पटनाःनवरात्रि का आज चौथा दिन है. इस दिन शक्ति की देवी के चौथे स्वरूप की पूजा की जाती है. कुष्मांडा माता की पूजा का विशेष महत्व है. शास्त्रों में कहा गया है कि ब्रह्मांड को उत्पन्न करने वाली कुष्मांडा देवी अनाहत च्रक को नियंत्रित करती हैं. इनकी आठ भुजाएं हैं, इसलिए इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है.
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मां कुष्मांडा की सच्चे मन और विधि पूर्वक पूजा करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान आचार्य रामा शंकर दुबे ने बताया कि मां दुर्गा की आराधना भक्तों को प्रातः स्नान से निवृत्त होने के बाद कुष्मांडा स्वरूप की पूजा करनी चाहिए.
उन्होंने बताया कि इस बार दुर्गा पूजा में तिथि की टूट है. दुर्गा पूजा इस बार 9 दिन का नहीं बल्कि 8 दिन का हो रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. पहले से ही ऐसी परंपरा चली आ रही है. काशी विश्वनाथ ऋषिकेश पंचांग में षष्टी वेधा पंचमी है.
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इस साल पंचमी और षष्ठी की पूजा एक ही दिन की जाएगी. बाकी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को भक्त पूजा करेंगे. इस हिसाब से 14 को तारीख को नवमी है और 15 तारीख को विजयादशमी है. आचार्य रामाशंकर दुबे बताते हैं कि माता की सिंदूर, धूप, दीप, अक्षत से पूजा करनी चाहिए. मां कुष्मांडा को लाल फूल बेहद ही पसंद है.
आज के दिन मालपुआ का भोग लगाना चाहिए. अष्टभुजादेवी माता कुष्मांडा की पूजा करने से भक्तों का दुख खत्म होता है. परिवार में समृद्धि आती है. माता भक्तों के बल, बुद्धि प्रदान करती हैं. मां अल्प सेवा और भक्ति से ज्यादा प्रसन्न होती हैं.
माता के एक हाथ में अमृत कलश रहता है जिसे वो अपने भक्तों को प्रदान करती हैं. माता का तेज सूरज की भांति चमकता है. मां कुष्मांडा सूर्यमंडल के भीतर निवास करती हैं. शेर की सवारी करने वाली मां कुष्मांडा भक्तों के द्वारा लगाए गए भोग को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार करती हैं. मान्यता है कि मां कुष्मांडा ने मंद-मंद मुस्काते हुए सृष्टि की रचना की थी.