पटना:15 अगस्त 2019 को देश आजाद हुए 77 साल पूरे हो जाएंगे. आजादी के लिए हुए संग्राम को हमने कई दफा पढ़ा होगा. लेकिन जब कोई ऐसा इंसान जो देश के लिए लड़ी गई लड़ाई का गवाह हो, पूरी दास्तां सुनाता है, तो दिल में देशभक्ति के साथ-साथ एक दृश्य बन जाता है. चलिए आपको ऐसे ही दृश्य की ओर ले चलते हैं, जिसे त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सिद्धेश्वर प्रसाद सुना रहे हैं.
ईटीवी भारत ने स्वतंत्रता आंदोलन के गवाह रहे त्रिपुरा के पूर्व राज्यपाल प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद से आजादी के लिए किए गए संघर्षों के बारे में जाना. 95 साल के हो चुके सिद्धेश्वर ने अपनी यादों के पन्ने सामने रखे हैं.
ऐसे होता था क्रांतिकारियों का डिनर...
स्वतंत्रता सेनानी प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद बताते हैं कि जिस समय अंग्रेजों से लड़ाई चल रही थी, उस वक्त एक गांव से दूसरे गांव में क्रांतिकारी रात में आते थे और जैसे ही क्रांतिकारियों की टोली किसी एक गांव में आती थी, तो पूरे गांव के लोग मिलकर उनके लिए खाना इकट्ठा करते थे. उस वक्त दाल-चावल और आलू का भुजिया ही खाने में परोसा जाता था. गांव के सभी घरों से खाने को इकट्ठा किया जाता था. उन क्रांतिकारियों को किसी घर में खिलाया जाता था. उसके बाद मीटिंग कर वहां से वो सभी चल देते थे.
गांधी जी आंदोलन के सूत्राधार थे- प्रोफेसर सिद्धेश्वर
प्रोफेसर सिद्धेश्वर प्रसाद ने बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन के सूत्रपात महात्मा गांधी थे. महात्मा गांधी अगर नहीं होते, तो शायद यह आंदोलन शुरू नहीं होता. महात्मा गांधी जब लखनऊ के कांग्रेस अधिवेशन में गए थे, तो वहां मोतीलाल नेहरू से मुलाकात हुई और महात्मा गांधी को मोतीलाल नेहरू ने जवाहरलाल नेहरू की तरफ इशारा करते हुए कहा कि इनके लिए कुछ कीजिए. वैसे भी दिन भर घर में पड़ा रहता है. तब से कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने जवाहरलाल नेहरू को अंगुली पकड़ उस लायक बना दिया, जिससे उनकी पहचान विश्व भर में हुई. उन्होंने कहा कि नेहरू, जो एक शब्द नहीं बोल पाते थे. गांधी जी की सीख ने उन्हें ऐसा बना दिया कि वो पेरिस में एक घंटे तक बोले.
25 साल का था मैं- पूर्व राज्यपाल, त्रिपुरा
सिद्धेश्वर प्रसाद ने अपने अतीत के पन्नों को पलटते हुए बताया कि आजादी की लड़ाई के समय वो 25 साल के थे. वो कहते हैं, 'मैं मैसेंजर का काम करता था. आंदोलनकारियों के बीच मैसेज पहुंचाया करता था. मैं और हमारे घर में आंदोलनकारियों की मीटिंग हुआ करती थी और बगल में कांग्रेस का दफ्तर बना दिया गया था. जब भी पुलिस वाले आते थे, वो सभी पोस्टर-बैनर कबाड़ कर चले जाते थे.