नई दिल्ली/पटनाः पीएम मोदी ने सदन में कांग्रेस और विपक्षी दलों को किसान आंदोलन के मुददे पर जिस मुहावरे के संबोधन से जवाब दिया उसने कांग्रेस की मौजूदा राजनीति की पूरी कलई ही खुल गयी. भोजपुरी में पीएम मोदी ने कहा, 'न खेलब, न खेले देम, खेलवे बिगाड़ब...' भोजपुरी के इस मुहावरे से मिली राजनीतिक नसीहत को कांग्रेस का हर नेता बेहतर तरीके से समझ गया है. पीएम मोदी ने अपने भाषण में जिस भोजपुरी मुहावरे का उपयोग किया. उससे कांग्रेस की किसान राजनीति और उससे होने वाले राजनीतिक फायदे नुकसान की हर परत को परत दर परत कुरेद दिया. भाजपा नेताओं ने सदन में भोजपुरी मुहावरे पर ताली बजायी. लेकिन कांग्रेस के लोगों के मन के अंदर पल रही राजनीति की पूरी मुरीद की चुलें ही हिल गयी.
राजनीति जमीन चमकाने के चक्कर में कांग्रेस चारों खाने चित्त
पीएम मोदी ने अपने भाषण में किसान आंदोलन को अपने हक की लड़ाई की जायज मांग बता दी. साथ ही आंदोलनकारी को आंदोलनजीवी जैसे शब्दों से विपक्ष को बता दिया कि किसान आंदोलन से क्या साधने की कवायद हो रही है. दरअसल कांग्रेस किसान आंदोलन से एक नहीं कई निशाने को साधने की कोशिश कर रही है. भोजपुरी मुहावरे से पूर्वी भारत की राजनीति को सिर्फ किसान राजनीति से जोड़कर देखा जाए तो चल रहे किसान आंदोलन को महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह से जोड़कर कांग्रेस ने जिस राजनीति को हवा दी थी, उसकी पूरी बानगी ही बेदम हो गयी. गांधी और किसान से अपनी राजनीति जमीन को चमकाने के चक्कर में कांग्रेस चारो खाने चित्त हो गयी.
कांग्रेस यह समझ ही नहीं पायी कि चम्पारण में जबरन की खेती का विरोध था. जबकि इस आंदोलन को जबरन राजनीति की खेती के लिए खींचा जा रहा है. जिसका फायदा होने के बजाय नुकसान हो जाएगा.
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एक तीर से साधे कई निशाने
पीएम मोदी ने विपक्ष पर एक नहीं कई सवाल दाग दिए. जिसके जवाब के लिए विपक्ष पूरी तरह चुप रहा. पीएम मोदी ने कहा कि देश बदल रहा है, विकास ने रफ्तार पकड़ी है. ऐसे में विपक्ष को देश के विकास के मुद्दे पर कोई सवाल ही नहीं है. 27 शहर में मेट्रो और 27 हजार गांवों तक हाई स्पीड इंटरनेट की सेवा के साथ ही 600 किलोमीटर डेडिकेटेड फ्रेट कोरिडार पर दौड़ती किसान ट्रेन पर सवाल उठाने के लिए विपक्ष के पास कुछ नहीं है.
कोरोना के समय में देश की सेवा में जुटे स्वास्थ्य कर्मियों को भगवान के नाम से बुलाकर गांव-गांव तक फैले ग्रामीण स्वास्थ्य कर्मियों को सेवा का नया संबल दे दिया. पीएम मोदी ने पूर्वी भारत के विकास के बिना देश का विकास नहीं हो सकता. भोजपुरी के जिस मुहावरे से कांग्रेस को राजनीति की नसीहत दी. उससे मोदी ने एक तीर से कई निशाने साध दिए.
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इसलिए बिहार के किसान नहीं बने आंदोलन का हिस्सा
दरअसल, किसान और गांव की जिस राजनीति को कांग्रेस 20 से शुरू कर अपने आगे की राजनीति को जमापूंजी बनाना चाहती थी, उसमें यूपी, बिहार, बंगाल और पूर्वी भारत की चुनावी तैयारी का मजमून था. जिसके बदौलत कांग्रेस सियासी समर में जाना चाहती थी. दरअसल कांग्रेस इस गणित को बैठा नहीं पायी कि एक राज्य को छोडकर दूसरे राज्य के किसान आदोलन का हिस्सा क्यो नहीं बन रहे.
किसान आंदोलन को लेकर चंपारण की बात सबसे पहले कांग्रेस नेताओं ने की थी, लेकिन कांग्रेस के लोग भूल गए कि जबरन खेती करवाने और खेती के लिए कुछ बनायी व्यवस्था पर जबरन राजनीति में बड़ा फर्क है. यही बजह है कि बिहार के किसान इस मुहीम का हिस्सा ही नहीं बने. यह सभी कहते और मानते हैं कि बिहार बदलाव की धरती रही है, चम्पारण सत्याग्रह का मामला हो या फिर जेपी आंदोलन का बिहार जब जगा हैे, तो उसने देश की राजनीतिक फिजा को ही बदल दिया है.