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आजाद भारत को चोट करने वाली दास्तां: अपने 4 बच्चों को जंजीरों में बांधकर रखते हैं मां-बाप

तस्वीरें कुछ ऐसी हैं, जिससे रोंगटे खड़े हो जाएं. बात कुछ ऐसी है, जिससे ह्रदय द्रवित हो जाए. मगर प्रशासनिक उदासीनता इन मासूमों पर नजर डालने का नाम ही नहीं ले रहा. इसलिए शायद आजादी के दिन भी इन बच्चों को आजादी नसीब नहीं हो सकेगी.

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Published : Aug 14, 2019, 11:11 PM IST

Children did not get freedom are kept in chains in rohtas

रोहतास:जहां एक ओर पूरा देश आजादी की 73वीं वर्षगांठ मनाएगा, वहीं बिहार के रोहतास में सरकारी उदासीनता के कारण एक ही परिवार के चार बच्चे जंजीरों में कैद हैं. मानसिक रूप से विक्षिप्त ये चारों बच्चों का इलाज कराने में अक्षम परिवार ने इन्हें जंजीरों में इसलिए कैद कर दिया है, क्योंकि ये आए दिन लापता हो जाते थे.

तस्वीरें कुछ ऐसी हैं, जिससे रोंगटे खड़े हो जाएं. बात कुछ ऐसी है, जिससे ह्रदय द्रवित हो जाए. मगर प्रशासनिक उदासीनता इन मासूमों पर नजर डालने का नाम ही नहीं ले रही. इसलिए शायद आजादी के दिन भी इन बच्चों को आजादी नसीब नहीं हो सकेगी.

पैरों में पड़ी जंजीरें

यहां जंजीरों में जकड़े हुए हैं बच्चे...
रोहतास जिला के डेहरी के 12 पत्थर मोहल्ले में मानसिक रूप से विक्षिप्त चार दिव्यांग भाईयों को उनके ही माता-पिता ने जंजीरों से बांध रखा है. इस बाबत माता-पिता का कहना है कि अक्सर ये लोग घर से बाहर निकल जाते हैं. दिमागी बीमारी के कारण ये घर लौटकर नहीं आते. काफी खोजबीन करनी पड़ती है. लिहाजा उनको बांधकर रखना हमारी मजबूरी है.

मजबूरी ये भी
12 पत्थर मोहल्ले के रहने वाले सरफुद्दीन अंसारी और प्रवीण बीवी की आठ संताने हैं, जिसमें चार लड़कों की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है. आए दिन यह मौका मिलते ही घर से बाहर भी भाग जाते हैं. ऐसे में एक साथ चार चार मानसिक दिव्यांगों को नियंत्रित करना अब इस मजदूर परिवार के बस की बात नहीं रही. तो इन लोगों ने चारों मानसिक रोगी भाइयों के पैरों में लोहे की बेड़ियां पहना दी. पिता सरफुद्दीन कहते हैं जन्म के समय उनके बच्चे स्वस्थ थे. लेकिन जब 2 साल से 4 साल की उम्र हुई, तो धीरे-धीरे चार बच्चों की मानसिक स्थिति बिगड़ने लगी. वहीं पांचवें की भी हालत कुछ ऐसी ही है.

देखिए पूरी दास्तां

इलाज के लिए नहीं हैं पैसे
गरीब मजदूर पिता का कहना है कि 1 बच्चे को बीमारी हो, तो उसका इलाज करवा दें. लेकिन अगर एक साथ चार-चार बच्चे मानसिक रूप से बीमार हो जाएंगे. तो इलाज कराना असंभव है. ऊपर से गरीबी की मार. इसके चलते हम इलाज नहीं करा पा रहे हैं. वहीं, पिता ने बताया कि अभी तक किसी प्रकार की कोई सरकारी सुविधा नहीं मिल सकी है.

क्या बोले जिम्मेदार
इस संबंध में ईटीवी भारत ने एसडीएम लाल ज्योति नाथ शाहदेव से बात की तो उन्होंने आश्वस्त करते हुए कहा कि वो जल्द ही बच्चों के इलाज की व्यवस्था करवाएंगे. वहीं, पेंशन को लेकर उन्होंने कहा कि दिव्यांगों को दी जाने वाली पेंशन के लिए उनका आवेदन लिया जाएगा.

ऐसे कराई जाती है नित्य क्रिया

बहरहाल, आप समझ सकते हैं कि पिछले कई सालों से अपने ही घर में चार मानसिक दिव्यांग भाई जंजीरों में बंधे हैं. गरीब मजदूर बाप अब उनकी जिम्मेदारी उठाने में सक्षम नहीं हैं. जंजीरों में बंद अबोध लड़कों को देखकर ऐसा महसूस होता है, जैसे पूरा सिस्टम लोहे की जंजीरों में जकड़ा पड़ा है. फिलहाल, इस परिवार को किसी रहनुमा का इंतजार है.

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