पटना:बिहार में बाढ़ (Flood In Bihar) लोगों की नियति बन गई है. बाढ़ आई और सब कुछ डूब गया, यह बिहार के लिए कोई चौकाने वाला शब्द नहीं रह गया है. हर साल बिहार में बाढ़ आती है. हर साल तबाही मचाती है. हर साल लोग मारे जाते हैं और हर साल हजारों करोड़ रुपये की संपत्ति पानी में बह जाती है. पिछले चार दशकों से बिहार हर साल बाढ़ की त्रासदी झेल रहा है. इससे हर साल करोड़ों का नुकसान होता है, लाखों बेघर होते हैं, हजारों की जान जाती है.
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बिहार के मुजफ्फरपुर, छपरा, सिवान, गोपालगंज, बेतिया, मोतिहारी का सीएम नीतीश कुमार ने अक्टूबर महीने में दौरा किया और यहां के बाढ़ के हालात का जायजा लिया. इस बार के बाढ़ की सबसे बड़ी परेशानी यही है कि बाढ़ का पानी रुक गया है. उत्तर बिहार के लगभग 15 से ज्यादा जिलों की पूरी फसल चौपट हो गयी है. धान के इलाके कहे जाने वाले जिले मुजफ्फरपुर, छपरा, सिवान, गोपालगंज, बेतिया, मोतिहारी में पकी धान की फसल पानी में डूबी हुई है.
किसानों के यह समझ ही नहीं आ रहा है कि आखिर वे क्या करें? किसान इसे अपनी जिंदगी की नियति मान लिए हैं और इसी में जी रहे हैं. बिहार में बाढ़ नॉर्थ बिहार में आती थी लेकिन जिस तरह से बिहार में बाढ़ का आकार बढ़ रहा है उससे जन जीवन तो परेशान हो रहे हैं, बिहार की संरचनात्मक व्यवस्था की पूरी धुरी ही चौपट होती जा रही है. बिहार में 2021 में बाढ़ के रंग को देखकर कहा जा रहा है कि जिस अंदाज में इस बार बाढ़ आयी है उससे बिहार की उम्मीदों का आधार ही टूट गया है. बिहार में कभी बाढ़ सिर्फ 4 जिलों में आती थी लेकिन 2021 की हालत ने आम बिहारी के सोच वाली हर बात को ही पूरी तरह से लूट लिया.
बिहार में बाढ़ से जिंदगी जीने की जंग साल 1979 में शुरू हुई. 4 दशक से हर साल आई बाढ़ ने यहां के लोगों को अपनी विनाशलीला से बेघर किया और काल के गाल में समाने का काम किया. बिहार देश में सबसे ज्यादा बाढ़ की त्रासदी झेलने वाला राज्य है. आंकड़ों की बात करें तो बिहार के 94.16 लाख हेक्टेयर भू-भाग में से 69.10 लाख हेक्टेयर इलाका बाढ़ की चपेट में रहता है. उत्तर बिहार की 80 फीसदी आबादी बाढ़ की चपेट में ही रहती है और अब दक्षिण बिहार का बड़ा इलाका बाढ़ से डूबने लगा है.
बिहार सरकार खुद के अभिलेख में यह दर्ज किया है कि राज्य के 38 में से 28 जिले बाढ़ झेलते हैं. 2021 इसमें सबसे बड़ा अध्याय जोड़ गया. बिहार के बाढ़ प्रभावित जिलों की बात करें तो मुख्य रूप से 19 से 20 जिले ऐसे हैं, जहां हर साल बाढ़ आती है. इनमें पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, मधेपुरा, सहरसा, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, गोपालगंज, सिवान, सारण, समस्तीपुर, खगड़िया, कटिहार शामिल हैं.
बिहार में बाढ़ पर सियासत खूब होती है और बाढ़ राजनीति को मुद्दा भी देती है. बाढ़ की सियासत बिहार में सरकार बना देती है और गिरा भी देती है. बाढ़ को लेकर चिंता तो खूब की गयी लेकिन बिहार को बाढ़ से निजात कैसे मिले उसके लिए जो सरकारी काम होने चाहिए थे नहीं हुए. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की शिकायत भी इसी बात को लेकर है कि हम नदियों में पानी डालते हैं और खुद ही डूब जाते हैं. सीएम ने कहा कि कई गतिविधियों के कारण अविरल हुई गंगा नदी की धारा बिहार को बाढ़ के रूप में प्रलय दिखाती है. इससे निपटने के लिये काफी काम करने की जरूरत है. यह बात में कहने के लिए ठीक है लेकिन 2021 में इसे देखने के लिए जितनी उड़ान नीतीश कुमार ने भरी है, इसे ठीक कैसे किया जाए इसके लिए तैयार होने वाली योजना भी घबरा जा रही है. क्योंकि चूहा और बिल्ली बांध को काटकर कमजोर कर रहे हैं और आम के उम्मीदों के सब्र का बांध अब टूटने लगा है.
बिहार में किसी भी प्रदेश से ज्यादा नदियां हैं. नदियों के रखरखाव के लिए जो काम होना चाहिए था वह नहीं हो सका. अविरलता को लेकर हाल कि दिनों में बात तो जरूर उठी लेकिन जब काम करने की जरूरत थी तब काम नहीं किया गया. पानी के प्रबंधन के ठीक ढंग से इंतजाम नहीं होने और सरकारी उदासीनता के कारण ही वर्ष 2008 में कोसी त्रासदी हुई जिसे राष्ट्रीय आपदा घोषित किया गया.
बिहार में बाढ़ के जो बड़े कारण हैं उन पर एक नजर डाल लेते हैं:
⦁ मिट्टी लाने वाली धारा का मुड़ना.