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पटना विश्वविद्यालय में शोध की गुणवत्ता क्यों हो रही खराब, क्या है इसकी वजह?

90 के दशक के बाद पटना विश्वविद्यालय में शिक्षकों की कमी हो गई और नई नियुक्ति नहीं हुई. पुराने शिक्षक रिटायर होते चले गए. ऐसे में यहां शिक्षा का स्तर गिरा और शोध का भी स्तर गिरता चला गया. इसके साथ ही शोध के लिए संसाधन की भी कमी हो गई. इस कारण विश्वविद्यालय में शोध अपने न्यूनतम स्तर पर चला गया. इसके साथ ही शिक्षकों को उचित प्रोत्साहन भी नहीं मिला.

quality of research at Patna University
quality of research at Patna University

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Published : Mar 18, 2021, 5:24 PM IST

Updated : Mar 18, 2021, 5:59 PM IST

पटना: पीयू के ट्रेनिंग कॉलेज के प्राचार्य डॉ आशुतोष कुमार ने बताया कि विश्वविद्यालय में शोध कार्य चल रहे हैं. कला संकाय मानविकी सामाजिक विज्ञान के विषयों की शोध प्रोजेक्ट्स उन्होंने यूजीसी में जमा किया हुआ है. लेकिन यूजीसी से सपोर्ट जो यूनिवर्सिटी को मिलना चाहिए था वह नहीं मिल पा रहा है और इस वजह से वह सब पिछड़ जा रहे हैं.

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'यूजीसी के शोध पत्रिकाओं का एलोकेशन देखें तो दिल्ली के आस-पास के विश्वविद्यालय ही अधिक लाभान्वित हो रहे हैं. इसके साथ में जोड़ने नया बदलाव आ रहा है. जैसे कि चॉइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम इसको समझने में ही शिक्षकों को समय लग जा रहा है. ऐसे में यह भी कारण है कि शोध प्रभावित हो रहा है.' - डॉ आशुतोष, प्राचार्य, पटना ट्रेनिंग कॉलेज

डॉ आशुतोष, प्राचार्य, पटना ट्रेनिंग कॉलेज

'90 के दशक से गिर रही गुणवत्ता'
पटना विश्वविद्यालय के पूर्ववर्ती छात्र और पटना ट्रेनिंग कॉलेज के एलुमनाई एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ कुमार संजीव ने कहा कि 80 के दशक तक विश्वविद्यालय की गुणवत्ता बरकरार थी. यहां के रिसर्चस जो होते थे वह स्कॉलर्स निकलते थे. लेकिन 90 के दशक में जब विश्वविद्यालय में शिक्षकों की कमी हो गई तो शोध की गुणवत्ता गिरती चली गई.

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'वर्तमान में पटना यूनिवर्सिटी और बिहार का एक भी ऐसा जर्नल नहीं है जो यूजीसी केयर लिस्ट में रजिस्टर्ड है. यूजीसी ने केयर लिस्ट में रजिस्टर्ड होने के लिए एक लंबा पैमाना तैयार किया हुआ है. इस पैमाने के तहत एक जर्नल यूजीसी में विश्वविद्यालय की तरफ से भेजा गया है, जो वह भी अब तक रजिस्टर्ड नहीं हुआ है.'- डॉ. संजीव कुमार, अध्यक्ष, एलुमनाई एसोसिएशन

डॉ. संजीव कुमार, अध्यक्ष, एलुमनाई एसोसिएशन

'पीयू और यूजीसी में तालमेल का अभाव'
डॉ संजीव कुमार के मुताबिक यूनिवर्सिटी और यूजीसी के बीच में तालमेल नहीं है. यहां से जो भी प्रपोजल जाता है तो वहां से सहयोग नहीं मिलता है. ऐसे कई विषय हैं जिनपर शोध हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि उनका एक आलेख 2007-08 में अमेरिका के एक यूनिवर्सिटी के जर्नल में छपा था. अब इस प्रकार के शोध इंटरनेशनल जर्नल में ज्यादा नहीं छपते है. विश्वविद्यालय में पहले किसी जमाने में साइंस विषय में नेचर पर काफी शोध छपा करते थे, लेकिन अब इस प्रकार की सोच काफी कम हो रही हैं.

Last Updated : Mar 18, 2021, 5:59 PM IST

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