सीतामढ़ीः जिले के कई प्रखंड के किसान अब परंपरागत खेती को छोड़कर मछली पालन को बढ़ावा देने में जुटे हुए हैं. इसके जरिए किसान अच्छी आमदनी भी कर रहे है. सबसे ज्यादा मछली पालन बेरवास गांव निवासी मोहम्मद निजामुद्दीन और उनके भाई मोहम्मद अली हुसैन मछली पालन के साथ-साथ सीड्स उत्पादन कतरे हैं और इसके जरिए उन्हें अच्छी आमदनी भी हो रही है.
सीतामढ़ीः परंपरागत खेती छोड़कर कर रहे हैं मछली पालन, किसानों को हो रही अच्छी आमदनी
मोहम्मद अली हुसैन का बताना है कि उनके दादा ने परंपरागत खेती को छोड़कर मछली पालन शुरू किया था. जिसके बाद से उनकी यह तीसरी पीढ़ी है जो मछली पालन करती आ रही है और इसकी आमदनी से परिवार ने अब तक कई अन्य व्यवसाय भी खड़े कर चुके है.
परंपरागत खेती छोड़कर किसान कर रहे मछली पालन
मछली पालन के साथ-साथ मोहम्मद अली हुसैन का परिवार कई प्रकार की मछलियों का सीड्स भी खुद तैयार करता है और इनके फॉर्म में उत्पादित सीड्स जिले के अलावा दूसरे जिले के किसान भी खरीद करने आते हैं. मोहम्मद अली हुसैन के फॉर्म में उत्पादित सीड्स काफी बेहतर होती है. इसलिए किसान इनसे सीड्स खरीद कर मछली पालन कर रहे हैं. इस फॉर्म में कतला, रेहु, बीझहट, जासर, ग्रासकाट, नैनी, टेंगर सहित अन्य मछलियों की सीड्स तैयार किए जाते हैं. मोहम्मद अली हुसैन ने बताया कि बड़ी मछलियों को इंजेक्शन देकर सीड्स बनाने का काम होता है और उस सीड्स से खुद भी मछली पालन कर अच्छी आमदनी कर लेते हैं.
मछली पालन से किसानों को हो रही अच्छी आमदनी
बेरवास गांव के अलावा जिले के बखरी, मदनपुर, रीगा, सोनबरसा, रुनीसैदपुर, मधकौल, माची, भंडारी, बगाही और मेजरगंज क्षेत्र के कई किसान परंपरागत खेती को अलविदा कह मछली पालन के जरिए अपनी तकदीर की इबादत लिखने में जुटे हुए हैं. लेकिन किसानों का बताना है कि सरकार की ओर से उत्पादित मछली की बिक्री के लिए कोई स्थाई बाजार की व्यवस्था नहीं है. लिहाजा सस्ते दरों पर ही स्थानीय हाट बाजारों में मछली की बिक्री करना मजबूरी होता है. अगर बाजार की व्यवस्था होती तो मछली पालन करने वाले किसानों को उचित मूल्य मिलता और उसके जरिए आमदनी में इजाफा होता.