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एक तरफ पानी के लिए हाहाकार, दूसरी तरफ मेंथा की खेती कर किसान हो रहे मालामाल

भीषण गर्मी के कारण नहरों में पानी सूख चुका है. इस वजह से किसानों में मायूसी साफ देखी जा सकती है. लेकिन रोहतास की जमीन हमेशा से कीमती रही है. इसकी मिट्टी किफायती रही है. परिणामस्वरूप भीषण गर्मी पड़ने के बाद भी जिले में किसान मेंथा की खेती कर रहे हैं.

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Published : Jun 4, 2019, 3:04 PM IST

मेंथा की खेती

रोहतासः एक ओर जहां गर्मी की मार से किसानों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. वहीं धान का कटोरा कहे जाने वाले रोहतास में किसान मेंथा की खेती कर लाखों रुपए की आमदनी कर रहे हैं.

मेंथा की खेती

गौरतलब है कि भीषण गर्मी के कारण नहरों में पानी सूख चुका है. इस वजह से किसानों में मायूसी साफ देखी जा सकती है. लेकिन रोहतास की किफायती रही हैं. परिणामस्वरूप भिषण गर्मी पड़ने के बाद भी जिले में किसान मेंथा की खेती कर लाखों की आमदनी कर रहे हैं. ऐसे में सबसे खास बात है कि किसानों के पास पर्याप्त मात्रा में सिंचाई की व्यवस्था नहीं होने के बावजूद भी किसान मेंथा की खेती कर रहे हैं.

मेंथा की खेती

बोरिंग से मेंथा की खेती
वहीं खेती कर रहे किसान ने बताया कि मेंथा की खेती के लिए लागत कम आता है. लेकिन इस खेती में अधिक मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है. लिहाजा हर 2 दिनों में मेंथा के खेत को पानी से पटाया जाता है ताकि खेत हरा भरा रहे. लेकिन भीषण गर्मी ने किसानों के लिए पानी की समस्या पैदा कर दी है. लिहाजा किसान बोरिंग से मेंथा की खेती को पानी उपलब्ध करा रहे हैं. किसान ने कहा कि उन्हें मेंथा की खेती से तकरीबन 5 गुना मुनाफा होता है.

मेंथा की खेती

पिपरमिंट का तेल हजारों में बिकता है
गौरतलब है कि मेंथा को पिपरमिंट के नाम से भी जाना जाता है. जिसे पिपरमिंट का तेल निकाल कर काफी उचित मूल्य पर बाजारों में बेचा जाता है. फिलहाल मेंथा का तेल कई हजार रुपये लीटर में बिक रहा है. वहीं किसान ने बताया कि इस खेती में लागत कम है और मुनाफा अधिक. लेकिन मेंथा की खेती से सबसे अधिक आसपास के क्षेत्रों को नुकसान पहुंच रहा है. जहां पानी का लेयर काफी हद तक नीचे चला जाता है.

मेंथा की खेती

मेंथा की खेती से पानी की समस्या
जाहिर है मेंथा की खेती में अंधाधुन पानी का इस्तेमाल किया जाता है जिससे गांव के इलाके में पानी का लेवल कम हो जाता है. मेंथा की खेती करने वालों के लिए यह चिंता का विषय है. साथ ही किसान इस खेती को करने के लिए मजबूर भी हैं. क्योंकि ये खेती उस वक्त किया जाता है जब खेतों में धान और गेहूं की फसल नहीं लगी रहती है.

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