सीतामढ़ी: सदर अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड जिले के बीमार नवजात बच्चों के लिए वरदान साबित हो रहा है. तीन साल पहले तक ऐसा कोई जीवन रक्षक वार्ड नहीं था. जहां इतनी समुचित व्यवस्था में बीमार नवजात का इलाज किया जा सके. नतीजतन गरीब परिवार के पीड़ित नवजात को शहर से दूर बड़े अस्पतालों में रेफर करना पड़ता था. जहां पहुंचते-पहुंचते कई बच्चे दम तोड़ देता था.
जिला अस्पताल में एसएनसीयू वार्ड की स्थापना 20 मई 2016 को की गई. इस वार्ड के निर्माण के बाद से बीमार नवजात को इलाज के लिए इधर-उधर नहीं भटकना पड़ता है. मालूम हो कि यह स्पेशल वार्ड नवजात को जीवन देने में कारगर साबित हो रहा है.
ईटीवी भारत संवाददाता की रिपोर्ट कब हुआ निर्माण?
20 मई 2016 से सदर अस्पताल परिसर में एसएनसीयू यूनिट संचालित हुआ. उस समय से जून 2019 तक 3383 बीमार नवजात को यहां इलाज के लिए भर्ती कराया गया है. जिसमें से 3198 बच्चों का इलाज कर उन्हें जीवनदान दिया जा चुका है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
- साल 2016 में इस वार्ड में 323 मेल बेबी और 191 फीमेल बेबी का इलाज किया गया. इसके अलावे गंभीर रूप से बीमार 41 नवजात ने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया था
- वर्ष 2017 में 700 मेल बेबी और 458 फीमेल बेबी का इलाज हुआ. उस दौरान 56 नवजात की इलाज के दौरान मौत हो गई थी
- साल 2018 में 656 मेल बेबी और 380 फीमेल बेबी इलाज के लिए भर्ती कराए गए. जिसमें 59 बच्चों की मृत्यु हो गई थी
- वर्ष 2019 जनवरी से जून माह तक 275 मेल बेबी और 215 फीमेल बेबी इलाज के लिए इस वार्ड में लाए गए. गंभीर रूप से बीमार 29 नवजात की अब तक मृत्यु हो चुकी है
इस रोग से पीड़ित नवजात को कराया गया भर्ती
एसएनसीयू वार्ड में सरकारी अस्पतालों के अलावे जिले के निजी क्लीनिक में जन्म लेने वाले बीमार भी इलाज के लिए आते हैं. भर्ती होने वाले अधिकांश नवजात पीलिया, अंडरवेट, समय से पूर्व जन्म लेने वाला नवजात, बर्थ इंजरी, जन्मजात विकृति, एप्निया और अन्य रोगों से पीड़ित होते हैं. जिनका यहां इलाज किया जाता है.
चिकित्सक और कर्मी की कमी
अस्पताल के एसएनसीयू वार्ड में विभाग की ओर से 3 चिकित्सक और 12 नर्सिंग स्टाफ के पद हैं. लेकिन, केवल 2 चिकित्सक और 5 नर्सिंग स्टाफ ही यहां तैनात है. जिसका खामियाजा कभी-कभी नवजात को भुगतना पड़ता है.