पटना:मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार की सत्ता से लालू यादव को कानून व्यवस्था को लेकर ही बाहर किया था. 2005 में बिहार की कुर्सी संभालने के बाद नीतीश कुमार ने कानून व्यवस्था को प्राथमिकता के आधार पर ठीक किया था. 15 साल बिहार की सत्ता संभालने के बाद राजद के 15 साल बनाम नीतीश के 15 साल की तुलना जदयू के नेता करते थे तो उसमेंकानून व्यवस्था नंबर एक पर होता था, लेकिन वर्तमान में बिहार में बढ़ रही आपराधिक घटनाओं ने नीतीश कुमार के यूएसपी कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर दिया है.
पढ़ें- Bihar Journalist Murder : बिहार में पत्रकार की हत्या, घर में 4 अपराधी घुसे और जगाकर मार दी गोली
3C से नहीं करते नीतीश समझौता:बीजेपी कानून व्यवस्था के मुद्दे पर नीतीश कुमार को घेर रही है. वहीं प्रतिदिन हो रही हत्याओं ने नीतीश कुमार की चुनौती को बढ़ा दी है. पुलिस वाले से लेकर पत्रकार तक की हत्या होने लगी है. हालांकि अभी भी नीतीश कुमार और जदयू के नेता मानने के लिए तैयार नहीं है कि बिहार में अपराध बढ़ रहा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 3c से समझौता नहीं करने को लेकर जाने जाते हैं. क्राइम करप्शन और कम्युनिज्म से समझौता नहीं करना नीतीश कुमार की यूएसपी रही है. लालू प्रसाद यादव को इन्हीं मुद्दों पर सत्ता से बेदखल भी किया था और बीजेपी के साथ नीतीश कुमार लंबे समय तक शासन करते रहे.
बिहार में अपराध पर नीतीश का बयान: अभी राजद के साथ महागठबंधन की सरकार बिहार में चल रही है. कभी जदयू के नेता आरजेडी पर अपराध को लेकर कई तरह के आरोप लगाते थे. फिलहाल राजद के साथ शासन करने के बावजूद जदयू नेताओं का दावा है कि बिहार में अपराध नियंत्रण में है. नीतीश कुमार कह रहे हैं कि बिहार में अपराध नहीं बढ़ रहा है, लेकिन जिस प्रकार से हत्याएं हो रही है लूट हो रहा है और अन्य अपराध में वृद्धि हुई है, नीतीश कुमार के दावे की पोल खोल रहा है.
"बिहार में आपराधिक घटनाएं काफी कम है. कितना कम है जरा आंकड़े तो देखिए. सारा फिगर जब प्रकाशित होता है तब देखिए. लोग अपने मतलब के लिए कुछ भी कहते रहते हैं."- नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार
"कानून व्यवस्था हम लोगों के लिए शुरू से चुनौती रहा है. जब बीजेपी साथ थी तब भी बड़ी घटनाएं होती थीं, लेकिन उस समय बीजेपी के लोग सवाल खड़ा नहीं करते थे. आज जंगलराज 2 की बात कर रहे हैं."- नीरज कुमार, मुख्य प्रवक्ता, जेडीयू
पिछले एक हफ्ते में बिहार में हत्या: पिछले 1 सप्ताह में समस्तीपुर में दारोगा की हत्या कर दी गई. पशु तस्करों द्वारा और अररिया में एक पत्रकार की अपराधियों ने हत्या कर दी. उससे पहले राजधानी पटना में दिनदहाड़े सड़क पर एक नर्स की हत्या कर दी गई. 1 अगस्त को पटना के गल्ला व्यापारी को अपराधियों ने गोली मार कर मौत के घाट उतार दिया. पटना में लूटपाट के दौरान अपराधियों ने एक व्यक्ति की 30 जुलाई को हत्या कर दी. राजधानी पटना में ही जुलाई महीने में 30 हत्या और 16 लूट की घटना हुई है. अगस्त महीना अभी चल ही रहा है लेकिन पुलिस वाले और पत्रकार की हत्या ने सियासी बवाल मचा दिया है.
राजद शासन की तुलना में नीतीश के शासन में आई कमी: राजद के 15 साल के शासन और नीतीश कुमार के 15 साल के शासन की तुलना जदयू के नेता इन आंकड़ों से करते रहे हैं. 1990 से 2005 तक की बात करें तो हत्या के 67249 मामले सामने आए. वहीं डकैती के 32344, रॉबरी के 41930, बैंक डकैती के 331, दंगा के 167866 और फिरौती के लिए अपहरण 5243 मामले सामने आए थे. वहीं 2005 से 2021 तक में हत्या के 49920, डकैती के 8021, रॉबरी के 27428, बैंक डकैती के 168, दंगे के 158124 और फिरौती के लिए अपहरण के 1065 मामले सामने आए. आंकड़ों से साफ दिखता है कि राजद शासन की तुलना में नीतीश कुमार के शासन में हत्या में 25% से अधिक की कमी आई. वहीं डकैती में 75% से अधिक की कमी आई और अपराध के अन्य मामलों में भी काफी कमी आई. अपहरण में 80% से भी अधिक कमी आई.
नीतीश के ये दो कार्यकाल रहे बेहतर: नीतीश कुमार के शुरुआती दो कार्यकाल कानून व्यवस्था के लिहाज से बेहतर माना जाता है और उस दौरान के आंकड़ों को देखें तो 2012 से 2016 तक हत्या के 16169, डकैती के 2432, दंगा के 61296, फिरौती के लिए अपहरण के 297 मामले आए थे. यानी कि हर साल 3233 हत्याएं होती रही, डकैती की 486 घटनाएं हर साल हुई और अपहरण की 60 घटनाएं हर साल घटित हुईं.
शराबबंदी का दिखा असर: हालांकि 2017 से 2021 के दौरान जब शराबबंदी लागू हुआ तो अपराध की घटनाओं में और कमी होने का आंकड़ा सामने आया और हर साल 3000 से कम हत्या हुई इस तरह डकैती और अपहरण की घटना में भी काफी कमी आई. इसके अलावा खासकर महिलाओं के साथ अपराध में काफी कमी आई, लेकिन महागठबंधन की सरकार बनने के बाद केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने ट्वीट कर कहा कि महागठबंधन सरकार के 1 साल में 3000 से अधिक हत्याएं हुई हैं और अन्य आपराधिक घटनाएं भी बढ़ी हैं.
"आंकड़ों का हवाला देकर मुख्यमंत्री और महागठबंधन के नेता यह कहना चाहते हैं कि बिहार में आपराधिक घटनाएं नहीं बढ़ी हैं तो क्या बिहार नंबर वन पर पहुंच जाएगा. तब कहेंगे कि बिहार में अपराध की घटनाएं हो रही है. नीतीश कुमार भ्रष्टाचार और अपराध के मुद्दे पर ही जिनके खिलाफ लड़ कर बिहार में सत्ता में आए थे लेकिन आज उन्हीं लोगों के साथ फिर से सत्ता में चले गए."- अनिल शर्मा, बीजेपी एमएलसी
एनसीआरबी की रिपोर्ट से खुलती पोल:अगर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की रिपोर्ट को मानें तो 2021 में जो अपराध का आंकड़ा रहा है, उसमें कानून व्यवस्था के मामले में बिहार की स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती है. 2021 में उत्तर प्रदेश के बाद हत्या के सबसे ज्यादा मामला बिहार में हुआ था. हत्या करने का प्रयास के मामले में पश्चिम बंगाल के बाद बिहार दूसरे नंबर पर था. किडनैपिंग के मामले में उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद बिहार का नंबर था.
हत्या के मामले में दूसरे नंबर पर बिहार:एनसीआरबी की रिपोर्ट में बताया गया है कि 2021 में उत्तरप्रदेश में 3717 हत्याएं हुईं. वहीं बिहार में 2799, महाराष्ट्र में 2330, मध्यप्रदेश में 2034 और पश्चिम बंगाल में1884 मामले सामने आए.
जमीन विवाद बड़ा कारण:एनसीआरबी की रिपोर्ट में बिहार में 65% अपराध के पीछे जमीन विवाद बताया जाता रहा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी 2022 विधानसभा में जानकारी दी थी कि बिहार में कुल हत्याओं में 60% जमीन विवाद के कारण ही हत्या होती है लेकिन बिहार में जब से महागठबंधन की सरकार बनी है और हाल के दिनों में जिस प्रकार से हत्याओं का सिलसिला शुरू हुआ है, साफ दिख रहा है कि संज्ञय अपराध में काफी तेजी से बढ़ोतरी हुई है. इसलिए बीजेपी बिहार में फिर से जंगल राज की वापसी की बात कह रही है. यहां तक कि बीजेपी के सांसद और बिहार के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल ने तो यहां तक कहा है कि बिहार में पाकिस्तान से भी बुरे हालात हैं.