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नोबेल पुरस्कार विजेता अभिजीत बनर्जी की संस्था J-PAL ने किया कमाल

जे-पाल ने राज्य में मनरेगा लागू करने में ई-गवर्नेंस की भूमिका का भी आकलन किया था. इस टीम में जे-पाल के दोनों सदस्य अभिजीत बनर्जी और उनकी पत्नी एस्टर डुफलो शामिल थे.

अभिजीत बनर्जी

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Published : Nov 1, 2019, 12:56 PM IST

Updated : Nov 1, 2019, 3:35 PM IST

पटनाः इस साल अर्थशास्त्र में नोबेल विजेता अभिजीत बनर्जी का बिहार से पुराना रिश्ता रहा है. प्रदेश में जीविका परियोजना की सफलता में जे-पाल का बड़ा हाथ है. यह संस्था दुनिया के लगभग 50 से ज्यादा दफ्तरों में काम करती है. यहां जिले के एक छोटे से घर में जे-पाल का दफ्तर चलता है. इस भवन के दो कमरे में चलने वाले जे-पाल यानी (अब्दुल लतीफ जमील पॉवर्टी एक्शन लैब) के संस्थापक अभिजीत बनर्जी है.

बेहतर जीविकोपार्जन उपलब्ध कराने में सहायक
जे-पाल संस्था के बिहार-ओड़िशा के रिसर्च मैनेजर रश्मि भट्ट ने बताया कि बिहार में हमारा काम मुख्य रूप से आजीविका मिशन के साथ काम करना रहा है. यह नया प्रोजेक्ट राज्य के ऊर्जा विभाग के साथ भी चल रहा है. उन्होंने बताया कि जे-पाल राज्य के सभी 38 जिलों में जीविका मिशन के जरिए गरीब समुदाय के लोगों को बेहतर जीविकोपार्जन उपलब्ध कराने का काम कर रहा है. बिहार सरकार ने पिछले साल से जीविका मिशन के जरिये जीविकोपार्जन योजना की शुरुआत की है.

पटना में जे-पाल संस्था का दफ्तर

ई-गवर्नेंस की भूमिका का आकलन
संस्था से जुड़े अधिकारी ने बताया कि बिहार में बिजली से गरीबी पर क्या असर पड़ा है. इस पर भी हम काम कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि इससे पहले जे-पाल ने राज्य में मनरेगा लागू करने में ई-गवर्नेंस की भूमिका का भी आकलन किया था. इस टीम में जे-पाल के दोनों सदस्य अभिजीत बनर्जी और उनकी पत्नी एस्टर डुफलो शामिल थे. आकलन में पता चला था कि ई-गवर्नेंस के कारण मनरेगा के भ्रष्टाचार में कमी आई है.

देखें पूरि रिपोर्ट

जीविका के जरिए लाखों महिलाओं को स्वरोजगार
ईटीवी भारत के साथ बातचीत में जीविका की परियोजना प्रबंधक महुआ रॉय चौधरी ने कहा कि जे-पाल के साथ मिलकर जीविका बिहार में अच्छा काम कर रहा है. संस्था के रिसर्च से जीविका को अपना टारगेट अचीव करने में काफी सफलता मिली है. जीविका मिशन के जरिए लाखों महिलाएं स्वरोजगार कर अपना घर चला रही हैं. संस्था बिहार के सबसे सफल योजनाओं में से एक है. हालांकि यह संस्था और इससे जुड़े लोग नहीं चाहते कि इन्हें बहुत ज्यादा प्रकाश में लाया जाए. जिससे संस्था के लोग सही तरिके से अपना रिसर्च कर सके.

Last Updated : Nov 1, 2019, 3:35 PM IST

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