पटना : बिहार की पटना हाईकोर्ट ने गुरुवार को दो अहम फैसले सुनाए. पटना हाईकोर्ट ने पटना मेट्रो रेल के लिए की जा रही जमीन अधिग्रहण मामले में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए याचिका को निष्पादित कर दिया. जस्टिस अनिल कुमार सिन्हा ने ललिता देवी व अन्य की याचिकाओं पर सभी पक्षों की लम्बी सुनवाई कर फैसला सुरक्षित रखा था, जिसे आज सुनाया गया.
पटना मेट्रो रेल जमीन अधिग्रहण में हस्तक्षेप से इंकार : कोर्ट ने जमीन मालिकों को नई दर से जमीन का मुआवजा तय करने और भुगतान करने का आदेश राज्य सरकार को दिया है. याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता सुमित सिंह ने कोर्ट को बताया कि शहर में करीब 75 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किए जाने से सैकड़ों लोग बेघर हो गए. उनके पुनर्वास करने के लिए राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया है. यहां तक की सरकार की ओर से मुआवजा राशि भी काफी कम रेट से दिया जा रहा है.
सरकारी वकील ने किया याचिकाकर्ता की दलील का विरोध: अर्जी का विरोध करते हुए सरकारी वकील किंकर कुमार ने कोर्ट को बताया कि''स्टेट कैबिनेट ने 2016 में पटना में पटना मेट्रो रेल प्रोजेक्ट के लिए रतनपुरा और आईएसबीपी के पश्चिम दो डिपो बनाने का निर्णय लिया था. लेकिन बाद में स्टेट केबिनेट ने 2020 में दो डिपो के जगह एक ही डिपो बनाने का निर्णय लिया. इस डिपो के लिए 75 एकड़ जमीन, जिसमें 50 एकड़ जमीन पहाड़ी में और 25 एकड़ जमीन रानीपुर में अधिग्रहण करने का फैसला किया गया.''
अधिवक्ता किंकर कुमार का कहना था कि पटना शहर के करीब 22 लाख जनता एवं बाहर से आने वाले लाखों लोगों की सुविधा के लिए यह प्रोजेक्ट काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है. उन्होंने कोर्ट को बताया कि अब तक इस प्रोजेक्ट पर करीब 13 सौ करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं. ऐसे में जमीन अधिग्रहण मामले में हस्तक्षेप करना ठीक नहीं होगा. उन्होंने हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के कई फसलों का हवाला देते हुए इस अधिग्रहण को सही करार दिया. लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया था, जिसे आज सुनाया गया.