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रीगा शुगर मिल का इतिहास रोमांचक, इसके संचालन के लिए चेयरमैन ने बेच डाली निजी संपत्ति - जेम्स फिनले

सीतामढ़ी जिले के एकमात्र चीनी मिल के संचालन के लिए उसके चेयरमैन ने अपनी निजी संपत्ति बेच डाली थी. इस मिल की स्थापना 1933 में जेम्स फिनले नामक अंग्रेज ने किया था. वर्तमान में इस मिल से लाखों लोगों का भरण-पोषण होता है.

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Published : Dec 14, 2019, 2:45 PM IST

सीतामढ़ी:जिले का एकमात्र संचालित उद्योग रीगा शुगर मिल के चेयरमैन ओमप्रकाश धानुका ने मिल के संचालन के लिए अपनी निजी संपत्ति और आवास तक बेच डाली. मिल के महाप्रबंधक शशि गुप्ता ने बताया कि ओमप्रकाश धानुका ने यह कदम सीतामढ़ी, शिवहर और मुजफ्फरपुर सहित अन्य जिलों के गन्ना किसानों के लिए उठाया.

चीनी मिल का इतिहास
रीगा शुगर मिल की स्थापना 1933 में अंग्रेजी हुकूमत के दौरान जेम्स फिनले नामक अंग्रेज ने किया था. उस समय इस मिल की क्षमता 8 टन टीसीडी थी. 26 जनवरी 1950 को ओमप्रकाश धानुका ने इस मिल को अंग्रेजों से टेकओवर किया. उन्होंने इस 8 टन क्षमता वाली फैक्ट्री को 55 हजार टन टीसीडी क्षमता की उद्योग की श्रेणी में खड़ा कर दिया. इसके अलावा सभी पुराने कलपुर्जे बदल दिए गए. मिल के बेहतरीन संचालन लिए केरल, मेरठ और फरीदाबाद से अनुभवी कर्मियों को बुलाकर नियुक्त किया गया है. साथ ही बेहतरीन प्रोडक्शन के लिए कई तकनीकी बदलाव किए गए हैं.

शुगर मिल में काम करते मजदूर

मिल में आर्थिक तंगी
सूत्रों के अनुसार 2013, 2014, 2015 और 2017 में लगातार प्राकृतिक आपदा झेलने के बाद इस मिल को करोड़ों का नुकसान हुआ. हाल के 2-3 सालों में मिल में आई आर्थिक तंगी की वजह से किसानों सहित कर्मियों के वेतन भुगतान में भी विलंब हुआ. साथ ही रिपेयर मेंटेनेंस भी प्रभावित हुआ.

पेश है रिपोर्ट

नहीं मिली सब्सिडी
मील के जीएम शशि गुप्ता ने बताया कि केंद्र सरकार ने आदेश दिया था कि मिल में उत्पादित चीनी पर प्रति क्विंटल 13 रुपये 88 पैसे सब्सिडी का भुगतान किया जाएगा. इस मिल को अबतक इस सब्सिडी का लाभ नहीं मिला है. यह आर्थिक सहायता अन्य बड़े चीनी मिलों को दे दिया गया. लिहाजा चेयरमैन ने मील को चलाने के लिए अपने निजी आवास तक बेच डाली. आज भी मिल को संचालित रखने के लिए पूरा प्रयास कर रहे हैं.

शुगर मिल के महाप्रबंधक शशि गुप्ता

मिल से लाखों लोगों का भरण-पोषण
बता दें कि इस शुगर मिल में करीब 700 कर्मी काम करते हैं. उनमें 350 स्थाई और 350 अस्थाई कर्मचारी हैं. इस मील से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब एक लाख लोगों का भरण-पोषण होता है. इसके अलावा करीब 40 हजार किसानों को गन्ना मील में चालान दिया गया है.

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