पटना: नगर निकाय चुनाव को लेकर पटना हाईकोर्ट के फैसले के बादबिहार में EBC आरक्षण पर सियासत (Patna high court decision Over EBC Reservation) शुरू है. जदयू और बीजेपी अति पिछड़ा आरक्षण को लेकर आमने सामने है. जहां आयोग नहीं बनाने को लेकर बीजेपी नीतीश सरकार पर आरोप लगा रही है, तो वहीं जदयू के तरफ से बीजेपी पर आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगाया जा रहा है. जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष और विधान पार्षद उपेंद्र कुशवाहा (MLC Upendra Kushwaha ) ने खास बातचीत में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सहित बीजेपी नेताओं की ओर से लगाए जा रहे आरोप पर अपनी बात रखी.
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''हम लोगों का कमिटमेंट स्पष्ट है, बिना EBC आरक्षण के चुनाव नहीं होगा. सुप्रीम कोर्ट ने बिहार निकाय चुनाव को लेकर कोई आदेश नहीं दिया है. कोई अलग मामले में निर्णय दिया है और हाईकोर्ट ने उससे नगर निकाय चुनाव में अति पिछड़ा आरक्षण को जोड़ दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने जब भी अपना आदेश दिया है उससे पहले बिहार में अति पिछड़ों के आरक्षण की सुविधा चल रही है. इस मामले में बीजेपी का आरक्षण विरोधी चेहरा सामने आ रहा है''- उपेंद्र कुशवाहा, जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष
पुराने मामले में नया आदेश कैसे लागू होगा- कुशवाहा: उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि 2006 में ग्राम पंचायत का चुनाव और 2007 में नगर निकाय का चुनाव एक्ट बनाकर बिहार सरकार ने किया तब से तीन चुनाव हो चुके हैं. तो यह पुराना मामला है, नया मामला है भी नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने अन्य मामले में अपना फैसला दिया है उससे जोड़ना सही नहीं है. उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कानूनी हिसाब से पटना हाईकोर्ट ने तत्काल निर्णय दिया है और उसके कारण नगर निकाय का चुनाव रुक गया है. बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट जाएगी और देखेगी कि क्या कुछ इसमें हो सकता है.
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'BJP आरक्षण को उलझाना चाहती है': बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल के बयान पर उपेंद्र कुशवाहा ने कहा उनके बयान का कोई मतलब ही नहीं है. वो आरक्षण को उलझाना चाहते हैं. क्योंकि उनको आरक्षण पसंद ही नहीं है. जबकि बिहार सरकार और नेता नीतीश कुमार जी का जो इरादा है बिल्कुल साफ है. बीजेपी की ओर से आयोग नहीं बनाए जाने को लेकर नीतीश कुमार पर निशाना साधा जा रहा है. उसको लेकर उपेंद्र कुशवाहा ने कहा कि उसकी कोई आवश्यकता नहीं है. क्योंकि बिहार सरकार ने कोई नया फैसला लिया नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने जिस भी मामले में फैसला दिया है, उसके बाद बिहार सरकार ने यदि कोई फैसला लिया होता तब सवाल उठ सकता था, लेकिन अति पिछड़ा आरक्षण का मामला 2006-07 का है.
''सुप्रीम कोर्ट ने दो-तीन साल पहले फैसला दिया है तो 2006-07 के मामले पर कैसे सुप्रीम कोर्ट का फैसला लागू होगा. यदि सुप्रीम कोर्ट का फैसला तमाम मामलों में लागू हो जाए जहां आरक्षण दिया जा रहा है, जैसा बीजेपी के लोग कह रहे हैं, तब तो 27% ओबीसी के आरक्षण और 10% ईबीसी आरक्षण जो 2019 में केंद्र सरकार ने लागू किया उस पर भी ट्रिपल टेस्ट की बात होगी. बीजेपी के लोग तो यही चाहते हैं कि तमाम मामलों में समीक्षा की स्थिति बन जाए जबकि ऐसा कुछ भी मामला नहीं है''- उपेंद्र कुशवाहा, जदयू संसदीय बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष
ईबीसी के मुद्दे पर कमीशन की जरूरत नहीं: संजय जयसवाल के इस बयान पर कि ''जब बीजेपी के साथ नीतीश कुमार सरकार चला रहे थे तभी आरक्षण लागू किया गया. लालू के समय लागू नहीं किया गया''उपेंद्र कुशवाहा ने कहा नीतीश कुमार जो भी फैसला लेते थे हिम्मत नहीं थी बीजेपी को विरोध करने की. लेकिन अब साथ में नहीं है अलग हैं तो विरोध कर रहे हैं. कमीशन बनाने की कोई जरूरत नहीं है. उसका मामला उठाने का मतलब ही है इनका आरक्षण विरोधी चेहरा सामने आ रहा है. फिलहाल, बिहार सरकार अब ईबीसी के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट जा रही है. पार्टी की आगे क्या रणनीति रहेगी इस पर उपेंद्र कुशवाहा ने कहा बीजेपी की ओर से जो गलतफहमी पैदा करने की कोशिश की जा रही है उसको लेकर जनता के बीच जाएंगे और जो इनका दोहरा चरित्र रहा है पूरे डॉक्यूमेंट के साथ जनता को बताएंगे.
क्या है मामला: दरअसल, बिहार में इस महीने होने वाले नगर निकाय चुनाव को लेकर पटना हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित सीटों पर चुनाव कराने से फिलहाल रोक लगा दी. पटना हाईकोर्ट के इस निर्णय के बाद आनन-फानन में बिहार राज्य निर्वाचन आयोग (Bihar State Election Commission) की बैठक हुई. जिसमें अधिकारियों ने पूरे मामले पर हाईकोर्ट के निर्णय की जानकारी ली. जिसमें राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारी और नगर विकास विभाग के सचिव भी मौजूद रहे. इस बैठक में चुनाव को फिलहाल स्थगित करने का निर्णय लिया गया.
तीन जांच की अर्हता पूरी होने के बाद फैसला :गौरतलब है कि दिसंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि स्थानीय निकायों में ईबीसी के लिए आरक्षण की अनुमति तब तक नहीं दी जा सकती, जब तक कि सरकार 2010 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा निर्धारित तीन जांच की अर्हता पूरी नहीं कर लेती. तीन जांच के प्रावधानों के तहत ईबीसी के पिछड़ापन पर आंकड़ें जुटाने के लिए एक विशेष आयोग गठित करने और आयोग के सिफरिशों के मद्देनजर प्रत्येक स्थानीय निकाय में आरक्षण का अनुपात तय करने की जरूरत है. साथ ही ये भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि एससी/एसटी/ईबीसी के लिए आरक्षण की सीमा कुल उपलब्ध सीटों का पचास प्रतिशत की सीमा को नहीं पार करे.