पटना :बिहार में बाढ़ से लगभग दो दर्जन जिले प्रभावित होते रहे हैं. वहीं उत्तर बिहार में प्रतिवर्ष बाढ़ की तबाही बदस्तूर जारी रहती है. विशेषज्ञों के अनुसार इसका प्रमुख कारण उत्तर बिहार में नदियों के जाल होने के बावजूद कोई बड़ी सिंचाई योजना का नहीं होना बताया जाता है. इसको लेकर लंबे समय से नदी जोड़ योजना पर चर्चा होती रही है.
'कोसी-मेची नदी जोड़ योजना' को लेकर बिहार सरकार ने कई साल पहले केंद्र सरकार को डीपीआर सौंपा था. वहीं इसे केंद्र से स्वीकृति भी मिल गई, लेकिन आगे इसमें पर्यावरण का पेंच फंस गया. साथ ही सरकार इस योजना पर खर्च होने वाली राशि को लेकर भी कोई रास्ता नहीं निकाल सकी.
आधा दर्जन जिलों की तकदीर बदलने की उम्मीद
इसी क्रम में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बार फिर से इस योजना को प्रधानमंत्री के समक्ष उठाकर इसे राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करने की मांग की है. वहीं योजना को केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय से स्वीकृति के लिए जल संसाधन मंत्री संजय झा जल्द ही पत्र लिखने वाले हैं. सरकार को उम्मीद है कि 'कोसी-मेची नदी जोड़ योजना' से सीमांचल के आधा दर्जन जिलों की तकदीर बदल सकती है.
120.5 किलोमीटर लंबी नहर की खुदाई
बता दें कि 17 दिसंबर 2016 में केंद्र सरकार ने पर्यावरण क्लीयरेंस की शर्त पर बिहार सरकार को 'कोसी-मेची नदी जोड़ योजना' की मंजूरी दे दी थी. जिसमें अब तक पर्यावरण क्लीयरेंस का मामला फंसा हुआ है. इस योजना के अंतर्गत 120.5 किलोमीटर लंबी नहर की खुदाई की जाएगी. यह नहर नेपाल के तराई क्षेत्र से गुजरेगी. जिसे बकरा, रावता और कनकई जैसी छोटी नदियों को इससे जोड़ा जाएगा. कोसी के आधा दर्जन जिलों में इससे सिंचाई की सुविधा मिलेगी. जिसमें सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज और पूर्णिया जिले शामिल हैं.
पर्यावरण का फंसा मामला
गौरतलब है कि योजना मंजूरी के समय इसकी लागत 4900 करोड़ रुपये अनुमानित थी. जिससे 120.5 किलोमीटर लंबी नहर के निर्माण से कुल 4.74 लाख हेक्टेयर भूमि पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने की योजना थी. साथ ही 1.75 लाख हेक्टेयर भूमि पर नेपाल के क्षेत्र में भी सिंचाई सुविधा होगी. ऐसे तो बिहार की ओर से एक दर्जन नदी जोड़ योजना पर चर्चा होती रही है. जबकि बिहार ने केंद्र सरकार को तीन बड़ी योजना का डीपीआर सौंपा था. जिसमें से कोसी-मेची योजना पर ही मोहर लगी, लेकिन उसमें भी पर्यावरण का मामला फंसा हुआ है.
- बिहार सरकार द्वारा केंद्र को भेजे गए तीन नदी जोड़ योजनाओं का डीपीआर इस प्रकार है-
1. 'बूढ़ी गंडक नून बाया गंगा लिंक'- 8 जनवरी 2014 को सौंपे गए डीपीआर के अनुसार 71 किलोमीटर में कैनाल बनाकर बूढ़ी गंडक नदी का पानी नून और बाया नदी के रास्ते गंगा में मिलाने का था. इससे वैशाली, समस्तीपुर और मुजफ्फरपुर जिले को बाढ़ से निजात मिलने की उम्मीद जताई गई है. साथ ही इससे 247001 हेक्टेयर सिंचाई क्षमता भी विकसित होगी. उस समय योजना का लागत 4213.8 करोड़ आंका गया, लेकिन अब इसकी लागत 65 सौ करोड़ तक अनुमानित है.
2. 'कोसी-मेची लिंक'- इसका डीपीआर 2 मई 2014 को सौंपा गया. जिसके अंतर्गत 120.15 किलोमीटर लंबे कैनाल का निर्माण होना है. कोसी बेसिन के पानी को महानंदा बेसिन में मेची लिंक से लाया जाएगा. जिससे 214000 हेक्टेयर से अधिक खेतों को सिंचाई सुविधा मिलेगी. इससे सुपौल, सहरसा, अररिया, किशनगंज और पूर्णिया जिले को लाभ मिलने की उम्मीद जताई गई है. वहीं इसकी लागत लगभग 5 हजार करोड़ था, जो अब बढ़कर 7500 करोड़ होने का अनुमान है.