पटना:बुधवार को पटना हाईकोर्ट ने पीएचडी करने के लिए शोध पत्र को जमा करने के बाद भी शोध करने वाली अभ्यर्थी को 6 साल तक पीएचडी परीक्षा से वंचित किए जाने के मामले पर नाराजगी जाहिर की है. जस्टिस राजीव रंजन प्रसाद ने अरुणा भारती की याचिका पर सुनवाई करते हुए ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय पर 10 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है. कोर्ट ने हर्जाने की रकम को मुकदमा खर्च के तौर पर याचिकाकर्ता को एक महीने के अंदर भुगतान करें.
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6 साल तक पीएचडी परीक्षा से वंचित रखने पर कोर्ट नाराज: कोर्ट ने इस बात पर भी नाराजगी जताई कि छोटे-छोटे बहाने की आड़ में विश्वविद्यालय प्रशासन ने याचिकाकर्ता के शोध पत्र को जमा करने के 6 साल बाद भी उससे पीएचडी परीक्षा की फीस एवम फॉर्म जमा नहीं करने दिया गया. परिणामस्वरूप शोध पेपर जमा होने के बाद याचिकाकर्ता के शैक्षणिक करियर के महत्वपूर्ण साल बर्बाद हो गए.
क्या कहा था याचिकाकर्ता ने?:याचिकाकर्ता ने यूनिवर्सिटी के समाज विज्ञान संकाय के इतिहास विषय में एक शोध करने के लिए आवेदन दिया था. उसके शोध पत्र का विषय हिंदू राष्ट्रवाद एवं भारतीय राष्ट्रवाद के अंतर्सम्बन्ध था. याचिकाकर्ता के इस विषय शोध को विश्वविद्यालय प्रशासन ने मंजूरी देते हुए 27 मई 2011 को उसके रिसर्च प्रोजेक्ट को पंजीकृत किया. शोध के दौरान अरुणा के गाइड का अचानक देहांत हो गया और 27 मई के ठीक पहले उसने विश्वविद्यालय प्रशासन से नई गाइड देने की गुहार लगाई. अरुणा को 7 महीने बाद 7 दिसंबर 2015 को नए गाइड के रूप में डॉ सुरेंद्र प्रसाद सिंह मिले.
गाइड मिलने में हुई काफी देरी: रिसर्च करने के दौरान गाइड की मौत हो जाने और नई गाइड के मिलने के बीच काफी समय अंतराल होने के आधार पर अरुणा ने अपने शोध पत्र को जमा करने की अधिकतम समयावधि 7 साल को बढ़ाने के लिए एक आवेदन 26 मई 2017 को ही विश्वविद्यालय प्रशासन को दे दिया था. उसके बाद याचिकाकर्ता ने विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में जाकर 22 जून 2017 को अपना पीएचडी प्रेजेंटेशन भी दे दिया, जिस दौरान उसने चार सेट में अपना शोध पत्र विभाग को सौंप दिया था.
क्या कहा था एलएनएमयू प्रशासन ने?: विश्वविद्यालय प्रशासन ने याचिकाकर्ता से पीएचडी एग्जाम की फीस लेने से इसलिए इनकार किया, क्योंकि उनका कहना था कि शोध पत्र को जमा करने की समय अवधि को बढ़ाने के लिए अरुणा का आवेदन ठीक समयावधि पूरा होने के एक दिन पहले ही दिया गया था. इतने कम समय में कोई भी आवेदन पर विचार नहीं किया जा सकता.
परीक्षा में बैठने की अनुमति देने का आदेश:हाई कोर्ट ने इसे यूनिवर्सिटी प्रशासन का एक बहाना करार दिया. वहीं याचिकाकर्ता के वकील ने गुहार लगाई कि बार-बार आवेदन देने के बावजूद 6 साल से उसके मुवक्किल को पीएचडी परीक्षा में भाग नहीं लेने दिया जा रहा है. कोर्ट ने विश्वविद्यालय प्रशासन के मनमानेपन पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि वे फौरन याचिकाकर्ता से पीएचडी परीक्षा की फीस ले और उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति दें.