पटना: बिहार में साल 2016 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने शराबबंदी कानून (Prohibition Law) लागू किया था. कड़े कानून के बावजूद राज्य में शराब की बिक्री चोरी-छिपे जारी है. जहरीली शराब से मौत (Death by Drinking Spurious Liquor) का सिलसिला भी थमने का नाम नहीं ले रहा है. जहरीली शराब पीने से दो सेना के जवान भी मौत के मुंह में समा गए है. इस साल लगभग 100 से ज्यादा की मौत जहरीली शराब पीने से हो चुकी है. एक सर्वे के मुताबिक बिहार में शराबबंदी के बाद 17 फीसदी शराब की खपत बढ़ गई है. गांव-गांव में शराब माफिया पैदा हो गए हैं. शराब माफिया का बड़ा सिंडिकेट राज्य में काम कर रहा है और अवैध शराब का निर्माण और डिलीवरी उनका धंधा है. भ्रष्ट पुलिस पदाधिकारियों के साथ मिलीभगत कर शराब माफिया शराबबंदी कानून को ठेंगा दिखा रहे हैं.
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शराबबंदी कानून लागू होने के बाद से न्यायपालिका पर भी अतिरिक्त बोझ बढ़ा है. 125000 से ज्यादा केस पेंडिंग हैं. संसाधनों के अभाव में केसों का निपटारा भी टेढ़ी खीर साबित हो रही है. एक ओर जहां लोगों को न्याय मिलने में देरी हो रही है तो वहीं दूसरी तरफ दोषियों को सजा दिलाने की रफ्तार भी कम है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 130 लोगो की मौत जहरीली शराब से बताई जा रही है, लेकिन आंकड़ा इससे काफी ज्यादा है. इस साल ही 100 से ज्यादा लोग जहरीली शराब पीकर मौत के मुंह में समा चुके हैं. ज्यादातर मामलों में पोस्टमार्टम नहीं होने की वजह से मौत के कारणों की पुष्टि नहीं हो पाती है.
शराबबंदी कानून आज की तारीख में मजाक बन कर रह गया है. बिहार विधानसभा में भी कई बार शराबबंदी कानून को लेकर सवाल उठाए जा चुके हैं. जहरीली शराब से मौत के बाद शराबबंदी कानून की समीक्षा की मांग जोर पकड़ने लगी है. जेडीयू (JDU) की अहम सहयोगी बीजेपी (BJP) ने शराबबंदी कानून की समीक्षा की वकालत की है.
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