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चैत्र नवरात्र : मां दुर्गा का पांचवां स्वरुप है स्कंदमाता

चैत्र नवरात्रि का आज पांचवा दिन है. पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा करने का विधान है. मां जगदम्बे की भक्ति के लिए पांचवें दिन खास मंत्र का जाप करना चाहिए,

जय माता दी
जय माता दी

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Published : Mar 29, 2020, 7:50 AM IST

पटना: चैत्र नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंदमाता की उपासना होती है. मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं और अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं. प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य मां स्कंदमाता का श्लोक सरल और स्पष्ट है. मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में पांचवें दिन इसका जाप करना चाहिए.

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

इस श्लोक का अर्थ है कि 'हे मां! सर्वत्र विराजमान और स्कंदमाता के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है. मां मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ. हे मां, मुझे सब पापों से मुक्ति प्रदान करें.' इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है. इनके विग्रह में भगवान स्कंदजी बालरूप में इनकी गोद में बैठे होते हैं.

अलसी औषधि के रूप में भी पूजा
नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की अलसी औषधि के रूप में भी पूजा होती है. स्कंदमाता को पार्वती एवं उमा के नाम से भी जाना जाता है. अलसी एक औषधि से जिससे वात, पित्त, कफ जैसी मौसमी रोग का इलाज होता है. इस औषधि को नवरात्रि में माता स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी बीमारियां नहीं होती, साथ ही स्कंदमाता की आराधना के फलस्वरूप मन को शांति मिलती है.

भगवान स्कंद कुमार कार्तिकेय नाम से भी जाने जाते हैं. ये प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे. पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है. इन्हीं भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है.

स्कंदमाता का विराट स्वरुप
स्कंदमाता की चार भुजाएं हैं. इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है. बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं. इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है. ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं. इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है. इनका वाहन भी सिंह है.

नवरात्रि-पूजन के पांचवें दिन का महत्व शास्त्रों में पुष्कल बताया गया है. इस चक्र में अवस्थित मन वाले साधक की समस्त बाह्य क्रियाओं एवं चित्तवृत्तियों का लोप हो जाता है. वह विशुद्ध चैतन्य स्वरूप की ओर अग्रसर हो रहा होता है.

सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनकी उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है. एक अलौकिक प्रभामंडल अदृश्य भाव से सदैव उसके चतुर्दिक्‌ परिव्याप्त रहता है. यह प्रभामंडल प्रतिक्षण उसके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है.

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