पूर्णियाः कौन है 'डीएम की बेटी'. यह ऐसा सवाल है, जिसे बिहार में हर एक स्वास्थ्यकर्मी जानना चाह रहे हैं. ना सिर्फ स्वास्थ्यकर्मी बल्कि इस उपलब्धि के बारे में जानने वालों के जुबान पर भी यही एक सवाल है. दरअसल यह एक कृति है, जो नवजात शिशु पर लिखी गई थी. इसे पूर्णिया सदर अस्पताल में कार्यरत एसएनसीयू की जीएनएम रचना मंडल ने लिखा था. बता दें कि उन्होंने यह आलेख राज्य स्वास्थ्य विभाग की ओर से आयोजित शॉर्ट स्टोरी राइटिंग कॉन्टेस्ट में लिखा था. यह राज्य स्वास्थ्य विभाग की ओर से शिशुओं को दी जाने वाली सुविधाओं पर आधारित स्टोरी थी. रचना की यह स्टोरी 38 जिलों के स्वास्थ्यकर्मियों में सबसे अव्वल आयी है.
ऑनलाइन हुआ था आयोजन
दरसअल, ऑनलाइन वेबीनार के जरिये आयोजित इस कार्यक्रम का आयोजन कोरोना संक्रमण के बीच हुआ. नवजात शिशु स्वास्थ्य सप्ताह कार्यक्रम के दौरान बीते 15 नवंबर से 21 नवंबर के बीच किया गया था. इसमें सूबे के सभी 38 जिलों के स्वास्थ्यकर्मियों ने हिस्सा लिया था. वहीं रचना के साथ ही जिले के सदर अस्पताल को यह उपलब्धि उनकी कहानी 'डीएम की बेटी' नामक कृति के लिए मिली.
किसी फिल्म से कम नहीं थी स्टोरी
रचना ने जो 'डीएम की बेटी' नामक शीर्षक वाली कहानी लिखी थी, वह एक नवजात शिशु पर आधारित थी. बच्ची बीमार अवस्था में अररिया जिले के झाड़ियों में पाई गई थी. जिसके बाद उसे बेहतर इलाज के लिए पूर्णिया एसएनसीयू भेजा गया था. वहीं उस दौरान तत्कालीन डीएम प्रदीप कुमार झा ने इसपर खुद से पहल किया. बच्ची के बेहतर स्वास्थ्य की नियमित जानकारी लेते रहे. एसएनसीयू के बाद उसे दत्तक ग्रहण केंद्र को समर्पित करने तक वे बच्ची की खैर-खबर लेते रहे थे.
झाड़ियों में बिलखती मिली थी नवजात
कॉन्टेस्ट विजेता एसएनसीयू जीएनएम रचना मंडल ने बताया कि अररिया जिले के रानीगंज प्रखंड स्थित सड़क किनारे की झाड़ियों में एक प्रीटर्म बेबी के फेंके जाने की सूचना मिली थी. जिसके बाद उस नवजात शिशु को सदर अस्पताल पूर्णिया के एसएनसीयू में बेहतर इलाज के लिए भर्ती कराया गया. यहां लगभग 3 महीने के उपचार के बाद स्वस्थ बच्ची को आगे की देखरेख के लिए दत्तक ग्रहण केंद्र को सौंप दिया गया था.
शीर्षक के पीछे की कहानी भी रोचक
शीर्षक के बारे में रचना ने एक रोचक बात बताया. उन्होंने कहा, जिला पदाधिकारी प्रदीप कुमार झा खुद सिविल सर्जन, सदर अस्पताल स्वास्थ्य प्रबंधक, एसएनसीयू स्वास्थ्य रोग विशेषज्ञ से मोबाइल पर नवजात बच्ची के संबंध में नियमित जानकारी लेते रहते थे. वे सदर अस्पताल आते रहते थे. एसएनसीयू में पदस्थापित चिकित्सक व नर्सों से बात कर बच्ची का विशेष ख्याल रखने का निर्देश देते. जिसके बाद हॉस्पिटल स्टाफ्स के बीच वह नवजात शिशु 'डीएम की बेटी' नाम से पुकारी जाने लगी.
खूब सराही जा रही रचना की स्टोरी
रचना मंडल ने बताया कि इस कॉन्टेस्ट में बिहार के सभी जिलों से प्रतिभागियों ने भाग लिया था. आयोजित शॉर्ट स्टोरी राइटिंग कॉन्टेस्ट में सभी ने अपने स्तर से तरह-तरह के शीर्षक वाली शिशु स्वास्थ्य की कहानी भेजी थी. इन सभी कहानियों में मेरी कहानी 'डीएम की बेटी' चयनकर्ताओं को ज्यादा रोचक लगी. मुझे प्रथम पुरस्कार के लिए चयनित किया गया है. इसकी घोषणा स्वास्थ्य समिति की ओर से राज्य कार्यक्रम डॉ. वीपी राय, पीएमसीएच के शिशु विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. एके जयसवाल व यूनिसेफ बिहार के स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. सरिता वर्मा द्वारा संयुक्त रूप से की गई है.
मासूम से डीएम का था विशेष लगाव
पूर्णिया सदर अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ. उमेश शर्मा ने कहा गंभीर अवस्था में एडमिट हुई नवजात 3 माह बाद पूरी तरह स्वस्थ हुई थी. उसके बाद बच्ची को दत्तक ग्रहण संस्थान भेजा गया. जहां डीएम प्रदीप कुमार झा नए कपड़े लेकर उस मासूम के लिए लेकर आए. साथ ही वे अक्सर संस्थान के स्टाफ से बच्ची की सेहत की जानकारी लेते रहते थे. कपड़े और दूसरे उपहार उसके लिए अक्सर ले जाया करते थे. इससे प्रेरित होकर एसएनसीयू में कार्यरत रचना मंडल ने ये कहानी लिखी.
वह एसएनसीयू जहां मिलता है मां का क्योर
सदर अस्पताल के नाम हुए इस उपलब्धि से गदगद एसएनसीयू स्टाफ मो. सोहेल कहते हैं कि रचना को यह उपलब्धि समूचे जिले के लिए गर्व का अवसर है. रचना ने जो देखा उसे ही लिखा. सदर अस्पताल एसएनसीयू सेवाएं और सुविधाओं के मामले में समूचे जिले में अग्रणी स्थान रखता है. यहां बच्चों को महज एक पेशेंट की तरह देखभाल नहीं मिलता है, बल्कि एक मां का क्योर दिया जाता है.