पटना:छठ महापर्व का समय नजदीक आ गया है और ऐसे में बाहर प्रदेशों में काम करने वाले बिहारी छठ मनाने के लिए बिहार आने को बेचैन हैं. ट्रेनों में सीटें फुल हो चुकी है और अधिकांश ट्रेनों में नो रूम की स्थिति उत्पन्न हो गई है. कई ट्रेनों में वेटिंग लिस्ट काफी लंबी चल रही है.
छठ को लेकर प्रभात बांधुल्य की नई कविता: छठ मनाने के लिए बिहार आने वाली ट्रेनों में बाहर प्रदेशों में काम करने वाले गरीब मजदूर भेड़ बकरियों की तरह लटक कर आने को विवश हैं. छठ पूजा के समय बाहर में कंपनियां मजदूरों को ओवरटाइम का दुगना पैसा उपलब्ध करा रही है और पैसे का लालच दे रही है. इन परिस्थितियों पर बिहार के युवा लेखक और कवि प्रभात बांधुल्य ने मगही भाषा में कविता की रचना की है और गरीब मजदूरों का दर्द बयां किया है.
मजदूरों का दर्द बयां करती है कविता: प्रभात ने मजदूरों का दर्द बयां करते हुए कहा है कि 'माई की है छठ, घरे बुलाई है… काम हमर मजदूरी, 10 -20 हजार कमाई है… ना ट्रेन में टिकट, ना जगह, गजेबे ई मुसीबत आई है…' प्रभात ने कहा कि हम जो बिहार से बाहर रहते हैं, छठ के मौके पर घर नहीं जा पा रहे हैं और जा रहे हैं तो ट्रेनों में सीट के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है. इसी संघर्ष की यह कविता है, जो संघर्ष करके आ रहे हैं उनकी कविता है जो किसी कारणवश नहीं आ पा रहे हैं उनकी कविता है.