सीतामढ़ी:इस जिले का गौशाला पूरे बिहार में प्रसिद्ध है. सीतामढ़ी गौशाला अपनी सेवा भावना और रखरखाव के लिए प्रदेश में प्रथम स्थान रखता है. गौशाला में सैंकड़ो की संख्या में गाय, बछड़े से लेकर सांढ़ की देखभाल की जाती है. गौशाला का संचालन ट्रस्ट के जरिए किया जा रहा है. इस गौशाला को रोल मॉडल के रूप में देखा जाता है.
दान में मिली थी 27 एकड़ भूमि
गौशाला की स्थापना सन 1892 में स्वर्गीय सियाराम दास ने की थी. इसका उद्देश्य गौ सेवा था. वहीं, गौशाला निर्माण के लिए स्वर्गीय सियाराम दास ने 27 एकड़ भूमि दान में दिए थे. 5 एकड़ में गौशाला का भवन है. जबकि शेष 22 एकड़ की जमीन पर गाय और बछड़ों के लिए चारे लगाये जाते हैं. वहीं, इस गौशाला के चारों तरफ करीब 61 दुकानें भी संचालित हो रही हैं. गौशाला ट्रस्ट को हर दुकान से प्रतिमाह 400 से लेकर 1500 तक किराया प्राप्त होता है. प्राप्त राशि का उपयोग गाय और बछड़ों के लिए चोकर, दाना और उनके रखरखाव पर किया जाता है.
गाय और बछड़े की संख्या
ट्रस्ट के प्रबंधक हरिनारायण राय ने बताया कि वर्तमान में यहां 146 गायें और बछड़ें हैं. इसके अलावा 17 सांढ़ भी हैं. 33 गाय रोजाना 225 लीटर दूध दे रही है. दूध की बिक्री से प्राप्त राशि को गौ सेवा पर खर्च किया जाता है. गौशाला परिसर में सरकारी पशु चिकित्सा अस्पताल संचालित किया जा रहा है. जहां, बीमार गाय और बछड़े का इलाज किया जाता है. यह अस्पताल गौशाला ट्रस्ट के अंदर संचालित हो रहा है. इसके अध्यक्ष अनुमंडल पदाधिकारी होते हैं.