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पटना: NMCH के स्वास्थ्य व्यवस्था की फिर खुली पोल, कोविड मरीज को वार्ड में देखने तक नहीं आते कर्मचारी - corona pandemic

कोविड-19 ने अस्पताल में सरकार के दावों की पोल खोलकर रख दी है. आलम यह है कि वार्ड कर्मचारी भी मरीजों को देखने नहीं आते हैं. मरीज के परिजन बाहर से कीमती दवा खरीदने को मजबूर हैं.

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नालन्दा मेडिकल कॉलेज अस्पताल

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Published : Dec 14, 2020, 1:19 PM IST

पटना: वैश्विक महामारी कोरोना को लेकर सरकारी अस्पतालों की लचर व्यवस्था की पोल खुलनी शुरू हो गयी है. राजधानी के दूसरे सबसे बड़े अस्पताल में आने वाले नालन्दा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में स्वास्थ्य की लचर व्यवस्था देखने को मिल रही है. नालन्दा मेडिकल कॉलेज, जो कोविड-19 के दौरान शुरू से लेकर आजतक कोविड हॉस्पिटल के रूप में जाना जाता है.

क्या कहते हैं अस्पताल प्रशासन
सरकार की मानें तो कोविड से जुड़े जो भी मरीज भर्ती होंगे, उन सभी मरीजों का खाना-पीना से लेकर दवा तक की व्यवस्था को अस्पताल प्रशासन वहन करेगी. यानी यह सेवा मरीजों के लिये मुफ्त होगा. कोविड संक्रमित मरीजों की देखभाल के लिये कई एजेंसी व सरकारी कर्मचारी तैनात है. डॉक्टर भी अपना कार्य अच्छे से कर रहे हैं. लेकिन जब अस्पताल में जाकर जांच की गई तो मामला कुछ और ही निकला.

नालन्दा मेडिकल कॉलेज अस्पताल

ईटीवी भारत की टीम ने लिया जायजा
कोविड के बढ़ते संक्रमण को देख ईटीवी भारत की टीम कोविड हॉस्पिटल नालन्दा मेडिकल कॉलेज अस्पताल पहुंची. लेकिन वहां जाने पर बड़ा खुलासा हुआ कि जिस कोरोना मरीज को वहां भर्ती किया गया था, उसको देखने के लिए रात में कोई नहीं होता. आलम यह है कि मरीज के परीजन को ही मरीज को लगे ऑक्सीजन से लेकर सारी देखभाल करनी पड़ती है. जो वार्ड कर्मचारी है, वह भी पीड़ित मरीज की सेवा नहीं करता. अस्पताल में परिजन को खुद कोविड मरीज के साथ रहकर उसकी देखभाल करनी पर रही है.

अस्पताल की बदहाली की खुली पोल
साथ ही एक-दो दवा छोड़ सारी कीमती दवा बाहर से लेकर भी मरीज के परीजन परेशान है. जब ईटीवी भारत की टीम उस पीड़ित के पास पहुंची तो वो अपने आप को रोक नहीं पाया और अस्पताल की बदहाली की पोल खोलने पर मजबूर हो गया. वहीं इस बात को प्रमुखता से अस्पताल के अधीक्षक से पूछा गया तो वे बदहाली की बात को खारिज कर पूरी व्यवस्था देने की बात कर रहे है. लेकिन उन्होंने ईटीवी भारत को धन्यवाद देते हुए कहा कि वो इस बात की जॉच करवाकर दोषी कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई करेंगे. क्योंकि उन्हें पैसा मरीजों की सेवा के लिये मिलते है.

चिकित्सा विभाग की बड़ी नाकामी
यदि सरकारी अस्पतालों में इन सामान्य अवसरों पर भी दवाईयां उपलब्ध नहीं होती हैं तो यह चिकित्सा विभाग की बड़ी नाकामी के तौर पर देखा जा सकता है. अब इस मामले के सामने आने के बाद बिहार की स्वास्थ्य और चिकित्सा व्यवस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं. सरकार स्वास्थ्य और चिकित्सा व्यवस्था बेहतर होने के जो वादे और दावे करती है वो खोखला ही नजर आ रहा है.

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