पटनाः पूरे देश की नजर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव (UP Assembly election) पर है. अगले साल होने वाले यूपी चुनाव को लेकर बीजेपी पूरी ताकत लगा रही है. बिहार में सत्ताधारी दल जदयू भी चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. बीजेपी के साथ गठबंधन को लेकर भी बातचीत चल रही है. जेडीयू (JDU) नेताओं को लगता है कि नीतीश कुमार का चेहरा गठबंधन के उम्मीदवारों के लिए मददगार साबित हो सकता है. वहीं बीजेपी (BJP) के बिहार के नेता इस मामले में कहते हैं कि केंद्रीय नेतृत्व ही तय करेगा कि गठबंधन होगा या नहीं. हालांकि नीतीश की छवि की बदौलत जदयू यूपी में चुनाव लड़ने के लिए पूरी तरह तैयार है.
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जानकार बताते हैं कि शीर्ष नेताओं के बीच बातचीत प्रारंभिक स्तर पर हुई है. उसके अनुसार ही जदयू भी तैयारी कर रही है. बिहार के वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय का भी कहना है कि नीतीश कुमार ने अपनी अलग इमेज पूरे देश में बनाई है. ऐसे में बीजेपी जदयू के साथ यदि गठबंधन करती है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी के चेहरे के बावजूद नीतीश कुमार के चेहरे का इस्तेमाल कर निश्चय ही उसका लाभ उत्तर प्रदेश के कुछ पॉकेट में उठाने की कोशिश करेगी.
उत्तर प्रदेश के साथ देश के 5 राज्यों में अगले साल चुनाव होना है. बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश सबसे खास है, बीजेपी की सरकार भी है. इस बार बिहार की सत्ताधारी दल जदयू ने भी पूरी ताकत के साथ चुनाव में कूदने का ऐलान कर दिया है. कोशिश है कि बीजेपी के साथ गठबंधन हो जाए.
2007 में एनडीए (NDA) के साथ 17 सीटों पर जदयू ने चुनाव लड़ा था. जौनपुर सीट पर जीत मिली थी. लेकिन 2012 में गठबंधन नहीं हो पाया. अकेले दम पर 200 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने के बावजूद एक सीट पर भी जीत हासिल नहीं हो सकी. 2017 में भी चुनाव लड़ने की जदयू की पूरी तैयारी थी, लेकिन अंतिम समय में पार्टी ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया.
अब जदयू यूपी में 200 से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. ऐसे में बिहार से सटे 65 से 70 सीटों पर पार्टी की नजर है.
'हम लोगों ने चुनाव लड़ने का पहले ही ऐलान कर दिया है. गठबंधन की कोशिश भी हो रही है. यदि गठबंधन नहीं हुआ तो हम लोग पार्टी के विस्तार के लिए वहां चुनाव जरूर लड़ेंगे.'-ललन सिंह, राष्ट्रीय अध्यक्ष, जदयू
'जदयू के नेताओं को लगता है कि नीतीश कुमार का चेहरा न केवल जदयू उम्मीदवारों को लाभ पहुंचाएगा बल्कि यदि गठबंधन होता है तो सहयोगी दल के उम्मीदवारों के लिए भी जीत में मददगार बनेगा. क्योंकि नीतीश कुमार ने अपने काम के बदौलत एक अलग इमेज पूरे देश में बनाई है.'-अरविंद निषाद, प्रवक्ता, जदयू
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'यूपी में बीजेपी अपने सहयोगी दलों के साथ चुनाव लड़ती रही है. 2017 में 403 सीटों में से 324 सीटों पर बीजेपी गठबंधन को विजय मिली थी. इसमें 311 सीट बीजेपी को मिली. उत्तर प्रदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी बड़ा चेहरा हैं. मुख्यमंत्री योगी की लोकप्रियता काफी है. वे फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे यह तय है. जदयू के साथ वहां अब तक तालमेल की स्थिति नहीं बनी है. लेकिन इसको लेकर शीर्ष नेतृत्व ही कोई फैसला करेगा.'-प्रेम रंजन पटेल, बीजेपी प्रवक्ता
'बीजेपी के पास योगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बड़ा चेहरा तो है ही लेकिन गठबंधन हो जाता है तो नीतीश कुमार का चेहरा भी उन्हें मदद कर सकता है. खासकर वैसे पॉकेट में जहां बीजेपी पर सवाल उठते रहे हैं.'-रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार
बता दें कि नीतीश कुमार शराबबंदी, महिला आरक्षण, सात निश्चय योजना और सुशासन की छवि को लेकर यूपी में जाएंगे. इसके साथ पिछड़ा और अति पिछड़ा कार्ड भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा. उत्तर प्रदेश में नीतीश कुमार की नजर कुर्मी वोट बैंक वाली सीटों पर भी है.
16 जिलों में कुर्मी और पटेल वोट बैंक 6 से 12 फीसदी तक है. इसमें इलाहाबाद, सीतापुर, मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, बहराइच, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर और बस्ती जिले प्रमुख हैं. बिहार से सटे पूर्वांचल पर नीतीश कुमार की खास नजर है.
यूपी में 9 से 10 फीसदी के आसपास कुर्मी वोट बैंक है. ऐसे वहां अपना दल इन वोटों पर दावा करती रही है. एक समय नीतीश कुमार ने अपना दल के साथ समझौता भी किया था लेकिन उसका कुछ लाभ मिला नहीं. अभी हाल ही में जदयू यूपी के प्रदेश अध्यक्ष अनुप सिंह पटेल राष्ट्रीय परिषद की बैठक में पटना आए थे. पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से मुलाकात की थी.
अनूप सिंह पटेल का कहना था कि जदयू वहां कई सीट इस बार जीत सकती है. बीजेपी भी इन सब चीजों को परख रही है. यूपी में जातीय गणित के बात करें तो कुर्मी और पटेल 9 फीसदी, अन्य पिछड़ी जातियां 7 फीसदी, यादव 12 फीसदी, सवर्ण 18 फीसदी, एससी एसटी 5 फीसदी, विश्वकर्मा 2 फीसदी, मल्लाह 4 फीसदी, जाट 5 फीसदी और मुस्लिम 18 फीसदी के आसपास हैं.
बिहार में कुर्मी वोट बैंक पर नीतीश कुमार की पकड़ है. बीजेपी के साथ कई सालों की दोस्ती भी है. सहयोगी दल के एक-एक कर बाहर चले जाने के बावजूद जदयू अभी भी बीजेपी के साथ है. गठबंधन होने का यह भी एक बड़ा कारण हो सकता है. यदि गठबंधन नहीं हुआ तो जदयू पार्टी के विस्तार के लिए अकेले चुनाव लड़ने का बड़ा फैसला कर सकती है. जदयू का अभी बिहार के अलावा अरुणाचल में ही राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिला हुआ है. राष्ट्रीय पार्टी के लिए कम से कम 4 राज्यों में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा मिलना जरूरी है.
2017 में जदयू ने चुनाव की तैयारी करने के बाद भी चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया. पार्टी इसके लिए शरद यादव को जिम्मेवार बताती रही है. हाल ही में राष्ट्रीय परिषद की बैठक हुई, उसमें भी यह माना गया कि 2017 में चुनाव नहीं लड़ना पार्टी के लिए बड़ी भूल थी. अब जदयू को राष्ट्रीय पार्टी बनाना है. ऐसे में यूपी चुनाव लड़ना पार्टी के लिए जरूरी है.
सहयोगी बीजेपी को नुकसान न पहुंचे, जदयू की इस पर भी नजर है. साथ ही बीजेपी पर दबाव बनाकर अधिक से अधिक सीट पर गठबंधन होता है, तो जीत हासिल करने की भी कोशिश है. बीजेपी और जदयू के नेताओं के बीच अभी शुरुआती बातचीत हुई है.
सूत्रों के अनुसार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और गृह मंत्री अमित शाह के साथ बातचीत की है. उसी के बाद जदयू ने अपनी तैयारी भी शुरू की है. क्योंकि चुनाव अगले साल होना है. ऐसे में अभी समय है. आने वाले दिनों में शीर्ष नेताओं के बीच बातचीत का सिलसिला और आगे बढ़ेगा. तभी सब कुछ साफ हो सकेगा.
बता दें कि इसी साल नीतीश कुमार और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह के साथ पार्टी के अन्य नेता यूपी का दौरा भी कर सकते हैं. जदयू का बीजेपी के साथ दिल्ली में पिछले विधानसभा में गठबंधन हुआ था. हालांकि दो ही सीट जदयू को मिली थी और किसी पर जीत नहीं मिली. ऐसे में बीजेपी नेताओं को इस बात की उम्मीद भी है.
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