पटनाःदेश अभी कोरोना संकट (Corona Crisis) से जूझ रहा है. इस महामारी से निपटने के लिए केंद्र और बिहार की सरकार के द्वारा कई तरह के कदम उठाए जा रहे हैं. कोरोना संकट से निपटने के लिए केंद्र ने जहां सांसद निधि (MP Fund) को कोरोना केयर फंड में डालने का फैसला लिया है. वर्तमान वित्तीय वर्ष में भी सांसदों को क्षेत्र में खर्च करने के लिए 5 करोड़ की राशि आवंटित नहीं की जाएगी. सरकार के इस फैसले के बाद घमासान मचा है.
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कब हुई थी योजना की शुरुआत?
दरअसल, नरसिम्हा राव ने 23 दिसंबर, 1993 को सांसदों के लिए वार्षिक निधि का प्रस्ताव रखा था. जो काफी बहस के बाद आखिरकार पारित हो गया था. इसके बाद से 27 साल से यह योजना चलती आ रही है. लेकिन कोरोना महामारी के कारण इस राशि का इस्तेमाल कोरोना से निपटने में करने का फैसला किया है. शुरुआत में सांसद निधि योजना के तहत सांसद हर साल एक करोड़ रुपये का काम अपने क्षेत्र में करवा सकते थे. 1997-98 में रकम बढ़कर दो करोड़ सालाना हो गई.
2011-12 में राशि हुई सालाना 5 करोड़
2011-12 में जब यूपीए 2 को दो साल बीत गए थे, तब सांसद निधि को बढ़ाकर पांच करोड़ सालाना कर दिया था, जो अब भी बरकरार है. केंद्र सरकार का वित्त आयोग इस योजना की देखभाल करता रहा है और इसके लिए पैसे जुटाता रहा है. साल 2018 में आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमिटी ने इस योजना के बारे में बात की थी और तय किया था कि 14वें वित्त आयोग तक यह योजना लगातार चलती रहेगी. 31 मार्च, 2020 को 14वें वित्त आयोग का कार्यकाल खत्म होने के साथ ही कोरोना संकट ने दस्तक दे दिया जिसके बाद सरकार ने सांसद निधि के पैसे को कोरोना मद में डालने का फैसला लिया.
सांसद निधि पर क्या है प्रावधान?
साल 2019 के सांसद निधि की राशि को लेकर सांसदों ने जब हंगामा किया तो सरकार ने सांसदों को ढाई करोड़ रुपए क्षेत्र में खर्च करने के प्रावधान कर दिया. लेकिन शर्त यह रख दी गई कि रकम कोरोना से निपटने में खर्च किए जाए. बिहार के तमाम सांसद सांसद निधि का इस्तेमाल स्वास्थ्य संबंधी उपकरण खरीदने में कर रहे हैं. साल 2019 के बाद से अगले 3 साल तक सांसद अपने निधि का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे.