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Ramcharit Manas Row पर बोले किशोर कुणाल- 'क्षुद्र' को बनाया 'शूद्र', तुलसीदास पर आरोप लगाना बेबुनियाद

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Published : Jan 30, 2023, 10:20 PM IST

संवत् 1631 यानी 1574 ई. में रामनवमी के दिन तुलसीदास ने अयोध्या के राम मन्दिर में रामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की थी. अगले वर्ष यानी 2024 की रामनवमी के दिन इसके 450 वर्ष पूरे होंगे. हाल के दिनों में रामचरितमानस की कुछ पंक्तियों पर खूब विवाद हुआ. इसके बाद तुलसी साहित्य का प्रामाणिक संस्करण प्रकाशित करने की तैयारी महावीर मन्दिर का 'रामायण शोध संस्थान' (Ramayana Research Institute of Mahavir Mandir) कर रहा है. पढ़िये विस्तार से.

Ramcharit Manas row
Ramcharit Manas row

पटना: महावीर मन्दिर न्यास के सचिव आचार्य किशोर कुणाल ने (Kishore Kunal on Ramcharit Manas controversy) बताया कि इस वर्ष की रामनवमी से 2025 की रामनवमी यानी दो वर्षों तक ‘रामायण शोध संस्थान’ के तत्त्वावधान में तुलसी साहित्य से संबंधित सभी उपलब्ध पाण्डुलिपियों का गहन अध्ययन किया जाएगा. इसके लिए देशभर के विद्वानों से तुलसी साहित्य से संबंधित सभी प्रकाशित-अप्रकाशित पाण्डुलिपियों का संकलन किया जा रहा है. उन पाण्डुलिपियों के गहन अध्ययन के बाद समग्र तुलसी साहित्य का प्रामाणिक संस्करण प्रकाशित किया जायेगा.

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एक पंक्ति पर विवादः आचार्य किशोर कुणाल ने बताया कि प्रामाणिक संस्करण नहीं होने से ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी ...चौपाई में एक अक्षर बदल गया. हाल में, रामचरितमानस की कुछ पंक्तियों पर मानस का मर्म नहीं समझने वाले लोगों द्वारा आक्षेप किये जा रहे हैं. ‘ढोल गंवार शूद्र पशु नारी’ ऐसी ही एक पंक्ति है जिसपर विवाद होता रहा है. किन्तु सन् 1810 ई. में कोलकता के विलियम फोर्ट काॅलेज से प्रकाशित पं. सदल मिश्र द्वारा सम्पादित ‘रामचरितमानस’ में यह पाठ ‘ढोल गँवार क्षुद्र पशु नारी’ के रूप में छपा था. यहाँ सूद्र शब्द के बदले क्षुद्र शब्द है. पं. सदल मिश्र बिहार के उद्भट विद्वान् और मानस के मान्य प्रवचनकर्ता थे. यह मानस की सबसे पुरानी प्रकाशित पुस्तक है.

तुलसीकृत रामायण का प्रकाशनः 1810 ई. के बाद 1830 ई. में कोलकता के एसिएटिक लिथो कम्पनी से ‘हिन्दी एन्ड हिन्दुस्तानी सेलेक्सन्स’ नाम से एक पुस्तक छपी थी, जिसमें रामचरितमानस का पूरा सुन्दरकाण्ड छपा है. इसमें भी पाठ ‘ढोल गंवार क्षुद्र नारी’ ही है. इस 494 पृष्ठ वाली पुस्तक के सम्पादक विलियम प्राइस, तारिणीचरण मिश्र, चतुर्भुज प्रेमसागर मिश्र थे. दिसंबर 4 मई, 1874 को बंबई (मुंबई) के सखाराम भिकसेट खातू के छापेखाने से अयोध्या के पास स्थित नगवा गाँव के विद्वान् देस सिंह द्वारा सम्पादित ‘तुलसीकृत रामायण’ का प्रकाशन हुआ था. इसमें भी पाठ ‘ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी’ ही है. इसका फिर से मुद्रण 1877 ई. में हुआ था, जिसकी प्रति प्राप्त हुई है और इसमें भी पाठ क्षुद्र ही है; शूद्र नहीं.

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राम को राह नहीं दे रहा थाः इस पुस्तक की एक और विशेषता है कि इसमें रामायण की घटनाओं को दिखाते हुए बहुत सारे चित्र भी प्रस्तुत किये हैं. इस पुस्तक में इस प्रसंग के चित्र के अवलोकन से यह ज्ञात होता है कि भगवान् राम धनुष चढ़ाये हुए हैं और समुद्र करबद्ध मुद्रा में विनय कर रहा है. ‘ढोल गंवार---’ वाली उक्ति भयभीत समुद्र की है, जो राम को राह नहीं दे रहा था. उसे सोख जाने की घोषणा भगवान ने की थी. अतः यहां नारी शब्द का अर्थ समुद्र ही संगत बैठता है. संस्कृत में नार का अर्थ जल होता है और गुण से गुणी की तरह नार (जल) से नारी (समुद्र) बनता है.

तुलसी ग्रन्थावली का तृतीय खण्डः नागरी प्रचारिणी सभा, काशी से प्रकाशित तथा रामचन्द्र शुक्ल द्वारा सम्पादित तुलसी ग्रन्थावली के तृतीय खण्ड ‘मूल्यांकन’ में शम्भु नारायण चौबे का लेख ‘रामचरितमानस’ प्रकाशित है. इसमें विद्वान् लेखक ने लिखा है कि 1874 में जो मुंबई से प्रकाशित उक्त पाठ है, वैसा पाठ दो और प्रकाशित पुस्तकों में है. उनमें से पहली पुस्तक 28 अप्रैल, 1866 को और दूसरी पुस्तक 1873 में फतेहगढ़ से छपी हुई थी. ये दोनों पुस्तकें अभी देखने को नहीं मिली हैं. किन्तु विद्वान लेखक ने आज से जब 55 साल पहले जब इन पुस्तकों को देखकर लिखा कि तीनों पुस्तकों का पाठ एक-जैसा है और सभी सचित्र हैं, तो यह सहज अनुमान किया जाना चाहिए कि उन दोनों प्रकाशित पुस्तकों में भी ‘क्षुद्र’ पाठ ही रहा होगा.

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कुंवर सिंह के पूर्वजः इसी प्रकार 1883 ई में बाबू रामदीन सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘बिहार-दर्पण’ छपी जिसपर भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की सम्मति भी है. इसमें बिहार की 24 विभूतियों की जीवनी है. पहली जीवनी प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के अमर योद्धा वीर कुंवर सिंह के पूर्वज नारायण मल्ल की है. उन्हें मुगल सम्राट शाहजहां ने बिहार के भोजपुर रियासत की जमींदारी दी थी. उनकी मृत्यु सन् 1629 ई में हुई थी. नारायण मल्ल ने तुलसी-साहित्य से सूक्तियों का संकलन किया था. उसे अविकल रूप से बिहार-दर्पण में नारायण मल्ल की जीवनी के साथ छापा गया है. इसके पृ. 64 पर ‘ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी’ पाठ ही मिलता है. नारायण मल्ल की लिखी हुई मूल सूक्ति अभी नहीं मिली है.

तुलसीदास पर आरोप बेबुनियादः बाबू रामदीन सिंह ने जब 1881-83 में छापा था, तब उनके पास यह संकलन था. यदि यह पुस्तक मिल जाती है, तब इसका रचनाकाल तुलसी के समय का ही माना जायेगा. क्योंकि तुलसी का निधन 1623 ई. में हुआ था. नहीं मिलने पर भी इतना तय है कि 1883 ई. के पाठ में भी ‘क्षुद्र’ पाठ है, शूद्र नहीं. इस प्रकार, 1810, 1866, 1873, 1874, 1877, 1883 में प्रकाशित पुस्तकों में पाठ ‘ढोल गँवार क्षुद्र पशु नारी’ था और लगता है कि 1880 या 1890 के दशक के बाद भूल से या जानबूझकर क्षुद्र को शूद्र बनाया गया. गीता प्रेस द्वारा 1930 के दशक में प्रकाशित पुस्तक घर-घर पहुंच जाने के बाद यही पाठ प्रचलित हो गया. किन्तु 1877 ई- तक ‘ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी’ पाठ ही प्रामाणिक था. किशोर कुणाल ने कहा कि तुलसीदास पर किसी प्रकार का आरोप लगाना बेबुनियाद है.

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