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ये हैं सच्चाई: शेखपुरा में सड़क पर रहने को मजबूर हैं बाढ़ पीड़ित

शेखपुरा जिले के हरोहर नदी में आयी बाढ़ ने जिले के कई इलाकों को अपने जद में ले लिया. बाढ़ के चलते लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. हालांकि अब बाढ़ का पानी घटने लगा है लेकिन इसके बाद भी लोगों की समस्याएं कम नहीं हुई है. लोगों के सामने खाने की समस्या उत्पन्न हो गयी है. पढ़ें पूरी खबर.

सड़क पर रहने को मजबूर बाढ़ पीड़ित
सड़क पर रहने को मजबूर बाढ़ पीड़ित

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Published : Sep 2, 2021, 6:51 PM IST

शेखपुर:बिहार (Bihar) के शेखपुरा (Sheikhpura ) जिले में हरोहर नदी (Harohar River) में आयी बाढ़ का पानी पिछले एक सप्ताह से ज्यादा समय से घट रहा है लेकिन बाढ़ (Flood) पीड़ितों के हालात में कोई सुधार देखने को नहीं मिल रहा है. बाढ़ के पानी ने दो दर्जन से ज्यादा गांवों में तबाही मचाई है. बाढ़ के पानी ने खेतों में लगी धान की फसल को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है. जिससे किसानों की कमर पूरी तरह टूट गयी है.

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गांवो में बाढ़ का पानी धीमी रफ्तार से घट रहा है. बाढ़ के बाद लोग अपनी रोजी रोटी के जुगाड़ में काम की तलाश में शेखपुरा शहर की और तो कुछ लोग दूसरे राज्यों की तरफ भी रुख करने लगे है. वहीं जिले के सुजवालपुर, गदबदिया, घाटकुसुम्भा, मुड़वरिया, कोयला, पानापुर, प्राणपुर, हरनामचक, महम्मदपुर और आलापुर गांव के दर्जनों घरों में अभी अभी भी बाढ़ का पानी भरा हुआ है.

बाढ़ के चलते गांवों में कच्ची सड़क भी टूट गयी है. जिससे बाढ़ पीड़ितों के परिजन और रिश्तेदार चाह कर भी अपने संबंधी का मदद नहीं कर पा रहे हैं. तबाही का आलम ये है कि बाढ़ पीड़ित सड़कों पर तंबू गाड़कर और स्कूलों में शरण लेकर रहने पर मजबूर हैं. बाढ़ में इनके घर का सामान से लेकर खाने के अनाज तक बर्बाद हो गया है. जिसके चलते लोग भगवान भरोसे किसी तरह दिन काटने पर मजबूर हैं.

घाटकुसुम्भा प्रखंड मुख्यालय के महादलित टोले में दर्जनों महादलित परिवार सड़क पर प्लास्टिक और पॉलीथिन का तंबू बनाकर रहने पर मजबूर हैं. इनके घरों में अभी भी बाढ़ का पानी भरा हुआ है. सड़क पर खेल रहे इनके बच्चों के चेहरे पर घर न होने का दुख और भूख की बेचैनी साफ देखी जा सकती है. बाढ़ की वजह से घर के साथ-साथ ये बच्चे खाने और पढ़ने की सुविधाओं से पूरी तरह वंचित हो गए हैं.

बाढ़ पीड़ित सड़क पर दिन में भीषण गर्मी और रात के अंधेरे में अपना जीवन काटने को मजबूर हैं. बाढ़ पीड़ितों ने बताया कि हमलोगों को सड़क पर रहते हुए महीना बीतने को आया है लेकिन प्रखंड मुख्यालय पास में रहने के बावजूद जिला प्रशासन से मिलने वाली राहत सामग्रियों से सभी वंचित हैं. हालांकि राहत के नाम पर कुछ लोगों को प्लास्टिक का तिरपाल जरूर मिला है लेकिन वो काफी नहीं है.

बाढ़ पीड़ितों ने कहा कि हमलोगों ने अपने पैसों से बाजार से प्लास्टिक मंगवाकर अपने रहने का इंतजाम किये हैं. बचे-खुचे पैसे खाने पर खर्च हो गए हैं. प्रशासन की ओर से आज तक खाने पीने का कोई भी इंतजाम नहीं किया गया है. जिसके चलते हमलोग गांव के अन्य लोगों से दाल-चावल मांगकर किसी तरह अपना और अपने बच्चों का पेट भरने पर मजबूर हैं.

लोगों ने बताया कि सड़क के बगल में पानी की तेज धार बहती रहती है. वहीं रात के अंधेरे में सांप और बिछुओं का आना जाना लगा रहता है. जिससे पूरे परिवार की जान की सुरक्षा को लेकर हमेशा भय बना रहता है. बता दें कि यास तूफान की तबाही झेलने के बाद किसानों ने अच्छी मानसून देखकर अपने खेतों में मक्का, अरहर समेत बड़े पैमाने पर धान की खेती किया था.

खेतों में धान की रोपाई के बाद फसल लहलहाने भी लगी थी लेकिन इसी दौरान बाढ़ की चपेट में आने से खेत में लगी फसल बर्बाद हो गयी. सरकारी आंकड़ों की बात करे तो प्रखंड में 1853 हेक्टेयर में खरीफ फसलों की खेती की जाती है. जिसमें 1659 हेक्टेयर में लगी फसल बर्बाद होने का अनुमान लगाया गया है. यानी कि पूरे प्रखंड में 90 फीसदी फसल की क्षति हुई है. वहीं 94 फीसदी फसल बाढ़ से प्रभावित है.

कृषि कार्यालय की ओर से दिये गए ये आंकड़े अनुमान पर आधारित है. प्रखंड कृषि पदाधिकारी मो.कमरे आलम के मुताबिक यह एक अनुमानित आंकड़ा है. जिसमें बदलाव संभव है. बता दें कि हरोहर नदी में आयी बाढ़ में कई पंचायत प्रभावित हुए हैं. जिससे सभी पंचायतों में 10 से 20 फीसदी तक फसल क्षति होने का आंकड़ा बढ़ सकता है.

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