पूर्णिया: पिछले साल लॉकडाउन लगने के बाद बिहार के लाखोंप्रवासीश्रमिक अपने गांव लौट गए थे. एक बार फिर कोरोनाकाल की दूसरी लहर में श्रमिकों को अपने बैग पैक करने पर मजबूर होना पड़ा है. इस बार भी सैकड़ों मजदूरों ने परिवार के साथ वापस लौटना शुरू कर दिया है. ऐसे में ईटीवी भारत ने जानने की कोशिश की उन श्रमिकों की स्थिति जो 2020 में कई बाधाओं का सामना करते हुए वापस आए थे. उसके बाद से उनके मन में वापस जाने का विचार तक नहीं आया. ये सभी लोग एक सुर में कह रहे हैं कि अब बिहार से बाहर नहीं जाना है.
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प्रवासी श्रमिकों को बिहार पसंद है
गुजरे लॉकडाउन में हजारों की संख्या में प्रवासी श्रमिक गृह जिलों में वापस लौटे थे. लॉकडाउन और अनलॉक जैसी स्थितियों के खत्म होते ही दोबारा जिंदगियां पटरी पर लौटने लगी हैं. गुजरे वक्त से सबक लेकर कोई सरकार की ओर से मनरेगा के तहत दी जा रही रोजगार से जुड़ गया, तो वहीं किसी ने जिंदगी की गाड़ी फिर से शुरू की. किसी ने परिवार के बीच रहकर अपनों संग गुजारे के लिए दुकान शुरू कर दिया है.
सुकून से गुजार रहे जिंदगी
बिहार से वापस न लौटने का अटल फैसला कर चुके प्रवासी श्रमिक अपने-अपने गृह जिले में रहकर एक बेहतर जिंदगी जी रहे हैं. उन्हें ना सिर्फ प्रदेशों से बेहतर आमदनी मिल रही है बल्कि अब उन्हें अपनो की फिक्र भी नहीं सताती है.
प्रवासी श्रमिक की आप बीती
शहर के रामबाग स्थित किराए के मकान में रहकर खुद की और अपने परिवार का पेट पालने वाले विपिन कुमार पंडित ऐसे ही प्रवासी बिहारियों में से एक हैं जिन्होंने परदेस में रहकर कड़वी सच्चाई का सामना किया है. मूलतः अररिया के जोकीहाट के रहने वाले प्रवासी श्रमिक विपिन अब वापस नहीं जाना चाहते हैं. जोकीहाट में ही वे अब अखबार बेचकर आगे की पढ़ाई भी करते हैं. एक साल होने को है, वे बतौर हॉकर अखबार बेचकर न सिर्फ अपना और अपनी पढ़ाई का खर्च निकाल रहे हैं, बल्कि परिवार संग रहकर वे परदेस से कहीं अधिक खुश हैं.
'पिता शैलेन्द्र पंडित और मां करीब 5 साल तक हरियाणा के करनाल में रहे. वहां वे मिट्टी व हरयाणवी संस्कृति से जुड़ी सजावटी सामान और मिट्टी के बर्तन का कारोबार करते थे. साल 2019 में पिता के बुलावे पर मैं भी करनाल चला गया. संक्रमण काल में जब कोरोना के मामले बढ़ने लगे. व्यपार पर प्रभाव पड़ा एक से दो महीनों में जमापूंजी पूरी तरह खत्म हो गई. बकाया मांगने पर गैरों जैसा सुलूक किया जाने लगा. मकान मालिक मकान खाली करने के लिए जबर्दस्ती करने लगा. किसी तरह से अपने माता पिता के साथ बीते लॉकडाउन को हमलोग अररिया पहुंचे.'- विपिन कुमार पंडित, प्रवासी श्रमिक
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किशन और शहनाज की दास्तां
लॉकडाउन से जुड़ी ऐसी ही कड़वी यादें जेल रोड स्थित चाय और नाश्ते की दुकान चलाने वाली दंपत्ति की है. किशन और शहनाज परवीन ने अपनी दुकान लॉकडाउन के ठीक बाद घर वापस आने के बाद शुरू की थी. एक साल पूरे होने में अभी कुछ वक्त बाकी है. इसके बावजूद यह दुकान ग्राहकों की सबसे पसंदीदा दुकानों में से एक है. प्रवासी दंपत्ति की मेहनत रंग लाई है. आज वे जयपुर से कहीं बेहतर जिंदगी अपनों के बीच रहकर बिहार में गुजार रहे हैं.