पटना:बिहार में पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने को लेकर नेताओं की बीच बयानबाजी शुरू (Politics regarding old pension scheme in Bihar) काफी पहले से चली आ रही है. पहले विपक्ष की भूमिका निभा रहा महागठबंधन इसे लागू करने की मांग कर रहा था और सरकार इसमें आनाकानी कर रही थी. अब महागठबंधन की सरकार में लोगों को एक बार फिर से पुरानी पेंशन स्कीम लागू होने की उम्मीद जगी है. लेकिन इसको लागू करना सरकार के लिए उतना आसान नहीं होगा या यूं कहे कि एक बड़ी चुनौती होगी.
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अभी नई पेंशन स्कीम के तरह हो रही नियुक्ति: बिहार में सितंबर 2005 से नियमित कर्मचारियों की नियुक्ति नई पेंशन स्कीम के तहत हो रही है. अब तक 2,20000 कर्मचारी नई पेंशन स्कीम के तहत नियुक्त हो चुके हैं. इसके अलावा संविदा पर नियुक्त कर्मचारियों की संख्या भी अच्छी खासी है. बिहार में शिक्षकों की संख्या 4 लाख से अधिक है. कुल मिलाकर देखें तो 5 लाख शिक्षकों व कर्मचारियों पर अगर पुराना पेंशन स्कीम लागू होता है तो सीधे लाभ पहुंचेगा.
महागठबंधन के लिए मुसीबत बनी वादा: आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दलों ने सरकार से बाहर रहने पर लगातार पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने की मांग की थी. आरजेडी ने तो अपने घोषणापत्र में भी इसे शामिल किया था. विधानसभा में भी यह मामला तेजस्वी यादव (deputy cm tejashwi yadav) ने उठाया था. अब महागठबंधन की सरकार है ऐसे में पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर सरकारी कर्मचारियों की उम्मीद जगी है तो वहीं सरकार के लिए चुनौती भी बढ़ी है. जदयू के लिए फिलहाल जवाब देना मुश्किल हो रहा है लेकिन आरजेडी कह रही है कि सभी बातों को हम लोग पूरा करेंगे. वहीं सरकार को समर्थन दे रहे सीपीआई का कहना है कि हम वादा पूरा करने के लिए सरकार पर दबाव बनाएंगे.
क्या पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करेंगे तेजस्वी?: बिहार में 1 सितंबर 2005 के बाद से नई पेंशन स्कीम के तहत ही सरकारी सेवा में नियमित कर्मचारियों की बहाली हो रही है. पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की मांग कर्मचारियों की ओर से होती रही है. जब विपक्ष में आरजेडी, कांग्रेस और वामपंथी दल थे इसे लगातार उठाते रहे. अब बिहार में महागठबंधन की सरकार बन गई है जिसमें आरजेडी कांग्रेस शामिल हैं और वामपंथी दल बाहर से सपोर्ट कर रहे हैं. ऐसे तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही यह सरकार है लेकिन तेजस्वी यादव ने विधानसभा में भी इस मुद्दे को उठाया था. उस समय सरकार की ओर से पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने से इनकार किया गया था लेकिन सरकार में अब तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री हैं और उन पर ना केवल 10 लाख नौकरी बल्कि पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने का दबाव भी बढ़ रहा है.
शिक्षकों को वर्तमान सरकार से उम्मीद: बिहार सरकार पुरानी पेंशन स्कीम के तहत 24252 करोड़ से अधिक की राशि खर्च कर रही है. वहीं वेतनमान में 64788 करोड़ से अधिक की राशि बजट में इस साल भी प्रावधान की है. नियोजित शिक्षक संघ के अध्यक्ष पूरण कुमार का कहना है कि बिहार में 4 लाख से अधिक नियोजित शिक्षक हैं और अब केवल 90 हजार के करीब ही पुराने शिक्षक बच गए हैं जो 2030 तक पूरी तरह से समाप्त हो जाएंगे.
"बिहार में सरकारी कर्मचारियों को पुराना वेतनमान तो मिल रहा है लेकिन पुराना पेंशन नहीं मिल रहा है. पुराना पेशन लागू करने की हमलोग मांग करते हैं. नई पेंशन स्कीम में अब तक 220000 नियमित कर्मचारी 2005 के बाद से नियुक्त हो चुके हैं और 2030 तक पुराने पेंशन स्कीम में केवल 8 से 10 हजार कर्मचारी ही बचजाएंगे."-पूरण कुमार, अध्यक्ष, नियोजित शिक्षक संघ
शिक्षकों में नाराजगी: फिलहाल शिक्षकों को न तो पुराना वेतनमान मिल रहा है और ना ही पुराना पेंशन. यूपीआई के तहत नए पेंशन देने की घोषणा भी हुई है लेकिन वह भी सही ढंग से इंप्लीमेंट नहीं हो रहा है और इसको लेकर शिक्षकों में काफी नाराजगी है. अब महागठबंधन की सरकार बन गई है. तेजस्वी यादव नौकरी देने का वादा पूरा करने की बातें कर रहे हैं
पुरानी पेंशन स्कीम के फायदें : आपको बता दें कि 1 जनवरी 2004 या इसके बाद नियुक्त हुए कार्यों के लिए सरकार ने नई पेंशन योजना लागू की थी. नई पेंशन सिस्टम में कर्मचारी को भी खुद ईपीएफ में पैसा कटवाना होता है. जबकि पुरानी पेंशन बहाल होने से वेतन का आधा पेंशन रिटायरमेंट के बाद मिलेगा. पुरानी पेंशन स्कीम में जीपीएफ की सुविधा थी और पेंशन के लिए वेतन से कटौती नहीं होती थी. रिटायरमेंट पर निश्चित पेंशन यानी अंतिम वेतन का 50% निश्चित तौर पर कर्मचारी को मिलता है और पूरा पेंशन सरकार देती है. रिटायरमेंट पर ग्रेच्युटी यानी अंतिम वेतन के अनुसार 16.5 माह का वेतन भी कर्मचारी को मिलता है. सेवाकाल में मौत होने पर डेथ ग्रेच्युटी की सुविधा मिलती है. सेवाकाल में मौत होने पर कर्मचारी के आश्रित को पारिवारिक पेंशन और नौकरी मिलती है.
"हम लोगों ने जो भी वादा किया है उसे पूरा करेंगे लेकिन धैर्य रखें, अभी तो सरकार के बने कुछ दिन ही हुए हैं. हम लोग जुमलेबाज नहीं हैं. चाहे पुराना पेंशन का मामला हो या पुराना वेतनमान जो भी वादा है उसे पूरा करेंगे. मुख्यमंत्री ने गांधी मैदान से 10 लाख नौकरी और 10 लाख रोजगार की बात भी कही है तो सरकार उसी दिशा में काम कर रही है."- एजाज अहमद, प्रवक्ता आरजेडी
पूरे मामले में जदयू को जवाब देना मुश्किल हो रहा है क्योंकि जब तेजस्वी यादव ने सदन में इस मामले को उठाया था तो जदयू मंत्री विजेंद्र यादव ने ही कहा था कि सरकार के पास पुरानी पेंशन को लेकर कोई प्रस्ताव नहीं है. सरकार कोई विचार नहीं कर रही है लेकिन अब जदयू प्रवक्ता अंजुम आरा का कहना है कि यह तो फैसला मंत्रिमंडल की बैठक में होगा.
"मंत्रिमंडल में इसको लेकर फैसला होगा क्योंकि महागठबंधन की सरकार बनी है. उसमें सभी सातों दल के अपने-अपने घोषणापत्र होंगे. इसलिए जो भी फैसला होगा वह तो मंत्रिमंडल ही करेगा."-अंजुम आरा, प्रवक्ता जदयू
"पुराने पेंशन स्कीम को लेकर पूरे देश में कर्मचारी आवाज उठा रहे हैं. 1 सितंबर को काला बिल्ला लगाकर विरोध भी करेंगे. जब कई राज्यों में इसे लागू किया गया है तो बिहार में क्यों नहीं लागू हो सकता है? हम लोग इस मुद्दे पर सरकार पर दबाव बनाएंगे. पार्टी के अधिकृत लोग इसे उठा रहे हैं. वहीं सदन में इस बात को हम ले जायेंगे."- केदार पांडे, विधान पार्षद, सीपीआई
हो सकते हैं कुछ बदलाव: कांग्रेस तो इसके समर्थन में पहले से ही है. कांग्रेस शासित कई राज्यों में इसे लागू भी किया गया है जिसमें राजस्थान छत्तीसगढ़ शामिल है. ऐसे सरकार की ओर से नई पेंशन स्कीम में भी कुछ बदलाव करने की तैयारी हो रही है. सरकारी कर्मियों को पहले की तरह परिवारिक पेंशन का लाभ मिल सकता है और इसको लेकर वित्त विभाग के सचिव की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय कमेटी भी बनाई गई है. जल्द ही कमेटी रिपोर्ट देगी और फिर सरकार उस पर विचार करेगी.
सरकार पर पड़ेगा अतिरिक्त बोझ: पुरानी पेंशन स्कीम की बात करें तो 2030 तक केवल आठ से 10000 कर्मचारी बच जाएंगे. नई पेंशन स्कीम में कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद मासिक पेंशन के स्थान पर एकमुश्त जमा राशि का 60% हिस्सा कैश मिल जाता है. शेष 40% राशि पर ब्याज के तौर पर मासिक राशि मिलती है जो काफी कम होता है और इसलिए सरकारी कर्मचारी पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करने की मांग करते रहे हैं. बिहार में नई सरकार के लिए यह एक बड़ी चुनौती है. यदि 220000 कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम के तहत लाया गया तो सरकार को फिलहाल आठ से नौ हजार करोड़ का सालाना बोझ पड़ेगा. इसके अलावा शिक्षकों और अन्य संविदा पर नियुक्त कर्मचारियों को लाभ दिया गया तो यह राशि काफी अधिक होगी. इसलिए सबसे ज्यादा दबाव आरजेडी पर है लेकिन फैसला महागठबंधन के सभी दलों की सहमति से ही संभव है. यदि इस पर फैसला नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में यह बिहार में एक बड़ा मुद्दा बनेगा.