आचार्य से जानें सप्तमी की पूजन विधि और मुहूर्त पटना : आज नवरात्र का सातवां दिन है. नवरात्र में 9 दिनों तक मां दुर्गा की पूजा की जाती है. 9 दिनों तक अलग-अलग स्वरूप की पूजा की जाती है. आज सप्तमी तिथि को मां कालरात्रि की पूजा की जाती है. मान्यता के अनुसार माता के इस रूप की पूजा करने से दुख कष्ट दूर होते हैं. आचार्य पुरुषोत्तम जी ने बताया कि सप्तमी के दिन माता रानी का पट खोला जाता है.
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पूजन का शुभ मुहूर्त: शुभ मुहूर्त और शुभ घड़ी में माता रानी की पूजा अर्चना के साथ ही पट खोलना का विधान है. सप्तमी तिथि का ब्रह्म मुहूर्त सुबह 5:00 बजे से लेकर शाम 5:35 बजे तक है. निशा पूजा का मुहूर्त रात्रि 11:40 से लेकर 12:35 तक है. भक्तों को सुबह में उठकर स्नान से निवृत होकर साफ वस्त्र धारण करके पूजा शुरू करना चाहिए.
पूजा विधि : भगवान गणेश पंचपल्लू नवग्रह देवता को शुद्ध जल से स्नान कारण उसके बाद कलश की पूजा करें. उसके बादमाता रानी पूजा शुरू करें. माता को अक्षत, पान पत्ता, सुपारी, लौंग, इलायची, दूध, दही चढ़ाएं. माता को ऋतु अनुसार य फल फूल मिल सके वह अर्पित करें. उसके बाद जयकारे के साथ माता रानी का पट खोले. उसके रोली कुमकुम चढ़ाए, माता रानी को वस्त्र चढ़ाएं सिंगार का सामान चढ़ाए. उसके बाद दुर्गा सप्तशती दुर्गा चालीसा का पाठ करें. घी का दीपक जलाकर माता का आरती उतारे और क्षमा प्रार्थना करें. इस तरह से विधिवत पूजा करने से माता अति प्रसन्न होती हैं. मां कालरात्रि भक्तों को काल से रक्षा करती हैं. और घर परिवार में सुख समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं.
''मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने के लिए जानी जाती हैं. इसलिए इनका नाम कालरात्रि है. मां दुर्गा की सातवीं स्वरूप महाकाल रात्रि, तीन नेत्रों वाली देवी हैं. जो भक्त नवरात्रि के सातवें दिन विधि विधान से मां कालरात्रि की पूजा करते हैं, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.''- आचार्य पुरुषोत्तम जी
कल्याण करने वाली है माता कालरात्रि : आचार्य पुरुषोत्तम जी ने कहा कि मां दुर्गा को कालरात्रि का रूप शुंभ-निशुंभ और रक्तबीज का वध करने के लिए लेना पड़ा था. कालरात्रि स्वरूप का शरीर अंधकार की तरह है, उनके स्वांस से आग निकलती है. मां के बाल बड़े और बिखरे हुए हैं. गले में पड़ी माला बिजली की तरह चमकती रहती है. मां के तीन नेत्र ब्रह्मांड की तरह विशाल हैं. माता का चार हाथ हैं जिसमें एक हाथ में तलवार, दूसरे में अस्त्र, तीसरा हाथ अभय मुद्रा में और चौथा वर मुद्रा में है.
मां कालरात्रि के स्वरूप से कथा जुड़ी हुई है. जब शुभ-निशुंभ और रक्तबीज जैसे राक्षसों ने तीनों लोकों में हाहाकार मचा रखा था. सभी देवता परेशान थे. देवता परेशान होकर शिव जी के शरण में गए और उनसे सृष्टि की रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगे. तब भगवान शिव ने माता पार्वती को भक्तों की रक्षा और दैत्य का वध करने के लिए कहा. शिवजी की बात मानकर माता ने दुर्गा का रूप धारण कर वध कर दिया.
रक्तबीज वध: जब मां दुर्गा ने रक्तबीज दानव को मौत के घाट उतारा तो दैत्य के शरीर से निकले रक्त से लाखों की संख्या में रक्तबीज दानव उत्पन्न हो गए और यह देख मां दुर्गा ने अपने तेज से कालरात्रि को उत्पन्न किया. मां दुर्गा ने दैत्य रक्तबीज का वध किया और उसके शरीर से निकलने वाले रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही माता ने अपने मुख में भर लिया था, इस तरह मां दुर्गा ने दैत्यराज का वध किया था. रक्तबीज को पीने से मां कालरात्रि का शरीर काला हुआ था.
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