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किन्नरों को सशक्त बनाने के लिए ये समाजसेविका सिखा रही हुनर

समाज किन्नरों के प्रति एक घृणा और तिरस्कार का दोहरे मापदंड रखती है. किन्नर होने पर लोग मासूम बच्चों को घरों से निकाल देते है. ऐसे में इस वर्ग के लोग समाज के मुख्यधारा से भटक जाते है. वे लोग नशा और देह व्यापार जैसे गलत कामों में संलिप्त हो जाते है.

किन्नरों को सशक्त और स्वावलंबी

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Published : Nov 4, 2019, 2:57 PM IST

पटना: वर्तमान समय जब देश की महिलाएं चांद पर भी अपना परचम लहरा रही है. ऐसे में देश में एक ऐसा भी समाज है,जिसे लोग घृणा और तिरस्कार के नजरों से देखते है.हालांकि शासन व्यवस्था अब इस वर्ग के लोगों को भी हर क्षेत्र में बराबरी कराने के लिए प्रयासरत है. इस बाबत राजधानी में समाजसेवी महिला इस समाज के लोगों को सशक्त और स्वावलंबी बनाकर जीविकोपार्जन का हुनर सिखा रही है.

समाजसेविका

'गलत दिशा में भटक जाते है थर्ड जेंडर के लोग'
इस बाबत समाजसेवी महिला ओशिन बताती है कि वर्तमान समय में जब देश चांद पर जा रहा है, लेकिन फिर भी समाज किन्नरों के प्रति एक अलग घृणा और तिरस्कार का दोहरे मापदंड रखती है. किन्नर होने पर लोग मासूम बच्चों को घरों से निकाल देते है. ऐसे में इस वर्ग के लोग समाज के मुख्यधारा से भटक जाते है. वे लोग नशा और देह व्यापार जैसे गलत कामों में संलिप्त हो जाते है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

'जीविका का साधन है मसला'
ओशिन बताती है कि किन्नरों का सबसे बड़ा समस्या उनका स्वास्थ्य , शिक्षा , जीविका का साधन है, उनके लिए आवासीय सुविधा है. उस पर हमारा सामाजिक अधिकारिता मंत्रालय क्या कर रहा है. जब तक उनके जीवन से जुड़े मुद्दों पर कोई ठोस नीति नहीं बनेगी तब तक उनका जीवन सुंदर और सुखद नहीं होगा.

किन्नरों को बना रही है स्वावलंबी
समाजसेवी ओशिन बताती है कि इस वर्ग के लोगों को कोई नौकरी पर नहीं रखता है. जिस वजह से वें किन्नरों को स्वावलंबी बनाने के लिए ब्यूटीशियन ,लिपस्टिक पेंटिंग का हुनर सिखाती है. लेकिन समाज के दोहरे मापदंडों के कारण लोग इनको आज भी नौकरी पर नहीं रखते है. उन्होंने बताया कि इस वर्ग के लोग पैसे के नही बल्कि प्यार के भुखे होते है.

'किन्नरों के संघर्ष पर लिखा किताब'
ईटीवी से बात करते हुए ओशिन ने बताया कि किन्नर समाज पर एक पुस्तक लिखी है, जो अगले साल के फरवरी तक प्रकाशित हो जाएगी. उन्होंने बताया कि इस किताब में एक किन्नर बच्चे के संघर्ष की कहानी है, जिसे उसके परिवार के लोग बचपन में घर से बाहर जाकर कहीं दूर फेंक दिया था. इस पुस्तक में किन्नर समाज को मुख्यधारा में लाने की संघर्ष की कहानी है.

भारत में थर्ड जेंडर की स्थिति शोचनीय
गौरतलब है कि भारतीय संस्कृति उदार है किन्तु समाज में एक दोहरापन है जो सदियों से जेंडर के आधार पर सामाजिक अधिकार तय करता आ रहा है. भारत में थर्ड जेंडर की स्थिति योरोपीय देशों की तुलना में शोचनीय है. देश में इस किन्नरों को नाचने, गाने, फूहड़ अभिनय करने वाले के रूप में जाना जाता है. हालांकि आजादी के 67 साल बाद इस समाज के लोगों को एक अलग पहचान थर्ड जेंडर के रूप में हुई.

आजादी देने में सोशल नेटवर्किग साइट सबसे आगे
नागरिकों को अधिकार देने में दुनिया की सरकारें भले ही पीछे हैं लेकिन सोशल नेटवर्किग साइट इस रेस में काफी आगे है. बता दें कि फेसबुक पर मेल, फीमेल के साथ कुल 50 जेंडर मौजूद हैं.

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