पटनाः बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले भी बड़ी संख्या में नेताओं ने दलबदल किया. चुनाव के बाद पावर में आने के लिए दलबदल कर रहे हैं. वहीं कुछ नेता भविष्य की राजनीति को लेकर भी फैसला ले रहे हैं. बिहार में नीतीश कुमार दूसरे दल से आने वाले नेताओं को महत्वपूर्ण जिम्मेवारी भी देते रहे हैं. मंत्री भी बनाते रहे हैं. फिलहाल जमा खान को बसपा से जदयू में शामिल कर मंत्री बनाया है.
दलबदल को लेकर बिहार में कुछ बड़े चेहरे हमेशा चर्चा में रहे
बिहार में दलबदल करने वाले बड़े चेहरों में नरेंद्र सिंह, नागमणि, उपेंद्र कुशवाहा, भगवान सिंह कुशवाहा, लवली आनंद, महाचंद्र प्रसाद सिंह, वृषिण पटेल, श्याम रजक, उदय नारायण चौधरी सहित कई नाम हमेशा चर्चा में रहे हैं. कभी रामविलास पासवान की पार्टी में रहने वाले नरेंद्र सिंह एक समय सरकार बनाने की चाबी लेकर घूमने वाले रामविलास पासवान को छोड़ कई विधायकों के साथ नीतीश कुमार के खेमे में आ गए थे. उसके बाद नरेंद्र सिंह मांझी से अलग हुए, साथ गए और फिर कुछ साल में मांझी को भी छोड़ दिया और आज उनके पुत्र सुमित फिर से नीतीश कुमार के साथ हो गए हैं.
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कई नेताओं ने बदली पार्टियां
इसी तरह नागमणि भी दल बदलते रहे हैं. नीतीश को छोड़ आरजेडी में गए. आरजेडी छोड़ उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा में गए. वहां भी मामला नहीं जमा तो बाहर निकल गए. यही हाल उपेंद्र कुशवाहा का भी रहा है. नीतीश कुमार के साथ रहने के बाद कई पार्टियों में गए. एनसीपी में भी गए और अपनी पार्टी भी बना ली. लेकिन अब फिर नीतीश कुमार के साथ नजदीकियां बढ़ रही हैं. फातमी भी कई बार दलबदल करते रहे हैं. कभी लालू प्रसाद यादव के खासम खास भी बने रहे. अब नीतीश कुमार के साथ हैं.
वृषिण पटेल भी अभी आरजेडी के साथ थे. फिर नीतीश कुमार के साथ लंबे समय तक रहे. मांझी के साथ भी रहे और अब एक बार फिर से आरजेडी के साथ हैं. श्याम रजक का हाल भी कमोबेश यही है. आरजेडी के बाद जदयू और जदयू के बाद अब फिर से आरजेडी के साथ.
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आनेवाले दिनों में उपेंद्र कुशवाहा ले सकते हैं बड़ा फैसला
उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी के साथ मुकेश सहनी गठबंधन भी लगातार बदलते रहे हैं. कभी एनडीए के साथ तो कभी महागठबंधन के साथ और उससे भी मामला नहीं चला तो थर्ड फ्रंट भी बना लिया. मांझी और मुकेश सहनी आज सरकार में भागीदार हैं. उपेंद्र कुशवाहा भी जदयू के साथ आना चाहते हैं और लगातार नीतीश कुमार के संपर्क में भी हैं. ऐसे तो सरकार बनने से पहले ही उनके आने की चर्चा थी और उन्हें महत्वपूर्ण मंत्रालय मिलने की बात भी हो रही थी. लेकिन फिलहाल उस पर ब्रेक लग गया है. लेकिन आने वाले दिनों में उपेंद्र कुशवाहा बड़ा फैसला ले सकते हैं. दलबदल को लेकर सख्त कानून बनाए गए हैं बावजूद दलबदल रुक नहीं रहा है.
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दलबदल कानून क्या है एक नजर में जानिए
- 1985 में 52वें संविधान संशोधन के माध्यम से दलबदल विरोधी कानून पारित किया गया. साथ ही संविधान की दसवीं अनुसूची जिसमें दलबदल विरोधी कानून शामिल है. कुछ संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान से जोड़ा गया.
- दलबदल विरोधी कानून के तहत किसी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है. यदि एक निर्वाचित सदस्य स्वेच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता छोड़ देता है.
कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है. किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट किया जाता है. कोई सदस्य अपने को वोटिंग से अलग रखता है. - दलबदल विरोधी कानून के बाद भी है. यदि एक राजनीतिक दल को किसी अन्य राजनीतिक दल में या उसके साथ विलय करने की अनुमति दी गई है. बशर्ते कि उसके कम से कम एक तिहाई विधायक विलय के पक्ष में हों.
लेकिन इसके बाद भी बड़े पैमाने पर दलबदल की घटनाएं होती रही तो फिर 2003 में संविधान में 91वां संशोधन किया गया और इस बार दलबदल कानून में बदलाव कर इस आंकड़े को दो-तिहाई कर दिया गया.
1960 70 के दशक में दलबदल जिस प्रकार से हुए हैं उसके बाद ही दलबदल विरोधी कानून लाया गया. 1967 में हरियाणा के एक विधायक गया राम ने 15 दिनों के भीतर तीन बार दलबदल कर इस कानून को लाने के लिए मजबूर कर दिया. उस समय एक कहावत भी चल पड़ी है, गया राम आया राम.
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बिहार में पिछले डेढ़ दशक में सबसे ज्यादा टूट आरजेडी में हुए
2014 में आरजेडी के 13 विधायकों ने खुद का अलग समूह बना लिया. जावेद इकबाल अंसारी और सम्राट चौधरी के नेतृत्व में विधायकों ने अलग समूह बनाया. उसके बाद जदयू में शामिल हो गए. ऐसे जावेद इकबाल अंसारी फिर से राजद में शामिल हो चुके हैं, तो वहीं सम्राट चौधरी बीजेपी में हैं और अभी मंत्री बनाए गए हैं.