पटना:बिहार में आज भी शिक्षा आसानी से नहीं मिल पाती है. कई जगहों से शर्मनाक तस्वीरें सामने आती रहती हैं, जहां स्कूल जाने के लिए छात्र छात्राओं को जान जोखिम में डालकर नाव की सवारी करनी पड़ती है. गांव में स्कूल ना होने के कारण बच्चों को नदी पार करना पड़ता है. सबलपुर गांव में भी स्कूल नहीं है. ऐसे में बच्चे जान जोखिम में डालकर गंगा नदी पार कर पटना के स्कूलों में पढ़ने आते हैं.
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पटना में नाव से स्कूल आते हैं बच्चे: मुजफ्फरपुर में बीते दिनों हुए नाव हादसे में कई स्कूली बच्चे नदी में डूब गए. दर्जनों बच्चों को निकाला गया लेकिन अभी भी कई बच्चे लापता हैं. दरअसल यह बच्चे रोजाना नाव से नदी पार कर विद्यालय में पढ़ने जाते थे. बिहार में अपनी तरह का यह कोई इकलौता मामला नहीं है, जहां बच्चे नाव से नदी पार कर विद्यालय में पढ़ने जाते हैं. राजधानी पटना में भी कई ऐसे सरकारी विद्यालय हैं जहां पढ़ने के लिए बच्चे गंगा नदी को नाव से पार कर आते हैं. राजधानी पटना के कलेक्ट्रेट के आसपास के सटे इलाकों में जितने भी सरकारी स्कूल हैं, सभी स्कूलों में काफी संख्या में दियारा क्षेत्र (दियर) के बच्चे नाव से गंगा नदी को पार कर पढ़ने आते हैं.
स्कूल जाने के लिए जान जोखिम में डालने को मजबूर "मैं अंटाघाट प्राथमिक विद्यालय में चौथी कक्षा का छात्र हूं. रोजाना नाव से नदी पार कर स्कूल पढ़ने आते हैं. गांव में ही यदि स्कूल होता तो यह समस्या नहीं होती."- छात्र
जान जोखिम में डालकर रोज स्कूल जाने को मजबूर: सारण जिले के सबलपुर गांव और पटना के कलेक्ट्रेट घाट के बीच गंगा की धारा के बीचो-बीच एक टापू क्षेत्र है. इस टापू क्षेत्र का नाम है सबलपुर दियारा, जहां 1000 से अधिक परिवार रहते हैं. इस गांव में एक भी सरकारी विद्यालय नहीं है. गांव के किसान और मजदूर अपने बच्चों को प्रतिदिन नाव से ही स्कूल भेजते हैं. चाहे बच्चों को पहली कक्षा में पढ़ना हो या दसवीं कक्षा में पढ़ना हो उनके लिए एकमात्र साधन यही है कि या तो वह गंगा नदी के दक्षिणी धारा को पार कर पटना पढ़ने आए या फिर उतरी धारा को पार करके सबलपुर गांव में पढ़ने जाएं. बच्चों को नाव से विद्यालय भेजने के दौरान अभिभावकों की जान तब तक हलक में रहती है, जब तक की बच्चे वापस घर नहीं लौटते हैं.
गंगा नदी पार कर पटना के स्कूलों में पढ़ने आए सैकड़ों विद्यार्थी "सबलपुर दियारा गांव में कोई स्कूल नहीं है. ना हीं गांव में बिजली की व्यवस्था है. शाम में पटना में ही ट्यूशन पढ़ते हैं. ऐसे में स्कूल की छुट्टी होने के बाद 12:00 बजे से शाम 6:00 बजे तक घाट पर ही समय काटना पड़ता है क्योंकि गांव तक जाने का कोई रास्ता नहीं है और नाव ही एकमात्र साधन है. गांव से पटना तक पीपा पुल भी होता तो काफी सहूलियत होती. गांव में यदि विद्यालय होता तो रोज नदी पार कर स्कूल नहीं आना होता."- सोनू कुमार, छात्र
बच्चों ने साझा किया अपना दर्द: दियारा क्षेत्र से नाव से पटना के महेंद्रु घाट पर उतरने के बाद सोनू कुमार ने बताया कि वह बीएन कॉलेजिएट के नौवीं कक्षा के छात्र हैं. रोजाना पढ़ाई के लिए नाव से गंगा नदी पार कर पटना पहुंचते हैं. स्कूल से छुट्टी होने के बाद घर लौटने के लिए नाव में बैठी निशा कुमारी ने बताया कि वह अंटा घाट प्राथमिक विद्यालय में तीसरी कक्षा की छात्रा हैं. विद्यालय जाने के लिए प्रतिदिन अपने गांव सबलपुर दियारा से नाव में बैठकर सुबह-सुबह आती हैं और स्कूल की छुट्टी के बाद नाव से ही लौट जाती हैं.
बिहार में शिक्षा के लिए संघर्ष करते नौनिहाल "बाढ़ के समय नदी में जब पानी बहुत अधिक बढ़ जाता है, तब नाव से यात्रा करना बेहद खतरनाक होता है क्योंकि पानी में करंट बहुत होता है. उस समय हमें स्कूल में शिक्षक स्कूल आने से मना कर देते हैं और कहते हैं जब पानी कम हो जाए तब आना. पानी कम होने के बाद ही विद्यालय आना शुरू करते हैं. इस दौरान स्कूल में काफी पढ़ाई पीछे छूटती है. गांव में यदि स्कूल रहता तो रोजाना नाव से जान जोखिम में डालकर पटना में स्कूल नहीं आना पड़ता."-निशा कुमारी, तीसरी कक्षा की छात्रा
"मैं तीसरी कक्षा में पढ़ती हूं और स्कूल आने के लिए नाव ही एकमात्र साधन है. गांव में कोई स्कूल नहीं है, यदि गांव में स्कूल होता तो गांव के ही स्कूल में पढ़ाई कर सकते थे."-प्रियंका कुमारी, तीसरी कक्षा की छात्रा
"हम सरकार से यही चाहते हैं कि हमारे गांव में भी सरकारी स्कूल बनवा दिया जाए. ताकि जान जोखिम में डालकर नाव से नदी पार कर पटना नहीं आना पड़े."-अंजली कुमारी, छात्रा
'बच्चे जब तक पढ़ते हैं मैं सब्जी बेच लेता हूं..': सबलपुर दियारा गांव के निवासी महेश राय ने बताया कि वह अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए रोजाना नाव से पटना लेकर आते हैं. इस दौरान अपने साथ वह कुछ सब्जियां भी लाते हैं और जब तक बच्चे विद्यालय में पढ़ते हैं वह सब्जियां बेच लेते हैं. फिर स्कूल की छुट्टी होने पर बच्चों को नाव से लेकर घर चले जाते हैं.
"नदी पार कर बच्चों को लाने में जान हलक में बनी रहती है. कई बार कुछ घटनाएं भी घटी हैं जिसको लेकर मन में भय बना रहता है. लेकिन बच्चों को पढ़ने लिखने के लिए और कोई दूसरा साधन भी नहीं है. गांव में स्कूल की सुविधा होती तो बहुत सारे बच्चे पढ़ पाते क्योंकि बहुत कम अभिभावक ही बच्चों को नाव से नदी पार करा स्कूल भेज पाते हैं."- महेश राय, ग्रामीण, सबलपुर दियारा गांव
'चुनाव के बाद भूल जाते हैं नेता':गांव के अन्य ग्रामीण शत्रुघ्न पासवान ने बताया कि गांव में स्कूल नहीं है. नेता लोग इलेक्शन के समय बोलते हैं कि हम स्कूल बना देंगे. जिला परिषद आते हैं तो कहते हैं कि स्कूल बनाते हैं, मुखिया का इलेक्शन आता है तो कहते हैं कि हम बना देंगे. इलेक्शन के बाद कोई भी आज तक देखने नहीं आया है. गांव में ना स्कूल है ना अस्पताल है ना बिजली है.
"गांव में 100% बच्चों में सिर्फ 20% बच्चे ही पढ़ाई कर रहे हैं क्योंकि सभी अभिभावक अपने बच्चों को नाव से पटना स्कूल भेजने में सुरक्षित नहीं महसूस करते हैं. कई बच्चे आज के आधुनिक समय में भी असाक्षर हैं. बच्चे नाव से स्कूल आते हैं तो खतरा भी रहता है क्योंकि लहर में घटना दुर्घटना के समय बड़े तो नदी पार कर सकते हैं लेकिन बच्चों के लिए मुश्किल हो जाती है."-शत्रुघ्न पासवान,ग्रामीण, सबलपुर दियारा गांव
"मैं नाव चलाता हूं और सबलपुर दियारा गांव का हूं. स्कूली बच्चों से आने-जाने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. गांव में स्कूल नहीं है इस वजह से बच्चों को नदी पार करके यहां आना पड़ता है. नाव से नदी पार करते समय बच्चे शैतानी करते हैं, उछल-कूद करते हैं तो डर लगता है. उन्हें संभालना पड़ता है."- नन्हक राय, नाविक