पटना: 1967 में पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले के नक्सलबाड़ी गांव से शुरू हुआ 'लाल सलाम' नक्सलवादी के नाम से जाना जाने लगा. नक्सलवादी संगठनों ने जैसे-जैसे अपने पांव पसारे, इनकी हिंसा की घटनाएं बढ़ने लगी. बंगाल से सटे बिहार के कई जिलों में लाल सलाम का नारा गूंजने लगा. हालात ऐसे हो गए कि लाल रंग का आतंक बिहार में भी दिखने लगा. ऐसे में सरकार के सामने नक्सलियों पर लगाम लगाने की एक और चुनौती खड़ी हो गई.
बिहार जहां अपराध चरम सीमा पर है, वहां नक्सली एक्टिविटी पर रोक लगाने के लिए ऐड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा है. वैसे बिहार के 7 जिलों को नक्सल मुक्त घोषित किया जा चुका है. इन जिलों में पटना, शिवहर, सीतामढ़ी, भोजपुर, बगहा (पुलिस जिला), खगडिया और बेगूसराय हैं. लेकिन अभी भी कई जिलों में नक्सलियों का साया बना हुआ है. इन जिलों में अरवल, औरंगाबाद, बांका, पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, गया, जमुई, जहानाबाद, कैमूर, लखीसराय, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, नालंदा, नवादा, रोहतास और वैशाली हैं.
दो घंटे पहले ही खत्म कर दिया गया मतदान
नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सरकार की किसी भी योजनाओं को पहुंचाने में जिला प्रशासन को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. हालात ऐसे हैं कि हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनावों में अतिरिक्त पुलिस बल की तैनाती करवायी गई और यहां चुनाव तय समय सीमा के दो घंटे पहले ही संपन्न कराए गये. चुनाव के समय बिहार में नक्सलियों की कई बड़ी साजिशों को नाकाम कर दिया गया. गया से जहां एक कैन बम की बरमदगी हुई. तो वहीं, जमुई से नक्सलियों के नापाक मंसूबों पर पानी फिर गया.
22 नवंबर : 10 लाख का इनामी नक्सली ढेर
नक्सलियों की धरपकड़ के लिए प्रदेश में सीआरपीएफ, एसएसबी और बिहार पुलिस संयुक्त रूप से छापेमारी अभियान अनवरत चलाती रही है. इसी का नतीजा है कि 22 नवंबर को 10 लाख का इनामी नक्सली जोनल कमांडर आलोक यादव और उसके तीन साथी मार गिराए गये.