़ियों की पट्टियों का भरपूर इस्तेमाल हुआ है. मंदिर के गर्भ गृह में पत्थर का शिवलिंग विद्यमान है. बताया यह भी जाता है कि इस मंदिर में उत्तर की नागर शैली, दक्षिण की द्रविड़ शैली, के साथ बेलसर शैली और स्थानीय शिल्प कौशल का भी प्रयोग किया गया है. कई अभिलेखों के मुताबिक यह मंदिर लगभग 550 वर्ष पूर्व निर्माण कराया गया था. जिसमें नेपाल के महाराज हरि सिंह के दादा रणजीत सिंह के द्वारा भी मंदिर निर्माण की बात कहीं गई है.
कार्तिक माह में भक्तों की लगती है भीड़ःयहां श्रवण मास और कार्तिक माह में भक्तों का ज्यादा आना होता है. खासकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन लगने वाले गंगा स्नान मेले के दौरान पर्यटकों की काफी भीड़ देखी जाती है. मंदिर के ऊपर लगे 17 खम्बो में काम कला के विभिन्न मुद्राओं का चित्रण है. मंदिर के पास बुटन दास मठ है. यहा रहने वाले महंथ अर्जुन दास ने बताया कि 18 वीं शताब्दी का यह मंदिर है. इस मंदिर में कई अष्टधातु की मूर्तियां थी. साथ ही एक अद्भुत शिवलिंग भी था, जो 2008 में गायब हो गया.
अर्जुन दास बताते हैं- कामशास्त्र के बारे में पूरी जानकारी इस मंदिर में दी गई है. साथ में नियंत्रित रहना भी सीखाया गया है. उन्होंने आगे बताया कि शिवपुराण में वर्णित है कि चारों दिशा में दरवाजा होने वाले शिव मंदिर बेहद महत्वपूर्ण होते हैं. इस मंदिर में भी चारों दिशा में दरवाजे खुलते हैं.