पूर्णियाःराहत शिविरों में डीएम की दुग्धाहार पहल 24 घंटों के भीतर ही दम तोड़ती दिखाई दे रही है. दूध जिसे जिले के डीएम के निर्देश पर सुधा पार्लरों से सीधे बाढ़ पीड़ित बच्चों तक पहुंचाया जाना था, वह कहां गया किसी को नहीं मालूम. इधर, दूध नहीं मिलने के कारण बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल है. रोते-बिलखते बच्चों को देखकर बाढ़ पीड़ितों को यह समझ नहीं आ रहा कि इनकी दूध की मांग को कैसे पूरा करें.
राहत शिविर में नहीं पहुंचा दूध
बायसी अनुमंडल स्थित बाढ़ राहत शिविरों में कर्मियों की कोताही के कारण डीएम की पहल पर कोहराम मचा है. ईटीवी भारत की टीम जब बायसी मुख्यालय स्थित मध्य विद्यालय में बनाए गए बाढ़ राहत कैंप में पहुंची तो यहां हर किसी की जुबां पर डीएम की दुग्धाहार पहल नहीं मिलने की बात थी. बाढ़ पीड़ितों ने राहत कार्य पहुंचाने वालों पर डीएम की पहल से शुरू हुई सुविधा में कोताही बरतने का आरोप लगाया. इन्होंने बताया कि दुग्धाहार की सुविधा इनके बच्चों को नहीं मिल रही है.
सैकड़ों गांवों में फैला है पानी
दरअसल, बीते 15 जुलाई को पनमार, कनकई और महानंदा जैसी त्रिनदियों से घिरे बायसी के सैकड़ों गांवों में सैलाब का प्रलयकारी पानी ने उत्पात मचाया था. जान बचाकर किसी तरह लोग जिला मुख्यालयों की ओर भागे. इन लोगों ने जिला मुख्यालय स्थित मध्य विद्यालय में बनाए गए बाढ़ राहत कैंप में शरण ली. जिले के डीएम प्रदीप कुमार झा की पहल पर कैंप में शिशु दुग्धाहार की सुविधा शुरू की गई. जिसने महज 24 घण्टों के भीतर ही दम तोड़ दिया.
शिविर में खाना बनाती रसोईया दूध ना मिलने से बच्चों का रो-रोकर बुरा हाल
डीएम के जरिए बाढ़ पीड़ित शिशुओं के लिए शुरू की गई दुग्धाहार पहल बीते 15 जुलाई से शुरू तो हुई. लेकिन, अब आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इन राहत शिविरों में डीएम की यह दुग्धाहार पहल शुरुआत के साथ ही 24 घण्टों के भीतर ही छू मंतर हो गई. अब आलम यह है कि सैलाब में अपना सब कुछ गंवा चुके इन बाढ़ पीड़ितों के पास जो भी थोड़ी बहुत बची हुई कमाई है, उससे मजबूरन दूध मंगाकर अपने बच्चों को पिला रहे हैं. क्योंकि उनके बच्चों का दूध ना मिलने से रो-रोकर बुरा हाल है.
50 बच्चों के लिए आया महज 5 लीटर दूध
बता दें कि 16 जुलाई की सुबह दुग्धाहार की सुविधा देने के बाद दूध पार्लर वाले ऐसे गायब हुए कि बाढ़ पीड़ित बच्चों में दूध के लिए कोहराम मच गया. वहीं, राहत कैंपों में रह रहे इन 300 बाढ़ पीड़ितों में से करीब 50 बच्चों के लिए महज 5 लीटर ही दूध आया. ईटीवी भारत संवाददाता ने जब इस संबंध में शिविर के संचालक से सवाल किया तो उन्होंने बताया कि हमें जितना दूध मिला था हमने पूरी निष्पक्षता के साथ इन बच्चों के बीच बांट दी. फिर दूध आना क्यों बंद हो गया इसकी जानकारी नहीं है. बहरहाल, सुविधाओं में घालमेल की यह तस्वीरें जो आ रही हैं इससे अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं होगा कि बाढ़ राहत शिविरों में दी जा रही सुविधाओं का क्या हश्र होता है.