पटना:रघुवंश बाबू ने जिस कार्यालय में अपनी जिंदगी बिता दी, अपने जीवन के 32 बसंत काट दिए, राजनीतिक उतार चढ़ाव का हर रंग देखा वही राजद कार्यालय अपने इस नेता का अंतिम दर्शन नहीं कर सका. सवाल उठ रहा है कि रघुवंश बाबू ने जिस कार्यालय और पार्टी को पूरा जीवन दे दिया, अंतिम यात्रा के समय उसके दरवाजे पर ताला क्यों लटक गया.
पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश सिंह पंचतत्व में विलीन हो गए. उनके पैतृक गांव शाहपुर में अंतिम संस्कार किया गया. इस दौरान नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और बिहार सरकार के मंत्री नीरज कुमार, जय कुमार सिंह सहित बड़ी संख्या में लोग पहुंचे थे. लेकिन एक सवाल सबकी जुबां पर है., आखिर क्यों रघुवंश सिंह के पार्थिव शरीर को उस पार्टी के दफ्तर नहीं ले जाया गया? जहां उन्होंने अपनी जिंदगी गुजार दी.
रघुवंश सिंह तीन दशक से ज्यादा वक्त तक लालू यादव के साथ रहे. ऐसा जिक्र उन्होंने खुद अपने आखिरी चिट्ठी में किया, जब उन्होंने ये लिखा कि मैं आपके पीछे 32 सालों तक रहा, लेकिन अब और नहीं. 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन के वक्त से वे पार्टी के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक रहे. कभी नाराजगी हुई, तो खुलकर मुखर होकर पार्टी में अपनी आवाज उठाते रहे. हाल के दिनों में बीमारी के दौरान ही अस्पताल से उन्होंने पार्टी छोड़ने की घोषणा कर दी थी. लेकिन जब उनकी मौत हुई, तो ये उम्मीद की जा रही थी कि उन्हें राजद दफ्तर में श्रद्धांजलि दी जाएगी. क्योंकि लालू ने उनका इस्तीफा को अस्वीकार कर दिया था.
आरजेडी, जेडीयू पर लगा रही आरोप
बीजेपी नेता अरविंद सिंह ने कहा है कि ये बहुत ही शर्मनाक बात है. राजद ने जैसा सलूक आखरी वक्त में रघुवंश प्रसाद सिंह के साथ किया, उसने शर्मसार कर दिया है. इधर राजद नेता कुछ भी इस मामले में बोलने से बच रहे हैं. हालांकि दबी जुबान में भी इन सब का ठीकरा जदयू पर फोड़ रहे हैं और यह कह रहे हैं कि सब जदयू की साजिश है. लेकिन रघुवंश प्रसाद सिंह ने जिस तरह की नाराजगी जताई थी.
राजद के लिए अच्छे संकेत नहीं
रघुवंश प्रसाद सिंह जिस नाराजगी के वजह से पार्टी छोड़ने की घोषणा की थी, उसके बाद माना जा रहा है कि उनके परिवार वाले भी ये मानकर चल रहे थे कि अगर रघुवंश प्रसाद सिंह के पार्थिव शरीर को राजद दफ्तर ले जाया गया, तो कहीं न कहीं ये उनका अपमान होगा. यही वजह है कि चुनाव के वक्त एक तरफ जहां रघुवंश प्रसाद सिंह का जाना पार्टी के लिए भारी पड़ सकता है. वहीं, पार्टी दफ्तर में उनके पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि नहीं देने के बाद भी राजद के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं.