पटना:बिहार विधानसभा का चुनाव वैसे तो 2025 के अंतिम में होना है और 2024 में लोकसभा का चुनाव तय है लेकिन समय से पहले लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव करने की चर्चा बिहार में जोर पकड़ने लगी है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमारलगातार कहते रहे हैं कि लोकसभा का चुनाव पहले हो सकता है लेकिन पिछले दिनों केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बिहार में जल्द चुनाव होने की बात कह कर सियासी हलचल बढ़ा दी है, क्योंकि ठीक उससे पहले नीतीश ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से राष्ट्रपति द्वारा दिए गए भोज में गर्मजोशी से मुलाकात की थी. उसी समय से कई तरह के कयास लग रहे हैं.
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जेडीयू का दावा- चुनाव के लिए तैयार: जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष उमेश कुशवाहा का भी कहना है कि चुनाव के लिए तो हम लोग हमेशा तैयार हैं. वहीं, जेडीयू कोटे से मंत्री जमा खान का भी कहना है कि चुनाव जब भी हो, जीतेंगे हम ही लोग. उनका कहना है कि हमारे नेता दिन-रात जनहित में लगे रहते हैं. ऐसे में हमलोगों को चुनाव से नहीं घबराते हैं.
"हमलोग हमेशा तैयार हैं. हमलोग ऐसे नेता के नेतृत्व में काम करते हैं, जो चौबीसों घंटे जनता के लिए काम करते हैं. हम बीजेपी को चैलेंज करते हैं कि जब चुनाव कराना है, करवा लें. जब भी चुनाव होगी, हमलोग ही जीतेंगे"- जमा खान, अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री, बिहार
क्या कहते हैं राजनीतिक जानकार?: राजनीतिक विशेषज्ञ प्रोफेसर अजय झा का कहना है कि नीतीश कुमार को लेकर एक बार फिर से यह चर्चा जरूर है कि वह बीजेपी के साथ जा सकते हैं लेकिन क्या फैसला लेंगे, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा लेकिन इतना तय है कि नीतीश कुमार अकेले कभी चुनाव नहीं लड़ेंगे. वह कहते हैं कि जब भी नीतीश कुमार चुनाव लड़ेंगे किसी न किसी गठबंधन के साथ ही लड़ेंगे. फिलहाल आरजेडी के साथ उनका समीकरण ज्यादा फायदेमंद दिखता है.
"इंडिया गठबंधन में ही नीतीश रहेंगे या बीजेपी के साथ जाएंगे, इसको लेकर वह जरूर कैलकुलेशन करेंगे लेकिन अकेले लड़कर वह इतनी सीट तो वह हासिल कर नहीं सकते हैं. अभी स्थिति ऐसी है भी नहीं कि वह किसी गठबंधन से अलग चुनाव में जाएंगे"- प्रो. अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ
विधानसभा चुनावों में जेडीयू का प्रदर्शन:2000 में विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 67 सीट मिली थी, जबकि नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी समता पार्टी को केवल 34 सीट मिली थी. 2005 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 88 सीट पर जीत मिली थी, जबकि बीजेपी को 55 सीट मिली थी. वहीं 2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 115 सीटों पर जीत मिली थी तो वहीं बीजेपी को 91 सीट पर जीत मिली था. हालांकि 2015 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू को 71 सीट मिली थी, क्योंकि तब नीतीश महागठबंधन के साथ थे. उस समय आरजेडी को सबसे अधिक 80 सीटों पर जीत मिली थी. हालिया 2020 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू केवल 43 सीटों पर सिमट गया था. इस बार नीतीश एनडीए में थे और बीजेपी को 74 सीटों पर जीत मिली थी. आरजेडी को 75 सीटों पर जीत मिली थी.
लोकसभा चुनावों में जेडीयू का प्रदर्शन:पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जेडीयू के प्रदर्शन को देखें तो जहां लोकसभा में 2014 में पार्टी अकेले चुनाव लड़ी, तब सबसे खराब प्रदर्शन रहा और केवल दो सीटों पर ही नीतीश कुमार की पार्टी चुनाव जीत पायी, जबकि उस समय जेडीयू की ओर से 38 सीटों पर उम्मीदवार उतारे गए थे. वहीं विधानसभा की बात करें तो 2020 में एनडीए में रहते हुए भी जेडीयू का प्रदर्शन सबसे खराब रहा. पहली दफा 2005 के बाद एनडीए में बीजेपी बड़े भाई की भूमिका में आ गई और यह नीतीश कुमार को लगातार अखर रहा है.
चुनावी मोड में नीतीश: नीतीश कुमार इन दिनों लगातार पार्टी के नेताओं के साथ बैठक कर रहे हैं और पूरी तरह से चुनावी मोड में दिख रहे हैं. पार्टी का कई कार्यक्रम भी चल रहा है और उनके तरफ से बयान भी लगातार आ रहे हैं कि पहले चुनाव हो सकता है. पार्टी पूरी तरह से चुनाव के लिए तैयारी भी कर रही है. कहीं ना कहीं नीतीश कुमार और उनकी पार्टी के नेताओं को लगता है कि विधानसभा चुनाव में इस बार पहले के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन होगा लेकिन सबसे बड़ा सवाल कि नीतीश कुमार चुनाव में किसके साथ जाएंगे?
2015 जैसे हालात अभी नहीं: नीतीश कुमार एक साल से अधिक समय से बिहार में आरजेडी-कांग्रेस और वाम दलों के साथ बहुमत की सरकार चला रहे हैं. अगर चुनाव होता है और आरजेडी के साथ ही नीतीश कुमार जाते हैं तो दावा किया जा रहा है कि 2015 वाला प्रदर्शन फिर से दोहरा सकते हैं. हालांकि 2015 में आरक्षण की समीक्षा वाले संघ प्रमुख के दावे के कारण स्थितियां बदल गई थी. इस बार वैसी स्थिति नहीं है और एंटी इनकंबेंसी फैक्टर भी नीतीश कुमार को लेकर काम कर रहा है.
आरजेडी के साथ रहने से जेडीयू को लाभ:ऐसे में अगर नीतीश कुमार आरजेडी-कांग्रेस और वाम दलों के साथ लोकसभा और विधानसभा का चुनाव लड़ते हैं तो यह तय है कि लोकसभा चुनाव में बहुत अच्छा प्रदर्शन ना हो लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है और 45 सीट से अधिक संख्या में सीट जेडीयू के खाते में आ सकता है, क्योंकि महागठबंधन में आरजेडी का यादव और नीतीश कुमार का लवकुश समीकरण के साथ अति पिछड़ा वोट बैंक और मुस्लिम वोट भी मिल सकता है. ऐसे में बेहतर परिणाम आने की उम्मीद जेडीयू और महागठबंधन के घटक दल के नेता लगा रहे हैं.
नीतीश कुमार बीजेपी के साथ जाएंगे?: वहीं अगर फिर से बीजेपी के साथ लोकसभा और विधानसभा का चुनाव नीतीश कुमार लड़ते हैं तो लोकसभा में नीतीश कुमार कुमार को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होगा, यह तय माना जा रहा है. इसके साथ ही विधानसभा में भी 2020 वाले प्रदर्शन से बेहतर प्रदर्शन तय माना जा रहा है, क्योंकि लव कुश समीकरण के साथ बीजेपी का वोट बैंक भी नीतीश कुमार के साथ जुड़ जाएगा. अति पिछड़ा और दलित वोट बैंक के साथ मुस्लिम का भी वोट बैंक भी नीतीश कुमार के साथ रहेगा, ऐसा माना जाता है. इसका लाभ एनडीए को होगा और नीतीश कुमार की सीट भी बढ़ेगी.
अकेले चुनाव लड़ने का जोखिम नहीं लेंगे नीतीश: हालांकि इन दोनों परिस्थितियों से अलग यदि ऐसी स्थिति हुई कि ना तो एनडीए के साथ और ना ही आरजेडी के महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ पाए और अकेले चुनाव में जाना पड़ा तब नीतीश कुमार के लिए मुश्किल बढ़ सकती है, क्योंकि 2014 में लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार यह देख चुके हैं कि 38 सीटों पर चुनाव लड़ने के बाद भी केवल दो सीटों पर ही जीत मिली थी. नीतीश कुमार अब तक विधानसभा का चुनाव अकेले नहीं लड़े हैं लेकिन राजनीतिक जानकार भी कहते हैं कि नीतीश कुमार अकेले चुनाव लड़े तो वर्तमान में जो विधानसभा में उनकी सदस्य संख्या है, उसमें और भी कमी आ जाएगी. ऐसे में यह बड़ा नुकसान हो सकता है और नीतीश कुमार ऐसा जोखिम कभी नहीं ले सकते हैं.
एनडीए घटक दल के नेता का ऑफर:नीतीश कुमार को लेकर एनडीए के घटक दल के नेता लगातार यह बयान दे रहे हैं कि नीतीश कुमार एनडीए में शामिल हो जाएं. जब प्रधानमंत्री से नीतीश कुमार की मुलाकात हुई, उसके बाद सबसे पहले जीतनराम मांझी ने बयान दिया था और अब उपेंद्र कुशवाहा ने भी बयान दिया है कि महागठबंधन से जितनी जल्दी हो सके, बाहर निकल जाएं. नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी की मुलाकात के बाद बीजेपी नेताओं के भी सुर बदल रहे हैं.
बीजेपी नेता भी नीतीश पर नरम: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मिथिलांचल के झंझारपुर में बड़ी जनसभा की और नीतीश कुमार पर अटैक नहीं किया, बल्कि सलाह देते हुए नजर आए. इसके कारण भी कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. माना जा रहा है कि जिस इंडिया गठबंधन के सूत्रधार नीतीश कुमारी हैं, वह कई चीजों को लेकर नाराज हैं. पहले तो इंडिया नाम को लेकर ही उनको आपत्ति थी. वहीं संयोजक नहीं बनाये जाने पर भी कहीं ना कहीं नाराजगी है. जातीय गणना को इंडिया गठबंधन का मुद्दा नहीं बनाए जाने पर भी खुश नहीं हैं. यह सब बड़े कारण है, जिसके कारण यह कयास लग रहे हैं कि नीतीश कुमार एक बार फिर से कोई बड़ा फैसला ले सकते हैं. नीतीश अपने सांसद-विधायकों और पार्टी संगठन से जुड़े नेताओं की जब भी बैठक करते हैं, बड़ा फैसला लेते हैं. इस बार भी लगातार उसी तरह की बैठक कर रहे हैं.
नीतीश का पाला बदलने का रिकॉर्ड: नीतीश कुमार समता पार्टी के समय से 2010 तक बीजेपी के साथ ही गठबंधन में चुनाव लड़ते रहे हैं. नरेंद्र मोदी को जब बीजेपी ने प्रधानमंत्री उम्मीदवार 2014 के लिए बनाया तो उस समय बीजेपी से नीतीश कुमार ने दूरी बना ली और 2015 का चुनाव आरजेडी के साथ लड़ा. प्रचंड बहुमत के साथ जीतकर सरकार भी बनाई लेकिन 2017 में ही आरजेडी से भी अलग हो गए और फिर बीजेपी के साथ एनडीए में शामिल हो गए.
किधर जाएंगे नीतीश कुमार?:नीतीश 2019 लोकसभा चुनाव ही नहीं 2020 का विधानसभा चुनाव भी बीजेपी के साथ ही लड़ा लेकिन 2022 में नीतीश कुमार फिर से आरजेडी के साथ चले गए और फिलहाल बिहार में महागठबंधन की सरकार है. नीतीश कुमार के लगातार पाला बदलने के कारण हमेशा कयास लगाए जाते रहते हैं. अब जबकि लोकसभा का चुनाव 2024 में होना है और 2025 में विधानसभा का चुनाव होना है. ऐसे में 2020 में जेडीयू के खराब प्रदर्शन से दुखी नीतीश कुमार को लगता है कि इस बार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का बेहतर प्रदर्शन हो सकता है. इसलिए लगातार चुनाव को लेकर जेडीयू अपनी तैयारी भी कर रहा है लेकिन नीतीश कुमार चुनाव में किसके साथ रहेंगे, इस पर फिलहाल कयासों का दौर जारी है.