पटना:दिल्ली में बिजली बिल माफ करने के वादे के बाद अरविंद केजरीवाल की सरकार बन गयी. आम आदमी पार्टी ने यही प्रयोग पंजाब में किया और वहां भी सरकार बन गयी. अरविन्द केजरीवाल जहां-जहां चुनाव लड़े, बिजली बिल भुगतान में छूट को मुद्दा बनाया और सरकार बने ना बने पर दो चार सीट जीतने में सफल जरूर रहे. ये सारे प्रयोग विकसित राज्यों में किये गये और आम आदमी पार्टी ने इसे मुद्दा बनाकर फायदा उठाया. अब तक कई विकसित राज्यों में बिजली दर चुनावी मुद्दा बना लेकिन अभी तक बिहार में यह चुनावी मुद्दा नहीं बन सका है, जबकि लगभग प्रतिवर्ष बिहार में बिजली की दरों में बढ़ोतरी होती है.
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बिहार में बिजली दर तय करने के लिए आयोग: बिहार में बिजली दर तय करने लिए बिहार विद्युत विनियामक आयोग का गठन किया गया था. यह आयोग प्रति वर्ष बिजली दर तय कर करता है. इस वर्ष आयोग में 24.10 फीसदी बिजली दर में बढ़ोतरी की अनुशंसा कर लोगों को परेशान कर दिया है. आयोग के इस फैसले के बाद बिहारवासियों को बिजली अब 24 फीसदी महंगी मिलेगी.
बिजली दर बढ़ने पर तत्काल विरोध:बिहार में लगभग प्रतिवर्ष बिजली की दरों में बढ़ोतरी होती है और विपक्षी दल सड़क पर उतर कर विरोध भी जताते हैं. इस बार की बढ़ोतरी के दौरान विधानमंडल का सत्र चल रहा है और सदन में भी इसकी गूंज सुनाई दे रही है. इसके अलावा छोटे-छोटे दल भी सड़क पर विरोध जताने का कोरम पूरा करते नजर आ ही जाते हैं. लेकिन बिहार में बिजली दर में बढ़ोतरी कभी स्थायी मुद्दा नहीं बन पाया है. बीजेपी प्रवक्ता डॉ राम सागर सिंह की मानें तो आयोग विभिन्न कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए प्रतिवर्ष बढ़ोतरी करती है.
"यह बिहार के लिए अहम मुद्दा है और बीजेपी विरोध का दायरा बढ़ायेगी. विभिन्न कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए आयोग हर साल दर बढ़ाता है."- डॉ राम सागर सिंह, बीजेपी प्रवक्ता
जेडीयू ने किया पलटवार: वहीं जेडीयू प्रवक्ता सुनील कुमार सिंह ने बीजेपी के इस आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है. उन्होंने आयोग के आकलन पर सवाल उठाने को लेकर बीजेपी को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा है कि विद्युत बोर्ड को सुचारू रूप से चलाने के लिए बढ़ोतरी जायज है.
क्या है जानकारों की राय:जीतन राम मांझी के कार्यकाल को यदि छोड़ दें तो नीतीश कुमार 2005 से अब तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं. इस दौरान कई बार बिजली दर में बढ़ोतरी हुई पर किसी भी पार्टी ने पुरजोर विरोध नहीं किया था.जाने माने समाजशास्त्री डॉ संजय कुमार की मानें तो बिहार के चुनाव में जीत मुद्दों के आधार पर नहीं बल्कि जाति के आधार मिलती है. जाति में बंटा हुआ समाज कभी मुद्दों पर मुखर नहीं होता है. तमाम राजनीतिक पार्टियां यही बात समझते हुए बिजली दर में बढ़ोतरी को बड़ा मुद्दा बनाने के बजाय बढ़ोतरी के बाद विरोध का कोरम पूरा कर देती है.
"बिहार में महागठबंधन की सरकार है, इसमें सात दल प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में शामिल हैं. वर्त्तमान विपक्ष बीजेपी भी कुछ दिनों पहले तक सत्ता में ही थी. ऐसे में तमाम दलों की उदासीनता दुर्भाग्यपूर्ण है."- डॉ संजय कुमार,समाजशास्त्री
नहीं बन सका अहम मुद्दा: बिहार में करीब डेढ़ करोड़ बिजली उपभोक्ता हैं. इसके बावजूद बिहार सरकार केंद्र या दूसरे राज्यों से बिजली खरीदने को मजबूर है. सरकार को भी पता है कि बिजली के नाम पर बिहार की गरीब जनता से पैसे की उगाही जारी है. इसके बावजूद बिजली दर को एक अहम मुद्दा बनाने को कोई तैयार नहीं है. आयोग प्रतिवर्ष बिजली दर में बढ़ोतरी करती है और जनता उस समय सरकार को कोसती तो जरूर है लेकिन जातीय समीकरण के आधार पर वोट कर देती है. इसी का फायदा तमाम राजनीतिक दल उठाते हैं और आज तक बिजली दर में बढ़ोतरी कभी अहम मुद्दा नहीं पाया है.