पटना : बिहार की पटना हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि उत्तर बिहार में बन रहे तिरहुत कैनाल प्रोजेक्ट के लिए 50 वर्ष पहले जो जमीन अधिग्रहण की हुई थी, वह आज भी मान्य है. जस्टिस डॉक्टर अंशुमन ने चंदेश्वर प्रसाद ठाकुर सहित 28 याचिका कर्ताओं की आवेदनों को खारिज कर दिया.
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28 याचिकाकर्ताओं के आवेदन खारिज: सभी रिट याचिकाकर्ताओं का कहना था कि अधिग्रहण की हुई जमीन निबंध दस्तावेज के माध्यम से खरीदी गई है, जिस पर बिहार सरकार के राजस्व अधिकारी ने मालगुजारी रसीद लेते हुए दाखिल खारिज भी कर दिया है. उन सभी जमीन खरीदारों के पक्ष में लैंड पजेशन सर्टिफिकेट भी जारी किया है. यही नहीं खतियान के अनुसार चकबंदी के दौरान जो खाता तैयार हुआ, उसमें भी इन्हीं खरीदारों का नाम उन जमीनों के मालिक के तौर पर दर्ज हुआ है.
50 साल पहले हुई थी अधिग्रहण प्रक्रिया : इसीलिए सभी रिट याचिकाकर्ताओं ने जो सिंचाई परियोजना हेतु अधिग्रहित जमीन के खरीदार थे उनकी तरफ से ये दलील दी गई थी कि 50 साल से भी पहले अधिग्रहण प्रक्रिया जो शुरू हुई थी, वह अब समाप्त हो चुकी है. उनकी खरीदी हुई जमीन को सरकार के परियोजना से डिस्टर्ब नहीं किया जाए.
प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद का था ड्रीम प्रोजेक्ट: वहीं, राज्य सरकार की तरफ से महाधिवक्ता पीके शाही ने कोर्ट को बताया कि यह देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का ड्रीम प्रोजेक्ट था. इसको 1961 में तत्कालीन योजना आयोग की अनुशंसा के अनुसार तिरहुत करनाल परियोजना या पूर्वी गंडक कैनाल परियोजना के तहत शुरू किया गया. इस कैनाल परियोजना में जितनी भूमि की जरूरत थी वह सभी भूमि का अधिग्रहण 1974 तक हो चुका था.
कई रैयतों को जमीन का मुआवजा भी मिला. कई रैयत ऐसे थे, जो कोर्ट में मुकदमा करके मुआवजा प्राप्त किया. उन्होंने अधिक राशि प्राप्त किया. इसीलिए ऐसा कहना कि 50 साल पहले अधिग्रहित हुई भूमि अब लैप्स कर गई है, गलत है. हाई कोर्ट ने यह तय किया कि अधिग्रहण बेस्ट राज्य सरकार को जमीन जब एक बार मिल गई, तो भले ही राज्य सरकार ने उस पर कैनाल बनाया या नहीं बनाये, उस पर निर्भर है.